B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

विद्यालय पुस्तकालय की वर्तमान दशा-व्यवस्था और प्रकार का वर्णन कीजिए।

विद्यालय पुस्तकालय की वर्तमान दशा-व्यवस्था और प्रकार का वर्णन कीजिए।
विद्यालय पुस्तकालय की वर्तमान दशा-व्यवस्था और प्रकार का वर्णन कीजिए।

विद्यालय पुस्तकालय की वर्तमान दशा-व्यवस्था और प्रकार का वर्णन कीजिए।

पुस्तकालय की वर्तमान दशा-व्यवस्था – सिद्धान्त रूप में यह स्वीकार करते हुए भी बिना अच्छे पुस्तकालय के शिक्षा की अच्छी व्यवस्था असम्भव है, हमारे अधिकांश विद्यालयों में पुस्तकालय नाममात्र के लिए हैं ओर उनकी दशा बड़ी बुरी है। यद्यपि विभाग की ओर से यह प्रतिबन्ध है कि हाईस्कूल की मान्यता तभी मिलेगी जब कम-से-कम एक हजार रूपये के मूल्य की सामान्य पुस्तकें तथा एक-एक सौ रुपये के मूल्य का पाठ्-विषयों से सम्बन्धित पुस्तकें पुस्तकालय में हों किन्तु विद्यालय के प्रबन्धकों की ओर से इनकी खाना-पूरी करने के लिए इधर-उधर से बेकार की पुस्तकें भर ली जाती हैं और वे बेकार की पुस्तकें व्यर्थ में अलमारियों में सड़ती रहती हैं। पुस्तकालयों की दुर्व्यवस्था के अनेक कारण हैं, जिनमें से कुछ की चर्चा हम निम्नलिखित पंक्तियों में करेंगे-

(1) स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास– विद्यालय के संचालकों में पुस्तकालय के महत्त्व प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण का अभाव है। वे इसे एक प्रकार के अनावश्यक ही समझते हैं। पुस्तकालय के लिए प्राप्त धन अन्य मद में व्यय कर दिया जाता है और पुस्तकों के झूठे बिल बनवा लिये जाते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि विद्यालय के कर्णधार इसके महत्त्व से पूर्ण रूप से परिचित नहीं हैं।

(2) पुस्तकों का निरुद्देश्य संकलन- पुस्तकालयों में जो पुस्तकें आती भी हैं, वे बिना किसी चिन्तन के मनमाने रूप में खरीद ली जाती हैं। बहुधा पुस्तकों के खरीदने में बच्चों की उपयोगिता, आयु और स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता, अपितु कहानी, उपन्यास आदि की पुस्तकें बड़ों के मनोरंजन के लिए आती हैं अथवा परीक्षा देने वाले अध्यापक अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकें मँगा लेते हैं। सभी विषयों में भी पुस्तकों का अभाव ही रहता है।

(3) पुस्तकालय के लिए स्थान की अनुपयुक्ता- अधिकांश विद्यालयों में पुस्तकालय के लिए विद्यालय का सबसे खराब और छोटे कोने का कमरा दे दिया जाता है। इसमें न बैठने का स्थान होता है, न पुस्तकें व्यवस्थित रूप से रखी जा सकती हैं और न सज्जा की ही उचित व्यवस्था होती है। ऐसी स्थिति में पुस्तकालय की प्लेट किसी कमरे पर लगाकर उसकी हँसी ही उड़ायी जाती है।

(4) शिक्षकों और छात्रों में प्रेरणा का अभाव- हमारे विद्यालयों के शिक्षक तो एक बार प्रमाण-पत्र पा लेने के बाद और शिक्षापूर्ण हो जाने के बाद फिर कोई नवीन पुस्तक देखने की आवश्यकता ही नहीं समझते। अपने गोरख-धन्धे में उन्हें इतना अवकाश ही कहाँ है कि वे अभिनव प्रकाशन देखें। जब स्वयं ही यह ज्ञान नहीं है कि वह इस विषय पर कौन-सी पुस्तक देखनी होगी तथा उसमें क्या महत्त्वपूर्ण बात है तो फिर वे छात्रों को कैसे प्रेरित कर सकेंगे। प्रेरणा के अभाव में पुस्तकें अलमारियों की ही शोभा बढ़ाती रह जाती हैं।

