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स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ

स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ
स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ

स्रोत विधि (Source Method)

ज्ञानार्जन क्रिया में प्रत्यक्ष अनुभव का बहुत महत्त्व है। हम किसी वस्तु को अपनी आँखों से देखकर या कार्य करके जितना ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, उतना ज्ञान उस वस्तु या कार्य के विषय में पढ़कर शायद ही प्राप्त करते हैं। किसी नदी, पहाड़, कारखाने, बाँध आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए उनके विषय में सुनने अथवा पढ़ने की अपेक्षा उन्हें व्यक्तिगत रूप से जाकर देखने से अधिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। अतः किसी अन्य द्वारा बताये गये अनुभवों की अपेक्षा स्वयं प्राप्त अनुभव सदैव लाभप्रद एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रत्यक्ष अनुभवों के द्वारा वर्तमान को स्पष्ट किया जाता है। ये अनुभव अतीत को स्पष्ट करने में सहायता प्रदान नहीं कर पाते, क्योंकि अतीत की वस्तुएँ इस समय मौजूद नहीं हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम अशोक के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें अप्रत्यक्ष ज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा, क्योंकि न तो इस समय अशोक मौजूद है और न हमने उसको देखा है। अतः हमको अप्रत्यक्ष ज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा, परन्तु इस अप्रत्यक्ष ज्ञान को विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम प्रत्यक्ष बनाया जा सकता है। इन युक्तियों में स्रोतों (Sources) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अशोक के स्तम्भों, शिलालेखों, ताम्रपत्रों, विभिन्न अन्य मूर्तियों, खण्डहरों आदि के माध्यम से उसके व्यक्तित्व को मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि स्रोतों के माध्यम से अतीत को मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है।

मूल स्रोतों के विभिन्न रूप (Various Forms of Fundamental Sources) –

मूल स्रोत निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. भौतिक वस्तुएँ (Material Object) जैसे – खण्डहर, प्रतिमाएँ (Statues), यन्त्र, शस्त्र, वस्त्र आदि।

2. मौखिक विवरण (Oral Accounts) जैसे – गीत, विवरण, दन्त कथाएँ, परम्पराएँ आदि।

3. लिखित या मुद्रित अभिलेख (Written or Printed Record) जैसे- जरनल,हस्तलेख, डायरी, पत्र, सन्धियाँ, कानून, प्रतिवेदन आदि।

शिक्षण में स्रोतों का प्रयोग (Use of Sources in Teaching)

सामान्यतः स्रोतों का उपयोग इतिहास शिक्षण में होता है परन्तु सामाजिक अध्ययन भी अपनी विषय-वस्तु पर्याप्त मात्रा में इतिहास से प्राप्त करता है। इस कारण स्रोतों का प्रयोग उसके शिक्षण के हेत किया जा सकता है। वर्तमान परिस्थितियों, घटनाओं आदि पर बल देता है। इन वर्तमान परिस्थितियों, घटनाओं आदि के शिक्षण में स्रोतों का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, भारतीय संविधान, किसी विचाराधीन विधेयक की मूल प्रति, संसद की कार्यवाहियों के मूल रूप, विभिन्न विषयों से सम्बन्धित आँकड़े, संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख संस्थाओं में दिये गये भाषण, पंचवर्षीय योजनाओं की मूल प्रतियाँ, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख आदि सामग्रियाँ ऐसी हैं जिनका उपयोग वर्तमान समस्याओं, घटनाओं एवं परिस्थितियों को स्पष्ट करने में किया जा सकता है।

सामान्यतया स्रोत विधि को निम्नलिखित दो प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है

1. छात्रों को मौलिक स्रोतों का अध्ययन करने तथा उनके आधार पर अपना विवरण तैयार करने के लिये कहा जा सकता है, तथा

2. पाठ्य-पुस्तकों में प्राप्त ज्ञान को विस्तृत या समृद्ध बनाने के लिये स्रोतों के अध्ययन के लिये छात्रों से कहा जा सकता है।

उपरोक्त दोनों प्रकारों के अतिरिक्त मूल स्रोतों का प्रयोग प्रदर्शन करके भी किया जा सकता है। अध्यापक इनका प्रयोग विवादास्पद तथ्यों की जाँच के लिये भी करवा सकता है। अध्यापक कक्षा-शिक्षण में स्रोतों को निम्न प्रकार से प्रयुक्त कर सकता है-

अध्यापक प्रस्तुत प्रकरण से सम्बन्धित स्रोत के किसी सजीव अवतरण को कक्षा में प्रस्तुत करे। इसके पश्चात् वह स्रोतों के रचयिताओं के सम्बन्ध में संक्षेप में बताये। इसके अतिरिक्त उन्हें छात्रों से पढ़ने को कहे और उन पर प्रश्न पूछे जिससे उनका विश्लेषण करके वे अपना निर्णय लेने में समर्थ हो सकें।

स्रोत विधि के गुण (Merits of Source Method) –

स्रोत विधि के गुण अथवा लाभ को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –

1. यह विधि छात्रों को परीक्षा, तुलना या विश्लेषण करने का प्रशिक्षण प्रदान करती है।

2. इस विधि के द्वारा छात्रों की मानसिक शक्तियों का विकास होता है।

3. इस विधि के द्वारा छात्रों में प्रामाणिक बातों को पहचानने की क्षमता विकसित की जाती है।

4. यह विधि पाठ्य-पुस्तकों की विषय-वस्तु को समृद्ध बनाने में सहायता प्रदान करती है।

5. इस विधि के द्वारा छात्रों में प्रमाणों पर आधारित तथ्यों को ग्रहण करने की आदत का विकास किया जाता है।

स्रोत विधि के दोष अथवा सीमाएँ (Demerits/Limitations of Source Method) –

स्रोत विधि के दोष अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं

1. इस विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं में नहीं किया जा सकता है।

2. इस विधि को अपनाते समय ऐसी स्रोत-पुस्तकों का अभाव प्रतीत होता है जिसमें सभी स्रोतों का संकलन हो और जो माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिये उपयुक्त हों

3. विभिन्न स्रोतों के विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध होने के कारण छात्र इनका उचित उपयोग नहीं कर पाता क्योंकि उसे सभी भाषाओं का ज्ञान नहीं होता है।

प्राचीन काव्य के स्रोत संस्कृत, पाली, मध्यकालीन स्रोत उर्दू, अरबी, फारसी तथा आधुनिक काल के स्रोत अंग्रेजी, हिन्दी व विभिन्न भारतीय भाषाओं में पाये जाते हैं। आज का छात्र भाषा की कठिनाई के कारण इन स्रोतों का उपयोग कुशलता से नहीं कर पाता, क्योंकि उसे सभी भाषाओं का ज्ञान नहीं होता है। अतः छात्रों की सुविधा के लिये सभी स्रोतों का जनसाधारण की भाषा में अनुवाद किया जाना चाहिए।

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