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Bauddh Kaleen Shiksha Ke Gun Aur Dosh | बौद्ध शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष

Bauddh Kaleen Shiksha Ke Gun Aur Dosh
Bauddh Kaleen Shiksha Ke Gun Aur Dosh

Bauddh Kaleen Shiksha Ke Gun Aur Dosh in Hindi

बौद्ध शिक्षा प्रणाली के गुण

बौद्ध शिक्षा प्रणाली के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) केन्द्रीय शासन-वैदिक काल में शिक्षा पर गुरुओं का नियन्त्रण होता था। बौद्धकाल में शिक्षा पर संघों का नियंत्रण हो गया जिससे शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई अर्थात् शिक्षा में एकरूपता आयी तथा इनका संचालन केन्द्रीय प्रशासन द्वारा सुचारू रूप से होने लगा।

(2) सभी को शिक्षा का समान अधिकार वैदिक काल में शूद्रों तथा स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। बौद्धकाल में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वर्ण के व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार थे, जिससे जाति और लिंग के भेदभाव के कारण पिछड़ी हुई शिक्षा को एक नई दिशा मिली।

(3) निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा – बौद्धकाल में प्राथमिक शिक्षा के लिए छात्रों से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है। बौद्धकाल में नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था से सभी धर्म व जातियों के बालकों के लिए शिक्षा प्राप्ति सुलभ हो गयी।

(4) लोकभाषा के माध्यम से शिक्षा बौद्ध धर्म के प्रर्वतक महात्मा बुद्ध शिक्षा का माध्यम लोकभाषा को बनाना चाहते थे जिससे किसी को भी शिक्षा प्राप्त करने में असुविधा न हो।

(5) गुरु और शिष्य का संयमित जीवन बौद्ध शिक्षा प्रणाली में मठों व विहारों में छात्रों के आचरण पर पूरी तरह दृष्टि रखी जाती थी। गुरु व शिष्यों को आचरण सम्बन्धी नियमों का पालन कर संयमित जीवन जीना होता था। गुरु और शिष्य दोनों अपने जीवन में संयम लाते थे और अनुशासित रहते थे।

(6) भव्य शिक्षण संस्थाओं का निर्माण भारत में विद्यालय शिक्षा का निर्माण सबसे पहले बौद्धकाल में ही हुआ। उस समय के मठ एवं विहार भव्य भवन में स्थापित होते थे। उसमें छात्रों के पढ़ने के लिए बड़े-बड़े कमरे तथा पुस्तकालय भी होते थे।

(7) धार्मिक शिक्षा के साथ मानवतावादी शिक्षा पर बल बौद्धकाल में धार्मिक शिक्षा के
साथ बौद्ध धर्म का ज्ञान भी कराया जाता था साथ ही मानवतावादी शिक्षा भी प्रदान की जाती थी जो मानव के कल्याण एवं राष्ट्र सेवा पर आधारित थी।

(8) स्त्रियों के लिए शिक्षा व्यवस्था बौद्धकाल में पुरुषों की तरह स्त्रियों के लिए भी समान शिक्षा की व्यवस्था होती थी। मठों व विहारों के कठोर अनुशासन के नियमों के कारण बालिकायें इनमें प्रवेश नहीं लेती थीं परन्तु उन्हें भी शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार था।

बौद्ध शिक्षा प्रणाली के दोष 

वैदिककालीन शिक्षा के पतन के साथ-साथ बौद्धकालीन शिक्षा का प्रादुर्भाव होने लगा था। बौद्ध शिक्षा में वैदिक शिक्षा के समान ही शिक्षा को आध्यात्मिक उपलब्धियों का साधन माना गया था। महात्मा बुद्ध ने इस संसार के समस्त दुःखों का मूल कारण अविद्या या अज्ञान को माना था। अर्थात् बौद्धकालीन शिक्षा का उद्देश्य सच्चा ज्ञान प्राप्त करना होता था, उसी से सभी कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता था। बौद्धकालीन शिक्षा में अनेकों अच्छाइयाँ होने के साथ-साथ कुछ दोष भी थे। इस शिक्षा में कुछ दोष तो प्रारम्भिक थे तथा कुछ दोष बाद में आ गए थे। ये दोष निम्नलिखित है-

बौद्धकालीन शिक्षा के प्रारम्भिक दोष-

बौद्धकालीन शिक्षा के प्रारम्भिक दोष निम्नलिखित थे-

1. स्त्री शिक्षा की अपर्याप्तता एवं उपेक्षा।
2. सैनिक शिक्षा की उपेक्षा एवं अभाव।
3. धार्मिक प्रचार का संकुचित दृष्टिकोण ।
4. लौकिक जीवन तथा लौकिक विषयों की उपेक्षा।
5. गुरु शिष्य में केवल वरिष्ठता का अन्तर होना।
6. छात्र जीवन के कठोर नियम।

बौद्धकालीन शिक्षा के दौरान उत्पन्न दोष-

यद्यपि बौद्धकालीन शिक्षा में अनेक अच्छाइयों के साथ प्रारम्भ हुई थी किन्तु कालान्तर में इसमें कुछ दोष भी आ गए थे जो इस काल के पतन का कारण सिद्ध हुए। वास्तविकता तो यह है कि बौद्ध शिक्षा की श्रेष्ठता के कारण ही उसके पतन के कारण बन गए-यह दोष निम्नवत् थे-

1. आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त जीवन ने समाज के अवान्छित तत्वों को विहारों की ओर आकृष्ट किया।

2. जनतान्त्रिक अवस्था के कारण इन लोगों के लिए विहारों का प्रबन्ध अपने हाथों में लेना सम्भव हो सका।

3. विहारों की विशाल सम्पत्ति का लाभ उठाते हुए इन अराजक तत्वों ने विहारों को षड्यन्त्रों का अड्डा बना दिया था।

4. आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत अत्यन्त कठिन एवं भार स्वरूप हो गया जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भिक्षुकगण व्यभिचारी बन गए थे।

5. मठ तथा विहारों में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया था।

6. प्रशासनिक अधिकारियों के ध्यान न दिये जाने के कारण ज्ञान के यह पवित्र मन्दिर अनाचार और व्यभिचार के केन्द्र बन चुके थे।

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