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निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति | Meaning , Definition and Nature of Guidance in Hindi

निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति

निर्देशन से क्या अभिप्राय है? निर्देशन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।

अथवा

शिक्षा के अवधारणा, परिभाषा एवं प्रकृति की विवेचना कीजिए।

निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति की विवेचना कीजिए।

निर्देशन का अर्थ होता है एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति या समूह को निर्देशनव देना। किन्तु निर्देशन के शैक्षिक अर्थ और स्वरूप पर विद्वानों में पर्याप्त मतवैभिन्य मिलता है। कुछ विद्वान इसे व्यक्ति या समूह को जीवन में आगे बढ़ने के लिए दी जाने वाली सहायता मानते हैं तो कुछ इसे शिक्षा के क्षेत्र में की जाने वाली विशिष्ट सेवाओं के रूप में ग्रहण करते हैं कुछ विद्वान इसे और व्यापक स्वरूप प्रदान करते हुए जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए विचारकों और मनीषियों के कार्यों द्वारा प्राप्त किये गये अभिप्रेरण के रूप में स्वीकार करते हैं आज के वैज्ञानिकता प्रधान युग में अनुदेशन प्रणाली द्वारा छात्रों को कुछ विशेष प्रकार की सूचनाएं प्रदान करना भी निर्देशन का ही एक रूप कहा जा सकता है। इसी प्रकार शिक्षा और जीवन में आने वाली अनेक प्रकार की समस्याओं के समाधान खोजना और परिस्थितियों से सामन्जस्य स्थापित करने आदि कार्यों में सहायता करना भी निर्देशन के रूप में जाना जा सकता है। कुल मिलाकर देखें तो शैक्षिक उद्देश्यों, कार्यों, रोजगार, व्यवसाय तथा समस्या समाधान आदि के लिए की जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता के निर्देशन का नाम दिया जा सकता है। इस सम्बन्ध में डब्लू0 एल0 रिंकल तथा गिलक्रिस्ट के निम्न विचार उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं।

“निर्देशन का अर्थ छात्रों को स्वयं को समझने और स्थापित करने के लिए प्रेरित करना है जिससे वे अपने अन्दर प्राप्त किये जा सकने वाले उद्देश्यों का निर्धारण करने की योग्यता का विकास कर सकें। इसके लिए आवश्यक है कि वे समुचित रूप से उद्देश्यों के निरूपण, अनुभवों का प्रावधान, योग्यताओं का विकास और उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। कोई भी अच्छा शिक्षण तब तक अधूरा कहा जायेगा जब तक उसके साथ बुद्धिमत्तापूर्ण निर्देशन न जुड़ा हो। शिक्षण और निर्देशन एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते।”

उक्त विचारों को सम्मिलित करने पर यह कहा जा सकता है कि निर्देशन वह ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति अथवा समूह को उनके कार्यों में किसी न किसी प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता उन्हें स्वयं उद्देश्यों का निर्धारण करने, उपयुक्त निर्णय लेने, बुद्धिमत्तापूर्ण निष्कर्ष निकालने, समस्याओं का समाधान करने, परिस्थितियों से अनुकूल- स्थापित करने तथा स्वयं को पहचानने के योग्य बनाती है।

निर्देशन की परिभाषा-

1. डी.जी. मार्टिन्स “निर्देशन शैक्षिक कार्यक्रम का अंग है जो व्यक्तिगत अवसर और विशेष प्रकार की सेवायें उपलब्ध कराता है तथा जिनके माध्यम से व्यक्ति लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप अपनी योग्यताओं और क्षमताओं का विकास करता है।

2. शिक्षा आयोग (1964-66)- “निर्देशन के उद्देश्य समायोजन और वृद्धि व विकास से सम्बन्धित हैं। इसका कार्य छात्रों को शिक्षा संस्थाओं और पारिवारिक परिस्थितियों से सामन्जस्य स्थापित करने में सहायता करना है तथा उनके वयक्तित्व के सभी पहलुओं का सम्यक विकास करने की सुविधा उपलब्ध कराना है।”

3. मायर्स के अनुसार- “निर्देशन व्यक्ति की नैसर्गिक क्षमताओं तथा यत्नपूर्वक प्रशिक्षण से प्राप्त योग्यताओं को संरक्षित रखने का एक मूल प्रयास है। इसके लिए यह व्यक्ति को वे समस्त सुविधाएं उपलब्ध कराता है, जिससे वह अपने विकास के लिए अपनी सर्वोच्च शक्तियों
की पहचान कर सके।”

शैर्ले हैमरिन के अनुसार, “व्यक्ति के स्वयं के पहिचानने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके निर्देशन कहलाता है।”

मैथ्यूसन के अनुसार, “निर्देशन किसी व्यक्ति को शिक्षा एवं व्याख्यात्मक विधियों द्वारा सहायता देने की क्रमबद्ध व्यावसायिक प्रक्रिया है ताकि उस व्यक्ति की विशेषताओं और शक्तियों को श्रेष्ठ ढंग से समझाया जा सके तथा उसे सामाजिक आवश्यकताओं और अवसरों के साथ सामाजिक और नैतिक मूल्यों के अनुसार अधिक सन्तोषजनक ढंग से जोड़ा जा सके।”

रूथ स्ट्रंग (Ruth Strang) ने निर्देशन को परिभाषित करते हुए कहा है कि “निर्देशन का उद्देश्य बालक में विद्यमान सम्भावनाओं के रूप में अधिकतम विकास को बढ़ावा देना है।”

जी.ई. स्मिथ ने निर्देशन को इस प्रकार से परिभाषित किया है- “निर्देशन विभिन्न क्षेत्रों में सन्तोषजनक समायोजन के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्राप्त करने में सहायक विभिन्न सेवाओं का समूह है, ताकि इसके लिए आवश्यक व्याख्याएँ, योजनाएँ तथा उपयुक्त चयन किए जा सके।”

