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विभिन्न स्तरों के शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकार

विभिन्न स्तरों के शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकार
विभिन्न स्तरों के शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकार

विभिन्न स्तरों के शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकारियों का पृथक्-पृथक् विवेचन कीजिए।

विभिन्न स्तरों के शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन एवं उनके अधिकारियों का पृथक्-पृथक् विवेचन निम्नवत् है-

 शैक्षणिक प्रशासकीय संगठन- शिक्षा मंत्रालय- राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय का प्रमुख अधिकारी शिक्षामंत्री होता है। इसकी सहायता के लिए एक या दो उपमंत्री भी हो सकते हैं। शिक्षामंत्री जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है तथा राज्य के विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। वह शिक्षा की नीति का निर्धारण एवं उसको क्रियान्वित भी करता है।

परन्तु शिक्षामंत्री सम्पूर्ण शिक्षा के लिए उत्तरदायी नहीं होता। राज्यों में कुछ ऐसे विभाग एवं मंत्रालय हैं, जो अपने विशेष क्षेत्रों की शिक्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं। कृषि, इंजीनियरिंग, वाणिज्य एवं उद्योग, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पशु-चिकित्सा आदि सरकारी विभाग अपने नियंत्रण में विद्यालयों व कॉलेजों को रखते हैं। प्रायः ये विभाग एक-दूसरे की क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं रखते और न ही शिक्षा-विभाग इनकी क्रियाओं में कोई समन्वय स्थापित कर पाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि इनकी गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाये।

शिक्षामंत्री के कार्य

इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-

(i) शिक्षानीति का निर्धारण तथा राज्य की शिक्षा-पद्धति के लिए नेतृत्त्व प्रदान करना।
(ii) शिक्षा से सम्बन्धित विषयों पर पूछे गये प्रश्नों का विधान-मण्डल के समक्ष उत्तर देना तथा शिक्षा-सम्बन्धी विधान मण्डल को परामर्श देना।
(iii) निजी प्रबन्धकों तथा स्थानीय संस्थाओं को स्कूलों के संचालन में सहायता देना।
(iv) शैक्षिक समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहन देना एवं राज्य की शैक्षिक क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना तथा विभिन्न कार्यक्रमों के परिणामों की जाँच करना।

शिक्षा-सचिवालय– सचिवालय प्रत्यक्ष रूप से शिक्षामंत्री तथा उपमंत्री से सम्बन्धित है। शिक्षा से सम्बन्धित सभी नीतियाँ शिक्षा-सचिवालय में निर्णीत की जाती हैं। सचिवालय का सहायता अध्यक्ष शिक्षा-सचिव होता है और उसकी सहायता के लिए उपसचिव तथा अधीन सचिव आदि भीवाय प्रत्येक राज्य में शिक्षा सचिव का पद शिक्षा संचालक के पद से पृथक् होता है। प्रतिदिन भी नियुक्त किये जाते हैं। यह ‘अखिल भारतीय सेवा’ का सदस्य होता है। पश्चिमी बंगाल के मामलों को शिक्षा-सचिव द्वारा पूरा किया जाता है और सरकार के सभी आदेश उसी के नाम में निकलते हैं। शिक्षा संचालक द्वारा जो नीतियाँ एवं प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाते हैं, वे पहले सचिवालय के अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा अध्ययन किये जाने के पश्चात् शिक्षा-सचिव के पास जाते हैं और तब वह उन्हें शिक्षामंत्री के समक्ष प्रस्तुत करता है।

शिक्षा निदेशालय- यह एक कार्यपालक संस्था है। वस्तुतः यह सरकार तथा राज्य में फैली हुई सैकड़ों शिक्षा संस्थानों के बीच एक जोड़ने वाली कड़ी है। यह सरकार को शिक्षा की विभिन्न शाखाओं की दशाओं से पूर्णतः परिचित कराता है तथा सरकार की शिक्षा-नीति के प्रति लोगों के प्रतिक्रिया, उनकी आवश्यकताओं एवं शिक्षा की प्रगति से भी परिचित कराता है।

क्षेत्रीय या सर्किल स्तर–सामान्यतः प्रत्येक राज्य को शिक्षा-प्रशासन की दृष्टि से कई क्षेत्रों या सर्किलों या डिवीजनों में विभाजित कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ये क्षेत्र या रीजन उपशिक्षा निदेशक के अधीन हैं।

जिला स्तर-शिक्षा-प्रशासन में यह स्तर सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस स्तर के कार्य-संचालन पर ही विद्यालय-शिक्षा के किसी कार्यक्रम की सफलता या असफलता निर्भर है। जिला स्तर पर शिक्षा का प्रमुख अधिकारी जिला विद्यालय निरीक्षक या जिला शिक्षा अधिकारी होता है। उसकी के लिए अन्य बहुत-से अधिकारी रहते हैं।

ब्लॉक स्तर–कुछ राज्यों में शिक्षा-प्रशासन का एक स्तर ‘ब्लॉक’ या ‘तालुका’ स्तर है। पंजाब तथा हरियाणा में प्राइमरी शिक्षा-प्रशासन के लिए इस स्तर का प्रशासन बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। जिन राज्यों में प्राथमिक शिक्षा राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है, वहाँ स्थानीय बोर्डों का इस सम्बन्ध में कोई उत्तरदायित्त्व नहीं है। कुछ राज्यों में ब्लॉक शिक्षा- अधिकारी का कार्य उपविद्यालय निरीक्षक द्वारा किया जाता है, परन्तु इन अधिकारियों को जिला स्तर से सम्बन्धित करके उन्हें प्राइमरी विद्यालयों के निरीक्षण का कार्य सौंप दिया गया है।

राज्य शिक्षा-परामर्शदाता मण्डल- सरकार को शिक्षा सम्बन्धी मामलों में परामर्श देने के लिए लगभग सभी राज्यों में शिक्षा-परामर्शदाता मण्डलों की व्यवस्था है। परन्तु इनके संगठनों में विभिन्नता पायी जाती है। कुछ राज्यों में शिक्षा की विभिन्न शाखाओं से सम्बन्ध रखने वाला एक ही शिक्षा-परामर्शदाता है और कुछ में प्रत्येक से सम्बन्धित पृथक्-पृथक् मण्डल हैं। कुछ राज्य सामान्य परामर्शदाता मण्डल के साथ-साथ विशेष मण्डलों में भी बनाते हैं।

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