B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया | Meaning of Budget and its Process in Hindi

बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया
बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रियाबजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया

बजट का क्या अर्थ है? बजट निर्मित करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। 

बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया – बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के ‘बजेट’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ चमड़े की थैली से लगाया जाता है। बजट का अर्थ पहले थैली से लगाया गया, किन्तु धीरे-धीरे इस शब्द का प्रयोग थैली के लिए न होकर उसमें रखे आय-व्ययक पत्रों के लिए होने लगा। वर्तमान में वार्षिक आय-व्यय के विवरण-पत्रों को ही बजट कहा जाता है। बजट में वित्तीय व्यवस्था का प्रतिवेदन, वित्तीय स्थिति का अनुमान तथा वित्तीय कार्यक्रमों का प्रस्ताव सम्मिलित रहता है। स्पष्ट है कि बजट भूत को सामने रखकर वर्तमान के प्रदत्तों के आधार पर भविष्य के लिए वित्तीय स्थिति का निर्धारण करता है।

बजट निर्मित करने की प्रक्रिया

शिक्षा प्रशासन को चलाने के लिए बजट रीढ़ की हड्डी की भाँति कार्य करता है। बजट सन्तुलित न होने पर अच्छा प्रशासन भी विफल हो जाता है। अतः बजट बनाने की प्रक्रिया पर विचार करना आवश्यक है। बजट बनाने से पूर्व शैक्षिक आय के स्रोतों का अनुमान ठीक-ठीक लगा लेना चाहिए। साथ शैक्षिक व्यय की मदों को निश्चित करके अनुमानित धन को व्यय करने हेतु विभाजित भी कर लेना चाहिए। ऐसा करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि न तो कोई शैक्षिक कार्य छूट सके और न ही अनावश्यक कार्यों को सम्मिलित किया जाये। सन्तुलित बजट बनने पर यदि किन्हीं कारणों से बीच सत्र में धनाभाव हो जाता है, तो चतुर प्रशासक बजट के अनुसार प्रशासन चलाने में कोई विशेष कठिनाई की अनुभूति नहीं करते हैं। इस दृष्टि से अच्छा बजट बनाने की प्रक्रिया का ज्ञात होना आवश्यक है। बजट बनाने के अधोलिखित चरण निर्धारित किये गये हैं—

1. शैक्षिक अथवा विद्यालय की आवश्यकताओं की सूची तैयार करना- शिक्षा प्रशासकों अथवा विद्यालय प्राचार्य एवं विद्यालय की प्रबन्ध समिति को चाहिए कि वे शिक्षकों, विशेषज्ञों, छात्रों, अभिभावकों आदि की सहायता से सत्र के प्रारम्भ में ही शैक्षिक आवश्यकताओं की सूची तैयार कर लें और आवश्यक सुझाव एवं संशोधनों के साथ उसे अन्तिम स्वरूप प्रदान करें। प्रशासकों को चाहिए कि वे विद्यालय की आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर लिखें, जिससे यह निर्णय लिया जा सके कि किस मद पर अधिक और किस मद पर कम व्यय करना है? विद्यालय के प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति करने हेतु जो धन निर्धारित किया जाये उसका आधार विगत वर्षों के अनुभव और वर्तमान बाजार के भाव को बनाया जाये। बाजार भाव के मालूम होने से संतुलित बजट बनाने में सहायता मिलती है।

2. आकस्मिक व्यय की व्यवस्था— बजट का स्वरूप सदैव लचीला ही होना चाहिए। उसमें इतनी गुंजाइश रखनी चाहिए कि आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके। बजट में सभी बातों को निर्धारित करने के पश्चात् कुछ धन आकस्मिक बातों पर व्यय कर सकने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे प्रशासनिक कार्यों में कोई बाधा उत्पन्न न हो सके।

3. आय-व्यय का संतुलित लेखा तैयार करना- प्रशासनिक व्यवस्था में किन्हीं कारणों से किसी विशेष परिस्थिति में शैक्षिक आय की तुलना में शैक्षिक व्यय अधिक बढ़ जाने से वित्तीय व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है और बजट असफल हो जाता है। बजट बनाते समय शैक्षिक योजनाओं अथवा कार्यक्रमों में साधन सुविधा तथा आवश्यकता की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ऐसा परिवर्तन कर लेना चाहिए, जिससे सम्पूर्ण सत्र आय-व्यय में संतुलन बना रहे।

