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निरीक्षित अध्ययन विधि | Supervised Study Method in Hindi

निरीक्षित अध्ययन विधि - प्रयोग, गुण और दोष
निरीक्षित अध्ययन विधि – प्रयोग, गुण और दोष

निरीक्षित अध्ययन विधि (Supervised Study Method)

निरीक्षित अध्ययन विधि का जन्म मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा हुआ, इसलिए यह विधि बालक की रुचियों पर बल देती है। इसके द्वारा छात्र स्वयं क्रियाशील रहकर सीखता है। इस विधि द्वारा पुरातन विधियों के दोषों को दूर किया जाता है। इस विधि का प्रयोग अध्ययन-कक्ष या अध्ययनशाला में पूर्व निर्धारित कार्य के सम्बन्ध में किया जाता है और उसका शिक्षकों द्वारा निरीक्षण एवं निर्देशन किया जाता है। इस विधि को निर्देशित अध्ययन पद्धति’ (Directed Study Method) के नाम से भी पुकारा जाता है। सामाजिक विषयों के शिक्षण में यह विधि बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। जैसाकि हम जानते हैं कि सामाजिक अध्ययन वह अध्ययन है जिसमें विभिन्न क्रियाओं, योजनाओं, समस्याओं आदि का समावेश होता है। इनके शिक्षण के लिए यह विधि अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। इसमें छात्रों को कार्य दे दिया जाता है। इसके उपरान्त छात्र अपने-अपने कार्य में संलग्न हो जाते हैं और शिक्षक उनके कार्य का निरीक्षण करता है। इसके अतिरिक्त वह निर्देशन भी प्रदान करता है। निर्देशन हेतु पृथक् रूप से एक और शिक्षक भी नियुक्त किया जा सकता है। छात्र शिक्षक से अपनी कठिनाइयों एवं समस्याओं का समाधान कराते रहते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि इस पद्धति के प्रयोग से छात्रों की शिक्षालय की समस्त क्रियाओं का निरीक्षण एवं निर्देशन किया जाता है। परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि अध्ययनशाला में उन्हीं क्रियाओं का निरीक्षण एवं निर्देशन हो पायेगा जोकि निर्धारित कार्य से सम्बन्धित हैं। वस्तुतः यह एक रीति या प्रविधि (Technique) है जिसका प्रयोग अन्य पद्धतियों के साथ में किया जा सकता है, परन्तु कुछ विद्वान् इसे पृथक् विधि के रूप में ग्रहण करते हैं।

निरीक्षित अध्ययन विधि का प्रयोग (Use of Supervised Study Method)

प्रो० बाइनिंग व बाइनिंग ने इसके प्रयोग के लिए निम्नलिखित योजनाएँ प्रस्तुत की हैं-

(1) सम्मेलन योजना – इस योजना द्वारा पिछड़े हुए बालकों की शिक्षा का उपयुक्त ढंग से प्रबन्ध हो जाता है। इसके द्वारा उन बालकों को शिक्षा दी जाती है जो कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के साथ नहीं चल पाते। इनको विशिष्ट सम्मेलन आयोजित करके शिक्षा प्रदान की जाती है। इस योजना द्वारा इनकी व्यक्तिगत कठिनाइयों का समाधान सुविधापूर्वक किया जाता है। यह योजना विशेष कक्षा के समकक्ष प्रतीत होती है।

(2) विशिष्ट शिक्षक योजना – यह योजना सम्मेलन योजना से सम्बन्धित है। इसमें छात्र को विशिष्ट अध्यापक या अतिरिक्त शिक्षक नियुक्त करके सहायता प्रदान की जाती है। इसके द्वारा छात्रों को अतिरिक्त अध्ययन एवं निर्देशन प्राप्त हो जाता है

