B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष | Pracheen Shiksha Pranali Ke Gunn Aur Dosh

प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष
प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष

प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष

प्राचीन भारत की शिक्षा पद्धति की प्रसिद्धि केवल भारत में ही नहीं अपितु चीन, जापान, कोरिया, जावा, सुमात्रा, श्रीलंका तथा मध्य एशिया में भी रही है। इसी तथ्य से हम भारतीय पुरातन शिक्षा प्रणाली के महत्त्व को समझ सकते हैं। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के प्रमुख गुण व दोष निम्न प्रकार हैं-

भारतीय शिक्षा प्रणाली के प्रमुख गुण-

यह निम्न प्रकार हैं-

1. प्राचीन काल की भारतीय शिक्षा पद्धति का आधार धार्मिक होते हुए भी लगभग सभी वर्गों के छात्रों को शिक्षा का अवसर उपलब्ध था। बौद्ध धर्म के उत्पन्न होने के बाद बोलचाल की भाषा का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग होने लगा तथा इसके परिणामस्वरूप लगभग 80% व्यक्ति साक्षर थे।

2. स्त्री शिक्षा के भी पूर्ण अवसर विद्यमान थे। बौद्धकालीन शिक्षा पद्धति में स्त्रियाँ भिक्षुओं के समान ही संघों में रहती थी तथा अध्ययन करती थीं। उस समय की अनेक विदूषी महिलायें इतिहास में प्रसिद्ध हैं।

3. प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में भारतीय उद्योगों की भी प्रगति हुई तथा अनेक समीपवर्ती देशों में लोग हमारे कला व कौशल से प्रभावित हुये। चिकित्साशास्त्र के क्षेत्र में भी द्रुत गति से प्रगति हुई तथा औषधि विद्या के क्षेत्र में हम उस समय अग्रणी थे।

4. हमारी शिक्षा पद्धति के फलस्वरूप अनेक विषयों के प्रकाण्ड विद्वान हमारे यहाँ उत्पन्न हुये। अर्थशास्त्र के रचयिता चाणक्य के विचारों का आज भी लोहा माना जाता है। गणित में शून्य का आविष्कार भी सर्वप्रथम भारत में हुआ। इसी प्रकार दशमलव के ज्ञान के फलस्वरूप मनुष्य चाँद की यात्रा पर जाने में सक्षम हुआ। यूरोप व अरब के राष्ट्रों में गणित का ज्ञान हमारे देश से ही पहुंचा था। पाणिनी की व्याकरण का ज्ञान आज भी विश्व के चुनिंदा ग्रन्थों में शामिल किया जाता है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली के प्रमुख दोष-

यह निम्न प्रकार हैं

1. प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था का प्रभाव जगजाहिर है। इसके कारण ही हस्तगत कार्य करने वाले व्यक्तियों को निम्न स्तर का समझा जाता था। उच्च वर्ण के लोगों द्वारा व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहि नहीं किया गया इसी कारण नृत्य, संगीत, कला, गायन, चित्रकारी आदि कलाओं को शूद्रों व स्त्रियों के क्षेत्र का माने जाना लगा तथा इसी कारण शिक्षा जन्म के आधार पर ग्रहण की जाने लगी जिससे उसका विकास मार्ग अवरुद्ध हो गया।

2. बौद्ध काल में जनतन्त्र के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से स्वेच्छाचार भी बढ़ने लगा तथा संघ का नियन्त्रण ढीला पड़ गया। संघ का अनुशासन सर्वोपरि माना जाता था परन्तु जब संघ ही अनुशासनहीनता का शिकार हो गया तो शिक्षा का पतन होना स्वाभाविक था।

3. बौद्ध धर्म में अहिंसा को सर्वोपरि समझा जाता था इस कारण युद्ध कला, सैन्य शिक्षा, अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान आदि की कला को कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। इस कारण विद्यार्थी संसार के दुःखी होने का कारण व उसके निराकरण के उपाय ही खोजते रहे तथा जब विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया तो वे उनका सामना करने में समर्थ न हो सके।

4. हमारे देश का वातावरण धार्मिक होने के कारण हमारी सांसारिक प्रगति में भी बाधा उत्पन्न हुई। धार्मिक जनों के उपदेशों को सुनकर आम जनता भौतिक उन्नति से मुख मोड़ बैठी तथा शिक्षा का विराट रूप केवल धर्म के चारों ओर ही घूमता रहा व भौतिक तथा सांसारिक विषयों की अवहेलना तथा उपेक्षा की जाने लगी।

5. स्मृतियों, पुराणों आदि शास्त्रों को शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक महत्त्व दिया जाने लगा जिसके फलस्वरूप व्यक्ति यह समझने लगे कि जो शास्त्रों में लिखा है वहीं सत्य है इसके कारण जन सामान्य की तर्क क्षमता प्रभावित हुई तथा वे शास्त्रों व धर्म ग्रन्थों को ही शिक्षा व ज्ञान का स्रोत समझने लगे।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment