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समय-सारिणी-चक्र के विभिन्न प्रकार | Different Types of Schedule Cycles in Hindi

समय-सारिणी-चक्र के विभिन्न प्रकार
समय-सारिणी-चक्र के विभिन्न प्रकार

समय-सारिणी-चक्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

प्रत्येक विद्यालय में विद्यालय कार्य को सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित ढंग से चलाने की दृष्टि से समय-विभाग चक्र का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक विद्यालय में प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विद्यार्थी तथा विद्यालय की दृष्टि से विभिन्न प्रकार का समय-विभाग चक्र आवश्यक होता है। समय-विभाग चक्र विद्यालय के समस्त कार्यक्रम एवं पाठ्य-सहगामी प्रवृत्तियों के आधार पर निर्मित किया जाता है। सामान्यतया प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक आधारित एवं कक्षा आधारित समय-विभाग अत्यावश्यक है।

समय-सारणी दो किस्म की बनायी जानी चाहिए-

(i) कक्षाबद्ध तथा (ii) शिक्षकबद्ध

विद्यालय में कक्षाबद्ध तथा शिक्षाकबद्ध समय-सारणी के अतिरिक्त अनेक प्रकार की समय-सारणी सम्भव है, यथा-

1. विद्यालय के स्वरूपानुसार समय- तालिका अधिकांश विद्यालय ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं और वे एक पारी में चलते हैं। नगरों में कई विद्यालय छात्र-संख्या अत्यधिक होने के कारण दो अथवा तीन पारियों में चलते हैं, दो या तीन पारियों में चलने वाले विद्यालयों में कक्षाओं की परिवार-व्यवस्था शाला, भवन की क्षमता, प्रशासनिक सुविधा तथा शैक्षिक प्रभावशीलता के अनुसार की जाती है, जैसे दो पारी वाले विद्यालयों में एक पारी में निम्न श्रेणी की कक्षाएँ तथा दूसरी पारी में उच्च श्रेणी की कक्षाएँ बुलाई जाती हैं। कई विद्यालयों में एक ही कक्षा में कुछ अनुभाग प्रातः कालीन पारी में तथा अन्य अनुभाग मध्यान्तर के बाद वाली पारी में आते हैं।

2. कक्षावार समय-सारणी— इसमें प्रत्येक कक्षा में सम्मुख कालांशवार शिक्षक अथवा अन्य अपेक्षित कार्य उल्लिखित होता है। प्रत्येक कालांश के स्तम्भ में कार्य से सम्बन्धित शिक्षक के नाम का भी उल्लेख होता है और यदि वह कार्य सप्ताह के कुछ दिवसों पर करना अपेक्षित है तो उन नियमों को भी इंगित किया जाता है।

3. व्यापक समय-सारणी- प्रधानाध्यापक की दृष्टि से समय-सारणी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक शिक्षक, कक्षा प्रवृत्ति एवं कक्षालय का कालांशवार एवं दिवसवार ब्यौरा होता है। इसके द्वारा प्रधानाध्यापक को प्रतिदिन यह ज्ञात हो सकता है कि अमुक कालांश (घंटी) में किस कक्षा में कौन-सी प्रवृत्ति किस शिक्षक द्वारा संचालित की जा रही है।

4. शिक्षानुसार समय-तालिका- इस समय-तालिका में प्रत्येक शिक्षक के सम्मुख प्रत्येक दिन प्रत्येक कालांश में जो उसका अपेक्षित कार्य होता है। उसका उल्लेख किया जाता है।

5. खेल का समय-विभाग चक्र— इस समय-विभाग-चक्र में किस कक्षा को किस दिन कौन-से खेल में भाग लेना है, इसका विवरण होता है। खेलकूद प्रवृत्तियाँ शिक्षण समय पश्चात् आयोजित की जाती हैं तथा प्रत्येक छात्र को इच्छानुसार खेलने का अवसर प्राप्त होता है। इसमें खेल-कूद की प्रवृत्ति के अनुसार प्रभारी शिक्षक के नाम का भी उल्लेख किया जाता है।

6. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का समय- विभाग चक्र—इसमें सहशैक्षिक पाठ्य- सहगामी क्रियाओं, जैसे-सांस्कृतिक, साहित्यिक, बालचर, समाज-सेवा आदि का विवरण रखा जाता है। इसमें प्रवृत्ति से सम्बन्धित शिक्षक, छात्र, दिवस, स्थान आदि का समुचित विवरण होता है।

7. पाठ्येत्तर प्रवृत्तियाँ सम्बनधी कार्य- तालिका–प्रत्येक अच्छे माध्यमिक विद्यालय में छात्रों में सर्वांगीण विकास की दृष्टि से अनेक पाठ्येतर प्रवृत्तियों का प्रावधान किया जाता है। पाठ्येतर प्रवृत्तियाँ कई प्रकार की होती हैं, जैसे- सांस्कृतिक, खेल-कूद सम्बन्धी स्काउटिंग व गाइडिंग, समाज-सेवा आदि।

8. रिक्त कालांश समय-विभाग चक्र- शिक्षक के अवकाश पर रहने के समय इस समय विभाग चक्र की आवश्यकता पड़ती है। इसमें प्रत्येक अध्यापक के रिक्त कालांशों का विवरण रहता है। फलतः इसकी सहायता अवकाश पर गई हुए शिक्षक के कालांशों की व्यवस्था करने में ली जाती है।

♥ समय सारणी चक्र के निर्माण करने के विशिष्ट सिद्धान्त

♥ समय-सारणी निर्माण करने के सामान्य सिद्धान्त |General principles of creating a schedule

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