(5) समय का अनिश्चय– विद्यालय के समय-विभाजन चक्र में समय निश्चित न होने से विद्यालय के समाप्त होने पर पुस्तकालय खुलते हैं। उस समय शिक्षक पुस्तकालयऔर छात्र दोनों दिन भर के कार्य से थके होते हैं और घर जाने को शीघ्रता में रहते हैं। ऐसी स्थिति में निश्चित समय की व्यवस्था न होना भी एक बड़ी बाधा है।

(7) सुव्यवस्था एवं सुसंचालन का अभाव- जहाँ पर सामग्री भी उपलब्ध है, वहाँ के दोषपूर्ण संचालन के कारण अधिक-से-अधिक छात्र लाभ नहीं उठा पाते।

पुस्तकालय की व्यवस्था

वास्तव में पुस्तकालय की व्यवस्था ने अब वैज्ञानिक रूप धारण कर लिया है। अतः इसकी व्यवस्था के लिए निम्नलिखित जनतान्त्रिक वैज्ञानिक बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं।

(1) शानदार पुस्तकालय-भवन तथा सज्जा– पुस्तकालय के लिए सबसे प्रथम आवश्यकता एक अच्छे भवन और उपयुक्त संज्जा की है। पुस्तकालय के साथ ही वाचनालय भी संलग्न होना चाहिए।

(2) प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष- उचित रूप में पुस्तकालय के संचालन के लिए एक प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष का होना आवश्यक जो व्यवस्था का सुसंचालन कर सके।

(3) उचित पुस्तकों का संकलन- पुस्तकों का चयन करने के लिए कुशल अध्यापकों की एक समिति बना दी जाय। यह लोग सभी विषयों के शिक्षकों से पुस्तकों की सूची प्राप्त कर लें और उन पर विचार करके छात्रों की आयु, योग्यता स्तर और  विद्यालय प्रबन्धन और स्वास्थ्य-विज्ञान – III पेपर / 47 आवश्यकतानुसार तथा शिक्षकों की आवश्यकता के अनुसार सभी विषयों पर उत्तम और आकर्षक पुस्तकें खरीदने की व्यवस्था करें।

(4) पत्र तथा पत्रिकाओं का चुनाव- वाचनालय के लिए प्रत्येक विषय से सम्बन्धित अच्छी पत्र-पत्रिकाएँ मँगायी जायें और उचित स्थान पर उचित रूप में रखी जायें।

(5) पुस्तकों के अध्ययन के लिए प्रोत्साहन- शिक्षक कक्षा में पढ़ाते समय पुस्तकों की चर्चा करें, उनके पृष्ठ आदि का भी संकेत कर दें तथा ऐसा कार्य दे जो पुस्तकों के लिए पढ़कर करना पड़े। समय-समय पर पुस्तकों को पढ़कर अपने विचार प्रकट करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाये। आवश्यकतानुसार पारितोषिक की भी व्यवस्था की जा सकती है।

(6) पुस्तकों का वितरण- पुस्तकों का वितरण उनके संकलन से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। जिस पुस्तकों का सन्दर्भ आया है, वे उपलब्ध हों ओर नियमित दी और ली जायें तो अधिक छात्र लाभ उठा सकते हैं।

(7) समय-तालिका में पुस्तकालय के घण्टे की व्यवस्था- विद्यालय की समय- तालिका में ही पुस्तकालय के अध्ययन के व्यवस्था कर दी जाय। छात्र उस घण्टे में अनिवार्य रूप से पुस्तकालय में बैठे और पुस्तकें पढ़े। इस कार्य को सुचारू रूप से चलाना होगा अन्यथा वाचनालय वार्तालय केन्द्र बन जायेगा।

(8) खुले पुस्तकालय की व्यवस्था— इस व्यवस्था के संचालन में खुला पुस्तकालय बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसमें छात्र स्वयं खुली आलमारियों से अपनी आवश्यकता की पुस्तकें निकालकर पढ़ते हैं और उन्हें पुनः अपने स्थान पर रख देते है। यह व्यवस्था अनुकरणीय और बड़े लाभ की है।

पुस्तकालय के प्रकार

पुस्तकालय दो प्रकार के होते हैं- (i) विद्यालय के बाहर, और (ii) विद्यालय के अन्दर। इन्हें अग्रलिखित तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

पुस्तकालय के प्रकार

पुस्तकालय के प्रकार

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment