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मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति | Meaning and Definition of human value and its nature

मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति
मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति

मानव मूल्य क्या हैं? इसकी प्रकृति स्पष्ट कीजिए।

मानव मूल्य- ‘मूल्य’ अंग्रेजी शब्द ‘Value’ का हिन्दी रूपान्तरण है। यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘Valere’ (वैलियर) से बना है। जिसका अर्थ है- योग्यता, उपयोगिता, कीमत, उत्तमता, महत्त्व आदि जिसके द्वारा कोई वस्तु लाभदायक या सम्मान योग्य बनती है। मूल्य शब्द का कोशीय अर्थ है- व्यक्ति या किसी वस्तु का ऐसा गुण जिसके कारण वह महत्त्वपूर्ण, सम्माननीन एवं उपयोगी सिद्ध हो जाए। यह गुण आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार का होता है। इसके अतिरिक्त मूल्य शब्द का दार्शनिक एवं शैक्षिक अर्थ भी है। दर्शनशास्त्र में मूल्य एक शुद्ध सूक्ष्म तत्त्व है।

अनुक्रम (Contents)

मानव मूल्य की परिभाषाएँ

राधाकमल मुखर्जी के शब्दों में- “समाज की समस्त ऐसी इच्छाएँ या अभिलाषाएँ मूल्य कही जाती हैं जो कि अनुबन्धन की प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति में अन्तर्निहित हो जाती हैं, जो कि समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा भी उस व्यक्ति की प्राथमिकताओं, रुचियों, महत्त्वाकांक्षाओं के रूप में प्रकट होती है।”

क्लूकान के अनुसार, “मूल्य प्रेरणाओं के विशिष्ट पहलू हैं, जो कि मानकीकृत संस्कृति की झलक देते हैं। ये एकाएक किसी परिस्थिति आवश्यकताओं की संतुष्टि के आधार पर प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं। मूल्य हमेशा शाब्दिक एवं प्रेरक व्यवहारों में दृष्टिगोचर होते हैं तथा व्यक्ति को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए का ज्ञान कराते हैं।”

न्यासी के अनुसार- “किसी व्यक्ति के लिए वे रुचिकर वस्तुएँ मूल्य कही जा सकती हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति की रुचि एवं वस्तु में एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।”

फ्लिन्क के अनुसार- “मूल्य नियामक मापदण्ड है जिनके आधार पर व्यक्तियों की चुनाव प्रक्रिया प्रभावित होती हैं तथा अपने प्रत्यक्षीकरण के अनुरूप विभिन्न क्रियाओं का चुनाव करते हैं।”

ननली के शब्दों में- “जीवन के लक्ष्यों एवं जीवन प्रक्रिया के प्रति प्राथमिकता रखते हैं बजाए किसी विशिष्ट कार्य के प्रति रुचि रखने के।”

मानव मूल्यों की प्रकृति रोकीच (1973) ने मूल्य के निम्नलिखित प्रकृति (स्वरूप) को बताया है-

  1. मूल्य की आधारशिला विश्वास होता है।
  2. मूल्य प्राथमिकता से सम्बन्धित है, तथा प्राथमिकता के आधार पर ही चुनाव करता है।
  3. मूल्य एक शाश्वत वस्तु है, जो व्यक्ति या वस्तु में अन्तर्निहित रहता है।
  4. मूल्य हमारे व्यवहार एवं चाल-चलन के उत्पादन की व्याख्या करता है।
  5. मूल्य ऐसी वस्तु का निर्माणकर्ता है जो कि सामाजिक एवं वैयक्तिक रूप से लाभप्रद कही जा सके।

अतएव संक्षेप में कहा जा सकता है कि मूल्य से तात्पर्य उन सभी वस्तुओं या विचारों से हैं जिन्हें हम पसन्द करते हैं, जो पुरस्कृत एवं प्रशंसनीय होते हैं, जो सम्मानीय होते हैं, अपेक्षित आनन्द तथा संतोष देने वाले होते हैं और जिनमें व्यक्ति, समय सीमा नहीं होती है। इस प्रकार मूल्य हमारे प्रेरणात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मूल्य हमारी अधिगम प्रक्रियाओं के सहायक तत्व हैं क्योंकि मूल्यों में उद्दीपन चुनाव की क्रिया व्यक्ति के स्वभाव एवं इच्छा से निर्देशित होती है। साथ ही अधिगमित वस्तु की धारणा, अधिगम गति एवं प्रक्रियाओं की अनुपयुक्तता आदि हमें मूल्य संबंधी आंकलन में सहायता प्रदान करती हैं।

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