बर्नार्ड और फुलमार के अनुसार, “निर्देशन वे सभी क्रियाएँ हैं जो व्यक्ति को आत्मसिद्धि को उन्नत करती है।

कोठारी आयोग ने निर्देशन को इस प्रकार परिभाषित किया है- “निर्देशन किसी विद्यार्थी की शैक्षिक संस्थाओं, घरों में समायोजन के योग्य बनाना तथा उनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों में सहायता करना है।”

निर्देशन की प्रकृति (Nature of Guidance)

निर्देशन के प्रकृति पर ट्रेक्सलरू, पायर्स, मैथ्यूसन, स्ट्रंग, स्मिथ, फुलमर तथा स्किनर आदि विद्वानों ने यथोचित प्रकाश डाला है। उनके विश्लेषण का सार यह है कि निर्देशन विद्यार्थी को समाज, अर्थव्यवस्था तथा राष्ट्र को समझने और समायोजन के योग्य बनाता है। निर्देशन के प्रकृति का वर्णन निम्नलिखित है-

1. निर्देशन एक सतत प्रक्रिया है- इसमें व्यक्ति पहले स्वयं को समझता है। अपनी क्षमताओं, रुचियों तथा अन्य योग्यताओं का अधिक से अधिक प्रयोग करना सीखता है। विभिन्न परिस्थितियों में वह अपने निर्णय स्वयं लेने की क्षमता का विकास करता है। इस प्रकार यह क्रिया लगातार चलती रहती है।

2. निर्देशन व्यक्ति के विकास पर बल देता है- निर्देशन द्वारा व्यक्ति अपनी वास्तविकता से परिचित हो जाता है। इस प्रकार निर्देशन आत्म सिद्धि (Seaf-relization) में सहायक होता है।

3.निर्देशन व्यक्तित्व विकास में सहायक है- यह भले ही एक समूह को दी जा रही हो फिर भी उसके द्वारा विकास तो एक व्यक्ति विशेष ही होता है, न कि सम्पूर्ण समूह का। इस प्रकार यह एक व्यक्तिगत सहायता देने वाली प्रक्रिया है।

4. यह जीवन से सम्बन्धित होती है- यह जीवन में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में अपना योगदान देती है। औपचारिक निर्देशन को उसके मित्रों व रिश्तेदारों से प्राप्त होता है तथा अनौपचारिक निर्देशन विद्यालय की संगठित निर्देशन सेवाओं के माध्यम से प्राप्त करता है।

5. निर्देशन का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है- यह तो एक प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति का उसकी सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक आवश्यकताओं के अनुरूप विकास करना। इस प्रकार अपना कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं है।

6. निर्देशन कौशलयुक्त प्रक्रिया है- कुछ विशिष्ट तकनीकी व कौशलों का ज्ञान होना चाहिए। इस प्रकार यह एक कुशल, प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक व्यक्ति होना चाहिए। यह एक कौशल युक्त प्रक्रिया है।

7. निर्देशन समायोजित करने की क्षमता का विकास करता है- विभिन्न प्रकार की समस्याओं के साथ समायोजन करना इस प्रक्रिया द्वारा सिखाया जाता है। इस प्रकार निर्देशन व्यक्ति को नई शक्ति प्रदान करता है।

8. निर्देशन सहायता देने से कुछ अधिक है- इस सहायता की सीमा क्या होगी एक हारे इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं। इस सहायता की सीमा क्षेत्र बहुत ही विस्तृत होता है। कब, किसको; कितनी सहायता की जरूरत होती है इसको पहले से तय नहीं किया जा सकता है।

9. निर्देशन की प्रकृति शैक्षिक मानी गई है-निर्देशन का अर्थ छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के बारे में तथा श्लोक वातावरण के सम्बन्ध में समायोजन के रूप में वर्णित किया जाता है। इस प्रकार इसे शैक्षिक सेवा के रूप में परिभाषित किया गया है।

10. निर्देशन प्रक्रिया व्यक्ति में आत्म निदेर्शन का विकास करती है- इसके द्वारा व्यक्ति आत्मनिर्भर बन जाता है। वह अपने जीवन की समस्याओं का हल स्वयं खोजने में सक्षम हो जाता है।

11. निर्देशन की प्रक्रिया उसके भावी जीवन की तैयारी है उसे भविष्य के लिए तैयार करने में सहायता प्रदान करती है- इस प्रकार व्यक्ति भविष्य की गतिविधियों का चयन करके उन गतिविधियों के लिए स्वयं को तैयार करने में सफल हो जाता है। इस प्रकार निर्देशन व्यक्ति के भविष्य का निर्माण करती है।

12. निर्देशन एक सेवार्थी केन्द्रित प्रक्रिया है- निर्देशन को विशिष्ट सेवा के रूप माना गया है। इसका स्वरूप विकासात्मक होता है।

13. निर्देशन शिक्षा की एक उप-प्रक्रिया है- शिक्षा के द्वारा छात्रों का बहुमुखी विकास किया जाता है। शिक्षा की इस प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्देशन का अपना अलग स्थान होता है।

14. निर्देशन अपने दृष्टिकोण को दूसरों पर थोपता नहीं है- यह व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह निर्देशक के निर्णय को माने अथवा नहीं वह चाहे तो इसे मानने से इन्कार भी कर सकता है। अतः यह निर्णयों को थोपने की प्रक्रिया नहीं है।

15. निर्देशन का क्षेत्र व्यापक है- यह किसी आयु के व्यक्ति को दिया जा सकता है। निर्देशन में व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की विशेषताओं, स्वभावों व रुचियों को सम्मिलित किया जा सकता है।

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