4. बजट का अन्तिम स्वरूप- बजट को अन्तिम स्वरूप प्रदान करने के लिए आय व्यय के सभी मद विभिन्न शीर्षकों में अलग-अलग लिख लेने चाहिए। ऐसे करते समय बायीं ओर आय और उसके सामने दायीं ओर व्यय लिखना चाहिए और फिर दोनों का योग अन्त में दे देना चाहिए। यदि दोनों का योग लगभग बराबर है अथवा आय कुछ अधिक है, तो बजट संतुलित कहलायेगा। बजट में आय के प्रमुख स्रोतों का विवरण संक्षेप में देने के बाद उन मदों की संक्षिप्त व्याख्या भी कर देनी चाहिए जिस पर अधिक व्यय किया जाता है अथवा जिनके आधार पर बजट में परिवर्तन लाया गया है। बजट में आकस्मिक व्यय का भी ब्यौरा देना आवश्यक है, जिसे आय-व्यय के योग के साथ ही दे देना चाहिए।

5. प्रशासकों द्वारा बजट की स्वीकृति- बजट को अन्तिम स्वरूप प्रदान करने के बाद उसे प्रशासकों एवं विशेषज्ञों की समिति के सम्मुख प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिससे उस पर विचार-विमर्श हो सके। इस अवसर पर प्रधानाचार्य अथवा बजट बनाने वाले की उपस्थिति आवश्यक है, जिससे वह वाद-विवाद होते समय जटिल, दुरूह एवं अस्पष्ट बातों को सरल एवं स्पष्ट रूप में रख सके तथा बजट की विस्तृत व्याख्या कर सके। विशेषज्ञों अथवा समिति द्वारा बजट पास होने के बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी के पास अनुमोदनार्थ भेजा जाता है। अधिकारी द्वारा यदि कोई संशोधन करना हो तो उसके करने के बाद उसी की स्वीकृति से बजट को अन्तिम स्वरूप प्रदान कर दिया जाता है।

6. विद्यालय में बजट का कार्यान्वयन- बजट स्वीकृत होने के पश्चात् उसी के अनुरूप धन का व्यय होना प्रारम्भ होता हैं मास-प्रति-मास विद्यालय की आवश्यकताएँ परिवर्तित होती रहती हैं। अतः उसी के अनुरूप धन-संग्रह करके विभिन्न मदों पर व्यय किया जाना चाहिए। ऐसा करने से विद्यालय के सम्मुख आर्थिक कठिनाइयाँ प्रस्तुत न हो सकेंगी। बजट कार्यान्वयन में व्यय की तुलना में आय के स्रोतों का अधिक महत्व है। अतः आय के स्रोतों से प्राप्त धन को बैंक में विभिन्न खातों में जमा करते रहना चाहिए। कुशल प्रशासक धन का व्यय करते समय एक खाते में धन कम होने की स्थिति में दूसरे खाते से निकालकर आवश्यक मदों पर व्यय करते रहते हैं और जैसे ही उस खाते का घन आय रूप में आता है, उसका स्थानान्तरण उधार देने वाले खते में कर देते हैं। प्रशासन बजट की स्वीकृत मदों पर उसका कार्यान्वयन सत्र पर्यन्त उपर्युक्त तरीके से करता रहता है।

7. बजट की सफलता एवं विफलता- बजट बनाने का प्रमुख लक्ष्य आर्थिक दृष्टि से प्रमुख कार्यक्रमों का संचालन करना है। यदि निर्धारित बजट से कार्यक्रम ठीक प्रकार से सम्पन्न हो रहे हों और उनमें निरन्तर सफलता मिल रही हो, तो वह बजट की सफलता का द्योतक है। इसके विपरीत यदि कार्यक्रम का संचालन आर्थिक दृष्टि से ठीक ढंग से नहीं हो रहा है, तो यह कह सकते हैं कि बजट असफल सिद्ध हो रहा है। यदि सम्पूर्ण सत्र में बिना किसी आर्थिक संकट के सभी कार्य सुचारु रूप से चलें, तो यह बजट की सफलता मानी जायेगी।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment