” भारतीय आदर्शवादी दर्शन अद्वितीय है।” उक्त कथन पर प्रकाश डालते हुए भारतीय आदर्शवादी दर्शन की प्रकृति की विवेचना कीजिए तथा इसका पाश्चात्य आदर्शवाद से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
भारतीय आदर्शवाद
भारतीय दर्शन मुख्यतः आदर्शवाद पर केन्द्रित है। यह वैदिककाल से लेकर अब तक लोकप्रिय रहा है। वैदिक ऋषियों ने आत्मा और बह्म को एक स्वीकार किया हो और इस पर व्यापक विवेचना की है।
भारतीय दर्शन अद्वैतवाद का विशेष महत्त्व है। अद्वैत तथा अद्वैतवाद का उद्भव वेदान्त से हुआ है और वेदान्त दर्शन आदर्शवादी दर्शन है। साधारणतः अद्वैत का अर्थ होता है जहाँ दो न हों अर्थात् एक ही हो। अद्वैत शब्द स्वयं में ही दो वस्तुओं के होने का आभास कराता है। किन्तु उनमें कोई भेद नहीं मानता। अर्थात् अद्वैतवाद या वेदान्त या भारतीय आदर्शवाद आत्मा तथा परमात्मा के दो अलग-अलग न मानकर एक ही मानता है।
ब्रह्म कोई अप्राप्य वस्तु नहीं है। सभी प्राणी अपने भीतर इसे ढूँढ सकते हैं। वस्तुनिष्ठ रीति से ढूँढने पर वह तत्त्व ब्रह्म कहलाता है और व्यक्तिनिष्ठ होकर देखें तो वही तत्त्व आत्मा है। यह ब्रह्माण्ड परिवर्तनशील है किन्तु ब्रह्माण्ड के भीतर एक अपरिवर्तनशील तत्त्व विद्यमान है जो इसकी नियामक सत्ता है और जिसका नाम ब्रह्म है। इसी प्रकार यह शरीर-पिण्ड परिवर्तनशील बिन्दु इसके भीतर भी नियामक एवं अपरिवर्तनशील तत्त्व ‘आत्मा’ नाम से विद्यमान है। “आत्म” ब्रह्म स्वरूप है और ब्रह्म सत् है, स्वत है और आनन्द है।
भारतीय आदर्शवाद वेदों से अद्भुत है और इसमें अनेक धाराओं का समावेश हुआ है। यह आज भी भारतीय जन-जीवन को प्रभावित कर रही है। प्राचीन दार्शनिक, शंकराचार्य, बल्लभाचार्य, माध्वाचार्य, याज्ञवाल्कय इत्यादि की तरह आधुनिक भारतीय दार्शनिकों ने आदर्शवादी विचारधारा का सर्वोत्कृष्ट विश्लेषण किया है जिसमें महर्षि अरविन्द, श्री निवास भट्टाचार्या, स्वामी विवेकानन्द, डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन इत्यादि उच्च कोटि के मौलिक विचार रहे हैं जिन्होंने भारत के साथ-साथ विश्व को ज्ञान का आलोक प्रदान किया है।
भारतीय आदर्शवाद तथा पाश्चात्य आदर्शवाद में अन्तर
भारतीय आदर्शवाद तथा पाश्चात्य आदर्शवाद में निम्नलिखित अन्तर स्पष्ट किए जा सकते हैं-
1. भारतीय आदर्शवाद आध्यात्म पर आधारित रहा है जबकि पाश्चात्य आदर्शवाद सिद्धान्तों तथा विचारों को प्रमुखता प्रदान करती है ।
2. भारतीय दर्शन के अनुसार ब्रह्म को जानने वाला स्वयं ब्रह्म हो जाता है। इसी आधार पर वेदान्त में अहं ब्रहास्मि की अवधारणा प्रतिष्ठित की गई है जबकि पाश्चात्य दर्शन के अनुसार विवेकपूर्ण आत्मा का सत्यं, शिवं और सौन्दर्य खोजने के लिए मनुष्य को अपने आप को पहचानने का प्रयत्न करना चाहिए।
3. भारतीय आदर्शवाद के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य मोक्ष है इसके लिए उन्होंने ज्ञान मार्ग का समर्थन किया है जबकि पाश्चात्य आदर्शवाद के अनुसार मानव जीवन का उद्देश्य स्वयं को जानना है।
4. भारतीय आदर्शवाद ने निम्नलिखित शिक्षण विधियों – श्रवण, चिन्तन, व्याख्यान, उपदेश, कथात्मक, तर्क, प्रश्नोत्तर तथा निधिध्यासन विधियों को बताया है जबकि पाश्चात्य आदर्शवाद ने वार्तालाप अन्वेषण, अनुभव द्वारा सीखना तर्क, द्वन्द्वात्मक, प्रत्ययात्मक या अवधारणात्मक, आगमन-निगमन, संशयात्मक, परिभाषीकरण तथा विश्लेषण-संश्लेषण विधि को मान्यवादी है।
5. भारतीय आदर्शवाद आध्यात्मिक जगत को जानने पर बल देता है जबकि पाश्चात्य आदर्शवाद नैतिक जगत को महत्त्वपूर्ण बताता है।
6. भारतीय आदर्शवाद में शिक्षक को परब्रह्म से साक्षात्कार कराने वाला परम ज्ञानी माना गया है। आचार्य से प्राप्त हुई विद्या से ही शिष्य को उत्कृष्टता प्राप्त होती है। ज्ञान प्राप्त होने के लिए गुरु का होना अनिवार्य है। जबकि पाश्चात्य आदर्शवाद के अनुसार शिक्षका का स्थान शिक्षण प्रक्रिया में सर्वोपरि है यह प्रक्रिया एक व्यक्तित्त्व का दूसरे के व्यक्तित्त्व में पड़ने वाले प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है। अत: शिक्षक का व्यक्तित्त्व प्रभावशाली होना चाहिए।
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