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प्राथमिक शिक्षा का अर्थ | प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य | प्राथमिक शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ
प्राथमिक शिक्षा का अर्थ

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ (Meaning of Elementary Education in Hindi)

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ (Meaning of Elementary Education)-प्राथमिक शब्द का सामान्य अर्थ है – प्रारम्भिक या मुख्य । इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा का अर्थ हुआ – प्रारम्भिक शिक्षा या मुख्य शिक्षा। बच्चों को प्रारम्भ में दी जाने वाली शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा कहते हैं।

शिक्षा आगे की शिक्षा की नींव होती है, इसलिये इसे मुख्य शिक्षा भी कहते हैं। वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों में होती थी। वैदिक काल में शिक्षा का निश्चित स्वरूप नहीं था। बौद्धकाल में बौद्धों ने अपने मठों एवं विहारों में प्राथमिक शिक्षा की शुरू की। बौद्ध मठों एवं बिहारों का संचालन बौद्ध संघों द्वारा होता था। अत: इनकी शिक्षा का एक निश्चित स्वरूप था। इनकी समयावधि तथा पाठ्यचर्या भी निश्चित थी। इस काल में ब्राह्मणों ने भी प्राथमिक शिक्षा पाठशालाओं की स्थापना की। ये पाठशालायें व्यक्तिगत नियन्त्रण में थी। इनका कोई निश्चित स्वरूप नहीं था। मुस्लिम काल में मुसलमानों ने प्राथमिक शिक्षा के लिए मकतबों का निर्माण किया और इनमें अरबी-फारसी और इस्लाम धर्म की शिक्षा को अनिवार्य किया। ईसाई मिशनरियों के आने के बाद देश में एक तीसरे प्रकार की शिक्षा की शुरुआत हुई। जिसमें कक्षा 1 से 4 अथवा 5 तक की शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा कहा गया। इसका एक निश्चित पाठ्यक्रम तैयार किया गया। गाँधी जी ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा योजना’ के अन्तर्गत 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा को अनिवार्य एवं निशुल्क करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने मातृभाषा एवं हस्त कौशल को अपनी पाठ्यचर्या में मुख्य स्थान दिया। बस तभी से हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा से अर्थ कक्षा 1 से 8 तक की आधारभूत शिक्षा से लिया जाने लगा। बाद में यह दो भागों में विभक्त हो गयी- निम्न प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 5 तक) और उच्च प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 6 से 8 तक)

प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Elementory Education)

सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा आयोग (हण्टर कमीशन, 1882) ने प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों के
विषय में अपने विचार व्यक्त किये। आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के सिर्फ दो ही उद्देश्यों के बारे में बताया-

1. जन शिक्षा का प्रसार
2. व्यावहारिक जीवन की शिक्षा

तब से लेकर आजतक इन्हीं उद्देश्यों को मुख्य आधार मानते हुए, प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किय गये हैं जो निम्न हैं

1. बच्चों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों के बारे में जानकारी देना।

2. बच्चों को भाषा तथा पर्यावरण का ज्ञान कराना।

3. बच्चों को शारीरिक श्रम के अवसर देना, तथा उनसे होने वाले लाभों के बारे में बताना।

4. बच्चों में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करना।

5. बच्चों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना।

6. बच्चों को एक-दूसरे का सम्मान करना सीखाना एवं सर्वधर्म समभाव की भावना जाग्रत करना।

7. बच्चों में सांस्कृतिक सहिष्णुता का विकास करना एवं उन्हें प्रेम, सहानुभूति और सहयोग से
कार्य करने की ओर प्रेरित करना।

प्राथमिक शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता (Importance and Need of Primary Education)

मानव जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व है। शिक्षा के बिना मानव जीवन के विकास की कल्पना करना संभव नहीं है। शिक्षा ही हमें सामाजिक, आर्थिक रूप से सक्षम बनाती है। शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च और विशिष्ट वर्गों में बाँटा गया है, सभी वर्गों की शिक्षा का अपना महत्व है। प्राथमिक शिक्षा को मनुष्य के विकास की नींव माना जाता है।

(1) प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा की नींव का पत्थर है (Primary Education is a Foundation Stone of Education)-प्राथमिक शिक्षा में सर्वप्रथम बच्चों को सम्प्रेषण के माध्यम से भाषा का ज्ञान कराया जाता है। बच्चों को वस्तुओं को देखकर तथा छूकर उनमें देखने-समझने की शक्ति विकसित की जाती है। खेल-खेल में बच्चों में कौशलों का विकास किया जाता है। ये सब आगे की शिक्षा के साधन होते हैं, इन्ही पर आगे की शिक्षा निर्भर करती है।

इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा आगे की शिक्षा की नींव होती है। यदि यह नींव कमजोर होगी तो मानव का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पायेगा। अत: प्राथमिक शिक्षा मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक होती है।

(2) प्राथमिक शिक्षा व्यक्तित्व निर्माण का आधार है (Primary Education is a Base Of Personality Development)- मनोवैज्ञानिको ने अपने प्रयोगों के आधार पर पाया कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण सर्वाधिक इसके शिशु काल में होता है। इस समय जैसी नीव रखी जाती है, बच्चे भविष्य में वैसे ही बनते हैं। यही वह समय है जब बच्चों को सही दिशा दी जा सके। प्राथमिक विद्यालयों मैं बच्चों का सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास किया जाता है और मानव व्यवहार में प्रशिक्षित किया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा का मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

(3) प्राथमिक शिक्षा जन शिक्षा है (Primary Education is a Mass Education)- जो शिक्षा सबके लिए अनिवार्य होती है, उसे ही सामान्य रूप से जन शिक्षा कहते हैं। आजकल सभी देशों मे प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क हो गयी है। तभी जो प्रौढ़ व्यक्ति बचपन में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाये हैं, उन्हें प्राथमिक शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा के रूप में बाद में दी जाती है।

(4) प्राथमिक शिक्षा सामान्य जीवन की शिक्षा है (Primary Education is a Education of General life)– प्राथमिक शिक्षा को जन शिक्षा कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा सभी व्यक्तियों अर्थात् बालकों को सामान्य जीवन की शिक्षा दी जाती है। प्राथमिक शिक्षा विकासशील देशों के विकास में अहम भूमिका निभाती है। प्राथमिक शिक्षा बालक की भौतिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक, नैतिक आवश्यकताओं को पूरा करके उसके व्यक्तित्व का विकास करती है। यह शिक्ष बालकों में नैतिक गुणों को उत्पन्न करती है तथा देश प्रेम की भावना जाग्रत करती है।

(5) प्राथमिक शिक्षा भारत के व्यक्तित्यों की पूर्ण शिक्षा है (Primary Education is a Complete Education of India’s Persons) – प्राथमिक शिक्षा का महत्व भारत में और भी बढ़ जाता है क्योंकि अधिकांश बच्चे प्राथमिक शिक्षा के बाद विद्यालय छोड़ देते हैं। अधिकांश बच्चों के लिए तो यही प्राथमिक शिक्षा पूर्ण शिक्षा है। अत: यह आवश्यक है कि प्राथमिक शिक्षा का विस्तार किया जाए और इसे दृढ़ बनाया जाए।

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