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परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति | Meaning, Definition and Nature of Counselling

परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति
परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति

परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति

परामर्श का अर्थ (Meaning of Counselling)- बहुधा निर्देशन एवं परामर्श एक दूसरे के पूरक हैं। परामर्श के लिए निर्देशन एक शर्त होती है। यह एक प्राचीन प्रक्रिया है। व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से परामर्श की व्याख्या का कारण इस शब्द की लोकप्रिय अभिव्यक्ति और इसकी तकनीकी एवं व्यावसायिक अर्थ के मध्य भ्रम की स्थिति है। व्यक्ति प्राचीन काल से ही विभिन्न परिस्थितियों में अपने बड़ों से परामर्श प्राप्त करते रहे हैं। इस दृष्टि से परामर्श का एक परम्परागत रूप प्रकट होता है, जो व्यावसायिक स्वरूप से भिन्न है। व्यावसायिक परामर्श परामर्शदाता के व्यक्तिगत निर्णय की अपेक्षा आनुभविक प्रमाणों पर अधिक निर्भर रहता है। परमार्श का उद्देश्य व्यक्ति की समस्याओं में उसकी सहायता करना है। यह कार्य शिक्षक, अभिभावक, चिकित्सक, मित्र आदि सभी करते हैं, लेकिन उनके प्रशिक्षण, उद्देश्य एवं विधियों में भिन्नता के कारण उनमें से कुछ सूचनायें देते हैं तो कुछ केवल सुझाव व सलाह देते हैं, लेकिन जब कोई व्यक्तियों की आत्म निरीक्षण में सहायता करते हुये उनको अपनी समस्या का स्वयं समाधान के योग बनाने में सहायता करते हैं तो यह कार्य परामर्श कहलाता है। परामर्श के अर्थ और स्वरूप को समझने के लिये यहाँ कुछ विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन करना उपयोगी होगा।

प्राचीन काल से ही परामर्श मानव समाज में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहा है। समय-समय पर अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा करने का यत्न किया है। वेबस्टर (Webster) ने अपने शब्दकोश में परामर्श का अर्थ पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक आदान-प्रदान बताया है। वेबस्टर द्वारा दिये गये उपर्युक्त अर्थ से परामर्श का स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पाता।

रॉबिन्सन ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुये परामर्श की व्याख्या इस प्रकार की है- “परामर्श शब्द दो व्यक्तियों के सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं पर्यावरणं के बीच अपेक्षाकृत प्रभावी समायोजन प्राप्त करने में सहायता की जाती है।

कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) के अनुसार- “परामर्श एक निश्चित रूप से निर्मित स्वीकृत सम्बन्ध है जो उपबोध्य को अपने को उस सीमा तक समझने में सहायता करता है। जिसमें वह अपने ज्ञान के प्रकाश से विद्यात्मक कार्य में अग्रसर हो सके।

हम्फ्रीज तथा टैक्सलर ने परामर्श की परिभाषा देते हुए कहा है- “परामर्श विद्यालय तथा अन्य संस्थाओं के कर्मचारियों की सेवाओं का व्यक्तियों की समस्याओं के समाधान के लिये किया जाने वाला उपयोग है।”

हम्फ्रीज तथा ट्रेक्सलर की उपर्युक्त परिभाषा का आशय कर्मचारियों के द्वारा उपबोध्य व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करने और उनकी समस्याओं के समाधान में सहायता किये जाने से है।

बरनार्ड तथा फुलमर ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है- “परामर्श को उस अन्तर-वैयक्तिक सम्बन्ध के रूप में देखा जा सकता है जिसमें वैयक्तिक तथा सामूहिक परामर्श के साथ-साथ वह कार्य भी सम्मिलित है जो अध्यापकों एवं अभिभावकों से सम्बन्धित है और जो विशेष रूप से मानव सम्बन्धों के भावात्मक पक्षों को स्पष्ट करता है।”

इस प्रकार बरनार्ड तथा फुलमर परमार्श की व्याख्या मानव सम्बन्धों के सन्दर्भ में करते हैं। इनके अनुसार, “बुनियादी तौर पर परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को समझना और उसके साथ कार्य करना होता है जिससे कि उसकी अनन्य आवश्यकताओं, अभिप्रेरणाओं और क्षमताओं की जानकारी हो और फिर उसे इनके महत्त्व को जानने में सहायता दी जाये।”

विली और एण्डू के अनुसार, “परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है।”

रूथ स्ट्रैग के अनुसार, “परामर्श प्रक्रिया एक सम्मिलित प्रयास है। इसमें छात्र का उत्तरदायित्व आत्म-बोध करने, आगे-बढ़ने की दिशा निश्चित करने तथा समस्या उत्पन्न होते ही
उनके समाधान हेतु आत्मविश्वास पैदा करने का प्रयास करना।”

परामर्श की प्रकृति (Nature of Counselling)

परामर्श की प्रकृति एवं विशेषताएँ एक प्रक्रिया को संदर्भित करते हैं। प्रायः परामर्श में परामर्शदाता और उपबोध्य के मध्य संबंध होता है।

1. परामर्श विज्ञान एवं कला दोनों है- परामर्श विज्ञान एवं कला दोनों है। इसमें दोनों के तत्त्वों का सुन्दर समावेश मिलता है।

परामर्श एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति परामर्शदाता के रूप में दूसरे व्यक्ति जो अपनी किसी समस्या के समाधान में किसी का सहयोग चाहता है, वह उसकी समस्या के समाधान में सहयोग करता है। अपनी समस्या के समाधान में सहयोग प्राप्त करने
वाले व्यक्ति को परामर्शी कहा जाता है। परामर्श (Counselling) को यदि परामर्शदाता (Counsellor) तथा परामर्शी (Counsellee) के मध्य सम्पादित अन्तर्वैयक्तिक प्रक्रिया (Interaction Process) कहा जाये तो कुछ गलत न होगा। परामर्श के बिना निर्देशन (Guidance) व्यर्थ होता है। अतः परामर्श समस्याओं के समाधान में सहायता करता है।

परामर्श को विज्ञान भी मानना सही है और कला मानना भी त्रुटिपूर्ण नहीं कह सकते, क्योंकि परामर्श वास्तविकता में एक विज्ञान भी है और कला भी है। अतः जब परामर्शी व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) होता है तो वह एक कला के रूप में (as an Art) होता है और जब उसी परामर्श में वस्तुनिष्ठता (Objective) पर अधिक बल दिया जाता है तो परामर्श का स्वरूप वैज्ञानिक (Scientific Nature) में हो जाता है। इस प्रकार परामर्श विज्ञान भी है और कला भी है।

परामर्श के प्रकृति में निम्नलिखित का समावेश है-

(1) परामर्श एक ऐसी सतत् प्रक्रिया होती है जो परामर्शदाता तथा परामर्शी के मध्य अन्तक्रियात्मक सम्बन्ध के रूप में सम्पादित होती है।

(2) इसमें परामर्शदाता अपने शिक्षण-प्रशिक्षण, अनुभवों एवं मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर यथासम्भव परामर्शी को सहायता प्रदान करता है।

(3) पराममर्श विकासात्मक, उपचारात्मक तथा निरोधात्मक प्रकृति का होता है।

(4) परामर्श प्रक्रिया मूलतः व्यक्ति (परामर्शी) के हित की दिशा में होता है।

(5) इसका अन्तक्रियात्मक सम्बन्ध स्व-बोध, स्फूर्ति रुचि, सत्यनिष्ठ, आदर-सम्मान, निष्पक्षता, स्नेह तथा आचार संहिता इत्यादि पर आधारित होता है।

(6) परामर्श प्रक्रिया निम्न चरणों/पदों में या अवस्थाओं में सम्पन्न होती है- पूर्व तैयारी, आरम्भिक, मध्यवर्ती, परामर्श समापन तथा अनुवर्ती कार्य (follow-up-work)।

2. परामर्श परामर्शदाता और उपबोध्य के मध्य सम्बन्ध होता है Counselling is a Relationship Between Counseller and Counsellee)- परामर्श वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धान्त पर आधारित है। यह प्रत्येक व्यक्ति को स्व-निर्देशित बनाने का प्रयास करता है और उपबाध्य की व्यक्तिगत समस्याओं में अधिक रुचि रखता है। उपबोध्य के द्वारा परामर्शदाता को किस रूप स्वीकार किया जाता है, यह उपबोध्य के अधिगम से प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है।

3. परामर्श का संचालन सांवेगिक स्तर पर होता है (Counselling operates at Emotional Level)- निर्देशन व्यक्ति को स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार निर्देशन व्यक्ति के बौद्धिक स्तर पर सीमित होता है, जबकि परामर्श में निर्णय लेने का अधिगम संवेगात्मक स्तर पर संचालित होता है।

4. परामर्श सहायता प्रदान करने वाला सम्बन्ध है (Counselling is a Short of ‘Helping Relationship)- परामर्श के स्वरूप का एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु यह है कि यह सहायता प्रदत्त सम्बन्ध को प्रकट करता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के समय अनेक बार द्विविधा वाली स्थिति में पहुँच जाता है। ऐसे समय में सहायता प्रदत्त सम्बन्ध की स्थितियों में मनोवैज्ञानिक समस्याओं के समाधान में सहायता करता है। इस प्रकार का सम्बन्ध प्रायः माँ और बालक, छात्र और शिक्षक, पति और पत्नी, उपबोधक और उपबोध्य में पाये जाते हैं। सहायता देना या लेने सम्बन्धी सम्बन्ध निरन्तर आदि काल से चले आ रहे हैं, वही परामर्श का एक महत्त्वपूर्ण तत्व बन गया है। अब यही सम्बन्ध व्यावसायिक स्वरूप धारण करके विशिष्ट कार्य बन गया है।

5. आत्म-स्वायत्तता के स्तर तक पहुँचने में सहायक (Counselling Helps the Individuals to Reacha State of Self-autonomy)- परामर्श का लक्ष्य उपबोधक को स्वयं को समझने में सहायता करना है। इस उद्देश्य के लिये उपबोध्य के व्यवहार और अभिवृत्ति में परिवर्तन करना आवश्यक है। परामर्श व्यवहार परिवर्तन के समय उपबोध्य की भावनाओं पर ध्यान देता है। यह स्वज्ञान, स्व निदेशन और स्वप्रेरणा द्वारा उपबोध्य को आत्म-स्वायत्तता के स्तर पर पहुंचने में सहायता करता है।

6. यह मनोचिकित्सा नहीं है (Counselling is not Psychotheraphy)- कुछ विद्वानों के अनुसार मनोचिकित्सा ही व्यावसायिक परामर्श है। ऐसा चिन्तन गलत है क्योंकि मनोचिकित्सा में मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों का उपचार होता है, जबकि परामर्श में सामान्य व्यक्तियों को निर्णय लेने में सहायता की जाती है। इस प्रकार से परामर्श मनोचिकित्सा से भिन्न स्वतंत्र अस्तित्व वाला होता है।

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