(3) काल-विभाजन योजना – इस योजना के अन्तर्गत छात्रों को अध्ययन हेतु कार्य दे दिया जाता है जिसका निर्देशन एक शिक्षक द्वारा तथा निरीक्षण दूसरे शिक्षक द्वारा किया जाता है। यह योजना मितव्ययी है क्योंकि निरीक्षण करने वाला शिक्षक कम समय में कठिनाइयों एवं समस्याओं को जानने में समर्थ हो जाता है तथा निर्देशन करने वाला अध्यापक भी बहुत कम समय में अधिक-से-अधिक छात्रों को निर्देशित कर सकता है।

(4) द्वि-काल योजना – इसमें पाठ्य-वस्तु द्वि समय चक्रों के लिए प्रदान कर दी जाती है। प्रथम समय चक्र में छात्रों को निर्धारित कार्यों से सम्बन्धित बातों का ज्ञान कराया जाता है तथा दूसरे में वे निरीक्षण या निर्देशित अध्ययन करते हैं। मेबेल ने 90 मिनट के समय को अधोलिखित रूप में विभक्त किया है –

1. पुनर्निरीक्षण (Revision) 25 मिनट
2. कार्य-निर्धारण (Assignment) 25 मिनट
3. शारीरिक व्यायाम (Phsical Excercise) 5 मिनट
4. निर्धारित कार्य का अध्ययन (Study of Assignment) 35 मिनट

(5) सामयिक योजना – निरीक्षण अध्ययन की यह योजना क्रमिक रूप से प्रस्तुत न करके सामयिक रूप से प्रयोग में लायी जाती है। शिक्षक इसका प्रयोग महीने में एक बार या दो बार कर सकता है। उदाहरणार्थ-

निर्धारित कार्य जाति-प्रथा

शिक्षक इस पद्धति के प्रयोग के लिए छात्रों को दो भागों में विभक्त कर सकता है – पिछड़े बालकों का वर्ग तथा सामान्य बालकों का वर्ग। वह समस्त छात्रों को एक ही वर्ग में रखकर अपने कार्य का निर्धारण करेगा। जाति-प्रथा के विषय में शिक्षक सर्वप्रथम पूरी कक्षा के समक्ष एक सूक्ष्म विवेचना प्रस्तुत करेगा। वह इस विवेचना में इसके प्राचीन रूप, विकास तथा वर्तमान स्थिति के बारे में बताएगा। इस जानकारी के उपरान्त छात्र अपने-अपने कार्य में संलग्न हो जायेंगे। शिक्षक इस समय निरीक्षण करेगा और व्यक्तित्व एवं सामूहिक दोनों रूप से. उनकी कठिनाइयों एव समस्याओं का समाधान करेगा। इस समय वह कार्य से सम्बन्धित सामग्री के विषय में छात्रों को निर्देशित भी करेगा।

निरीक्षित अध्ययन विधि के गुण (Merits of Supervised Study Method) –

इस विधि के गुण अथवा लाभ को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –

1. निरीक्षित अध्ययन विधि विषय की समस्या को हल करने में बहुत सहायक है।

2. इस विधि के द्वारा वैयक्तिक भिन्नता के अनुकूल शिक्षा दी जाती है; जो इस पद्धति का प्रमुख गुण है

3. इस विधि के माध्यम से छात्र तथा अध्यापक के सम्बन्ध उत्तम हो जाते हैं।

4. यह विधि पिछड़े बालकों को उचित ढंग से शिक्षा देने में लाभकारी है।

5. इस विधि के प्रयोग से छात्रों में विभिन्न कुशलताओं, गुणों तथा आदतों का विकास होता है।

निरीक्षित अध्ययन विधि के दोष (Demerits of Supervised Study Method)-

निरीक्षित अध्ययन विधि के दोष निम्नलिखित हैं –

1. यह विधि अधिक खर्चीली है तथा इसमें समय भी अधिक लगता है।

2. इस विधि में कभी-कभी छात्रों की आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की प्रवृत्ति को आघात पहुँचता है।

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