B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi

शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त ( Principles of Educational Organization)

शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त

शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त

शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर लिखिए।

सभी संगठनों के चाहे वे छोटे हों अथवा बड़े, कुछ समान लक्षण होते हैं, तथा सफल कार्यान्विति हेतु उनका साधारण सिद्धान्तों पर आधारित होना आवश्यक होता है। संगठन के कुछ सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

1. उद्देश्य की एकता-

संगठन के उद्देश्य अथवा उद्देश्यों का स्पष्टतया निर्धारण तथा सम्बन्धित व्यक्तियों को उसका स्पष्ट ज्ञान, संगठन की सफलता के लिए अत्यावश्यक है। शैक्षिक संस्था जैसे जटिल संगठन के कई उद्देश्य होते हैं तथा इसका निर्धारण विचारपूर्वक किया जाना अपेक्षित है।

2. कार्य एवं पदों का निर्णय-

सामान्य शैक्षिक उद्देश्यों एवं विद्यालय के विशिष्ट उद्देश्यों के निर्धारण के पश्चात् उनकी पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार के आवश्यक कार्यों एवं पदों का निर्णय किया जाना आवश्यक है। ये कार्य तीन प्रकार के हो सकते हैं- प्रशासनिक, शैक्षिक और अर्द्ध-शैक्षिक-प्रशासनिक। कार्यों के निश्चित होने के उपरान्त इन कार्यों को सम्पन्न करने हेतु आवश्यक पदों का निर्णय करना आवश्यक होता है। प्रशासन का समस्त उत्तरदायित्व विद्यालय प्रधान होता है और उसे इस कार्य में लिपिक वर्ग तथा शिक्षक वर्ग के कुछ सदस्यों से सहायता प्राप्त होती है।

3. कार्यकारी प्रधान-

प्रत्येक संगठन में एक कार्यकारी प्रधान का होना आवश्यक है। अन्यथा संगठन की विभिन्न प्रवृत्तियों एवं विभिन्न व्यक्तियों के प्रयासों का समायोजन सम्भव नहीं होता। यद्यपि संगठन के अन्तर्गत एक से अधिक व्यक्तियों में विभाजित करने के कई प्रयोग गत वर्षों से किए हैं, परन्तु वे सब असफल रहे।

4. अधिकार और उत्तरदायित्व-

संगठन के सदस्यों को कार्य का उत्तरदायित्व देने के साथ-साथ उस कार्य को सम्पन्न करने हेतु आवश्यक अधिकार भी देना आवश्यक है। अधिकार का उपयोग सभी प्रकार के संगठनों में आवश्यक होता है चाहे वे प्रजातन्त्रात्मक हों अथवा एकतन्त्रात्मक; इनमें वास्तविक अन्तर अधिकार के स्रोत तथा उसकी उपयोग विधि में है।

5. संगठन की कर्मचारियों सम्बन्धी नीतियाँ-

संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु यह आवश्यक है कि उसके समस्त कर्मचारी अपने-अपने कार्य में कुशल हों तथा उसे सम्पन्न करने का पूर्ण प्रयास करें इसलिए संगठन की नीति के अन्तर्गत योग्य व्यक्तियों के चयन, अनुभवहीन व्यक्तियों के प्रशिक्षण, अयोग्य व्यक्तियों की सेवा-निवृत्ति तथा कार्य-सम्पादन हेतु उचित प्रोत्साहनों का प्रावधान किया जाना आवश्यक है।

6. संगठन के अन्तर्गत अधिकार-व्यवस्था-

अधिकार की दृष्टि से संगठन का गठन अधिकार-सोपान अर्थात् विभिन्न स्तरीय अधिकारों के आधार पर किया जा सकता अधिकार-सोपान के आधार पर गठित संगठन में सर्वोपरि अधिकार सम्पन्न व्यक्ति संगठन-प्रधान होता है और संगठन में अधिकार का प्रयोग ऊपर से नीचे तक एक औपचारिक विधि द्वारा किया जाता है। यह विधि प्रायः सब संगठनों में पायी जाती है।

7. नियोजन एवं निर्णय लेने सम्बन्धी विधि का प्रावधान-

प्रत्येक संगठन में प्रभावशाली नियोजन और निर्णय लेने की विधि का स्पष्ट प्रावधान होना आवश्यक है। नीति, लक्ष्य, कार्यक्रम सब नियोजन प्रक्रिया द्वारा निश्चित किए जाते हैं। यह निर्णय करना होता है कि कौन से उद्देश्य, लक्ष्य नीति एवं कार्यक्रम संगठन के लिए निर्धारित किए जाएँ।

8. संगठन के अन्तर्गत उसके कार्य एवं प्रक्रिया के मूल्यांकन का प्रावधान-

किसी भी संगठन की प्रगति के लिए उसका सामाजिक मूल्यांकन करना आवश्यक है। कोई भी प्रवृत्ति बिना सामयिक मूल्यांकन के फलविहीन होती है। अन्य समस्त सिद्धान्तों की उपादेयता मूल्यांकन द्वारा ही सिद्ध होती है। मूल्यांकन का सिद्धान्त स्वीकृत नीति तथा कार्यक्रमों के लिए ही लागू नहीं होता बल्कि वह संगठन की संरचना के लिए भी सत्य है। मूल्यांकन के आधार पर ही संगठन की नीति, उसके कार्यक्रम एवं प्रक्रिया की दुर्बलताओं का ज्ञान हो सकता है और उसके आधार पर उनमें आवश्यक परिवर्तन करना सम्भव होता है। संगठन की सफलता इस प्रकार बहुत कुछ मूल्यांकन पर निर्भर करती है, इसलिए संगठन के अन्तर्गत सामयिक मूल्यांकन का प्रावधान किया जाना आवश्यक है।

शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर

प्रबन्धन शैक्षिक संगठन
प्रबन्धन का कार्य स्टाफ के निर्देशन एवं
अभिप्रेरणा द्वारा होता है।
संगठन संस्था के समस्त स्टाफ के बीच सम्बन्धों को व्यक्त करता है।
प्रबन्धन संस्था का हृदय होता है। संगठन संस्था का शरीर होता है।
प्रबन्धन क्रियात्मक भूमिका का निर्वाहन करता है। संगठन प्रशासन एवं प्रबन्धन में समन्वय स्थापित करता है।
प्रबन्धन कर्मचारियों से प्रभावित होता है। संगठन विभागों के कार्यों में परस्पर सम्बन्धों तथा संयोजन से प्रभावित होता है।
प्रबन्धन संगठन को सजीव एवं गतिशील
बनाता है।
संगठन एक निर्जीव ढाँचा होता है।
प्रबन्धन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नीतियों के क्रियान्वयन का कार्य करता है। संगठन प्रबन्धन के लिए एक आधार का निर्माण करता है।
प्रबन्धन मध्य एवं निम्न स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है। संगठन का कार्य प्रशासन एवं प्रबन्धन के परस्पर सहयोग पर निर्भर करता है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment