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विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi

विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक

विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक

विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक

विद्यालयी वातावरण को प्रभावित करने वाले दो प्रकार के व्यवहार हैं-

(I) नेतृत्व सम्बन्धी वातावरण (प्रधानाध्यापक का व्यवहार)-

इस व्यवहार को प्रशासनिक व्यवहार भी कहा जाता है-

1. अलगाव (Aloofness)-

अलगाव की भावना से अभिप्राय उस व्यवहार से है जिसमें उसका व्यवहार औपचारिक तथा निवैयक्तिक होता है। वह प्रत्येक कार्य को नियमों से करता है। वह अनौपचारिक सम्बन्धों में बहुत कम विश्वास करता है। उदाहरण के लिए-शिक्षकों की बैठकों का आयोजन निश्चित कार्यक्रमों के अनुसार होता है।

2. कार्य व परिणामों पर बल (Productin Emphasis)-

इस व्यवहार के अन्तर्गत प्रधानाध्यापक विद्यालय के कार्यो और अच्छे परिणामों के प्रति सचेत रहता है। वह शिक्षकों को आवश्यकतानुसार स्पष्ट आदेश देता है और वह विद्यालय के परीक्षा परिणाम ऊँचा रखना चाहता है। उदाहरण के लिए-शिक्षकों के अतिरिक्त कार्य निश्चित किये जाते हैं।

3. उदाहरण प्रस्तुत करना (Thrust)-

इसके अन्तर्गत प्रधानाध्यापक का वह व्यवहार देखा जाता है जो प्रेरणा देता है। उदाहरण के लिए प्रधानाध्यापक स्वयं तैयारी करके आते हैं।

4. मानवीय व्यवहार (Consideration)-

इस व्यवहार में यह देखा जाता है कि प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के मध्य कैसा सम्बन्ध है। वे परस्पर समस्याओं का समाधान कैसे करते हैं और शिक्षकों के लिए क्या कुछ करने को तत्पर रहते हैं। उदाहरण के लिए प्रधानाध्यापक शिक्षकों की व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में रुचि लेते हैं।

(II) समूह सम्बन्धी व्यवहार (शिक्षकों का व्यवहार)-

इस व्यवहार के अन्तर्गत समूह शिक्षकों के चार प्रकार के व्यवहार आते हैं, ये इस प्रकार हैं-

1. उदासीनता (Aloofness)-

उदासीनता की भावना से अभिप्राय शिक्षकों की उस अनुभूति से है जिसमें शिक्षकों द्वारा यह प्रदर्शित किया जाता है कि विद्यालय से उनका कोई लगाव नहीं है अर्थात् वे कभी विद्यालय को छोड़ने की बात करते हैं, कभी प्रतिकूल विचार वाले सदस्यों पर सामूहिक दबाव डालते हैं, कभी अन्य अध्यापकों को बैठक में बात करने पर बाधा पहुँचाते हैं और कभी बैठकों में बेतुके प्रश्न करते हैं। इस प्रकार वे विद्यालय के प्रति अपनी उदासीनता की भावना स्पष्ट करते हैं।

2. बाधा (Hindrance)-

बाधा या अवरोध की भावना जानने के लिए समूह की यह अनुभूति ज्ञात की जाती है कि प्रधानाध्यापक शिक्षकों को अनावश्यक कार्य देकर उन पर अधिक भार तो नहीं डालता है। इस अधिक कार्य भार से उनके वैयक्तिक विकास में कोई बाधा तो नहीं पड़ती है। उदाहरण के लिए दैनिक औपचारिकता शिक्षण कार्य में बाधा उत्पन्न करती है।

3. मनोबल (Espirit)-

मनोबल से शिक्षकों के संगठन में कार्य करने का पता चलता है और वे अपने कार्य से कितने सन्तुष्ट हैं। उनकी वैयक्तिक व सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है या नहीं और वे कितने उत्साह से कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए-शिक्षकों का मनोबल ऊँचा है, कक्षा कार्य के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध है अथवा बैठकों में कार्य को
समाप्त करने की भावना होती है।

4. घनिष्ठता (Intimacy)-

घनिष्ठता के माध्यम से शिक्षकों के आपसी सम्बन्धों का पता चलता है और यह पता चलता है कि वे साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं, आपस में हँसी-मजाक का आनन्द लेते हैं और उनकी सामाजिक आवश्यकताओं की समूह में सन्तुष्टि होती है। उदाहरण के लिये-शिक्षक दूसरे शिक्षक की पारिवारिक पृष्ठभूमि को जानते हैं।

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