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सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय | Measures to Changing of Social Concern

सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय
सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय

सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय
Measures to Changing of Social Concern

सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय- सामान्य रूप से विचार किया जाय तो बालक-बालिका में भेद एवं शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिये अनेक उपाय किये जा सकते हैं जिनके द्वारा स्त्री-पुरुष के भेद को समाप्तकिया जा सकता है तथा शिक्षा की असमानता को दूर किया जा सकता है। इसका उपाय शिक्षा के माध्यम से समाज की सोच को परिवर्तित करना होगा। समाज ने जो भ्रमपूर्ण धारणाएँ बना रखी हैं उनका उन्मूलन करना होगा। समाज की मनोदशा को लैंगिक समानता एवं स्त्री-पुरुष समानता के प्रति प्रोत्साहित करने के लिये निम्नलिखित उपाय करने होंगे-

(1) समाज में पुरुष की प्रधानता को समाप्त करते हुए स्त्री को उसके समकक्ष लाने के उपाय करने चाहिये जैसे–पिता के नाम के साथ माता का नाम जोड़ना, विद्यालयी कार्यक्रमों में माता-पिता दोनों को आमन्त्रित करना तथा स्त्रियों को अपने जीवन में निर्णय लेने की छूट प्रदान करना।

(2) समाज में बालिकाओं को कमजोर समझने की धारणा को समाप्त करने के लिये बालिकाओं के द्वारा किये जाने वाले प्रशंसनीय एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये सम्मानित करना चाहिये जिससे समाज का प्रत्येक नागरिक समझ सके कि नारियाँ पुरुषों से कम नहीं हैं वरन्
अधिक योग्यता रखती हैं।

(3) धार्मिक साहित्य की भ्रामक व्याख्या एवं धर्म के गलत प्रसंगों के आधार पर नारी का अपमान करने का प्रयास नहीं करना चाहिये वरन् यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ की धारणा के आधार पर नारी का सम्मान करने के सभी उपाय करने चाहिये। नारी को शक्ति के रूप में तैयार करना चाहिये।

(4) समाज में बालिकाओं के प्रति व्याप्त नकारात्मक सोच को परिवर्तित करना चाहिये। जिस प्रकार पुत्र वंश चलाने के लिये आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार पुत्री के अभाव में भी वंश नहीं चल सकता है। इसलिये दोनों के साथ ही समान एवं सम्मानजनक व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिये।

(5) विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयों एवं रूढ़िवादी परम्पराओं को समाप्त करना चाहिये जिनसे समाज में बालिकाओं की उपेक्षा होती है; जैसे-दहेज के डर से व्यक्ति पुत्रियों के जन्म से घृणा करता है। इसलिये दहेज प्रथा को समाज से पूर्ण समाप्त कर देना चाहिये।

(6) नारी को आदिशक्ति के रूप में वैदिक काल से ही जाना जाता है। राधाकृष्ण एवं सीताराम दोनों में ही राधा एवं सीता को आदिशक्ति मानते हुए पहले स्मरण किया जाता है। इसी प्रकार समाज में प्रत्येक सामाजिक कार्यक्रमों में नारी को सम्मान प्रदान करने का प्रयास करना चाहिये।

(7) नारी को प्रदान किये जाने वाले अधिकारों के सन्दर्भ में यह प्रयास करना चाहिये कि जो अधिकार उसको दिये गये हैं उनका उपयोग स्वयं नारी द्वारा ही किया जाय। उसके पति द्वारा उसके अधिकारों का उपयोग करने से नारी की सामाजिक स्थिति और भी सोचनीय होती है।

(8) नारी में आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान की भावना उत्पन्न करनी चाहिये जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो सके तथा समाज में होने वाले शोषण एवं अन्याय के प्रति संघर्ष कर सके। जब नारी में इस प्रकार की आत्मचेतना जाग्रत होगी तो स्वाभाविक रूप से समाज में उसका सम्मान बढ़ेगा।

(9) नारी में उसकी व्यापक सोच को बढ़ावा देना चाहिये, नारी को नारी के शोषण के लिये बढ़ावा नहीं देना चाहिये वरन् उसको शोषण के विरुद्ध लड़ने की शक्ति प्रदान करनी चाहिये।

(10) गर्भ में बालिकाओं की हत्या को रोकने का प्रयास करना चाहिये। इसके लिये नारी को पूर्णतः इसका विरोध करना चाहिये जिससे कि उनका समाज में अनुपात कम न हो क्योंकि अधिक संख्या होने पर वह सामाजिक न्याय प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगी।

(11) समाज में नारी के सम्मान हेतु अनेक प्रकार के जनजागरण अभियान, आन्दोलन एवं यात्राएँ निकालनी चाहिये जिससे समाज के पुरुष वर्ग की आँखों पर गिरा परदा उठसके। इससे समाज की सोच परिवर्तित होगी तथा समाज के सभी व्यक्ति नारी का सम्मान कर सकेंगे।

उपरोक्त उपायों के आधार पर समाज की सोच को पूर्णत: परिवर्तित किया जा सकता है जिससे शैक्षिक अवसरों में असमानता की स्थिति को दूर करते हुए नारी को पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिल सकेगा। बालक बालिकाओं के समान भाव एवं समान शिक्षा से मानव समाज का सर्वांगीण विकास सम्भव हो सकेगा।

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