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परामर्श के सिद्धान्त | Principles of Counselling in Hindi

परामर्श के सिद्धान्त | Principles of Counselling in Hindi
परामर्श के सिद्धान्त | Principles of Counselling in Hindi

परामर्श के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

परामर्श के सिद्धान्त (Principles of Counselling)- परामर्श एक विशेष प्रक्रिया कुप्पूस्वामी ने परामर्श में परामर्श का आचरण, परामर्श प्रदान का स्थान, परामर्श प्रदान की अवधि तथा परामर्शदाता के कर्तव्य को सम्मिलित किया है।

कुप्पूस्वामी द्वारा गिनाये गये सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर परामर्श के विषय में निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिये-

(i) परामर्श की अवधि 30 या 40 मिनट से अधिक न हो।

(ii) परामर्श प्रदान करने में शीघ्रता न की जाए।

(iii) परामर्श यथासम्भव शान्त और एकान्तपूर्ण स्थान और सुविधा प्रदान करने वाला हो।

(iv) परामर्श कक्ष में आवश्यकता से अधिक फर्नीचर न हो।

(v) परामर्शदाता का कर्त्तव्य है कि वह परामर्श प्रार्थी को प्रत्येक बात को शान्ति और धैर्यपूर्वक सुने।

(vi) परामर्शदाता को परामर्शप्रार्थी से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।

(vii) परामर्श प्रार्थी परामर्शदाता का यथासम्भव विश्वास प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

(viii) परामर्शदाता को परामर्शप्रार्थी द्वारा बताई बातों को किसी को नहीं बताना चाहिए।

परामर्श की सफलता हेतु A.J. Jones ने चार मूलभूत अवधारणों को बताया है-

(1) परामर्श प्रक्रिया को संचालित करने के लिए सर्वप्रथम अनुकूलित परिवेश का होना आवश्यक है तथा इस परिवश में गोपनीयता का विश्वास होना जरूरी है।

(2) परामर्श की प्रक्रिया जब तक विद्यार्थी पूर्णरूपेण इच्छा से भाग नहीं लेता सफल

(3) परामर्शदाता के पास प्रभावशाली कार्य करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण, अनुभव व्यक्तिगत दृष्टिकोण का होना आवश्यक है तथा विद्यार्थी के साथ सामंजस्य करने की योग्यता हो जिससे उद्देश्यों और लक्ष्यों को निर्धारित करने में सेवार्थी की सहायता कर सके।

(4) परामर्श इस प्रकार का सम्बन्ध प्रदान करे, जो तात्कालिक एवं दीर्घ कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। परामर्शदाता उस समय उपलब्ध हो जब सेवार्थी को किसी विशिष्ट सहायता के लिए उसकी आवश्यकता हो।

जी.डब्ल्यू. आलपोर्ट (GW.Alloprt) ने परामर्श की दो अवधारणाओं को बताया नहीं हो सकती है।

(1) व्यक्ति व्यवहार को सीखता है और वह सुधार के योग्य होता है। परामर्श व्यक्ति में परिवर्तन का उत्तरदायित्व लेता है और उसमें परिवर्तनों के आधार पर समायोजन करने की क्षमता उत्पन्न करता है।

(2) परामर्श सीखने की परिस्थिति है, जिसमें व्यक्ति जीवन में समायोजन करने की नई-नई विधियों को सीखता है।

परामर्श का नवीन उपागम विधि पर आधारित न होकर परामर्शदाता की अभिवृत्तियों पर आधारित है। इसके अनुसार परमार्शदाता का दृष्टिकोण अधिकारात्मक के अतिरिक्त जनतान्त्रिक होना चाहिए।

विलियमसन (Williamson) ने परामर्श की परिस्थितियों से सम्बन्धित अवधारणाओं को बताया है।

परामर्श का परिणाम तभी उत्तम होगा जब विद्यार्थी इसे स्वेच्छा से चुनेंगे।

सभी विद्यार्थी स्वयं को ठीक प्रकार से समझने के लिए परामर्श सेवा का लाभ उठा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल समस्या से ग्रसित विद्यार्थी ही परामर्श सेवा का उपयोग कर सकते हैं।

परामर्श के विषय में यह धारणा व्यक्त की गई है कि परामर्श का उद्देश्य ओर इसके उपयोग में आने वाले साधन व्यक्ति के विकास में या इस दिशा में व्यक्ति की सहायता करेंगे।

व्यक्ति के विकास की समस्तता की ही धारणा नहीं करनी चाहिए। परामर्शदाता को यह तथ्य ठीक प्रकार से समझ लेना चाहिए।

भली-भाँति समायोजित, परिपक्व, व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों को उचित प्रकार से समझते हैं और सामाजिक वृद्धि को बढ़ावा देते हैं।

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