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Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye | बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताएँ 

Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye
Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye

Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye | बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताएँ 

Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye -बौद्ध कालीन शिक्षा के दो स्तर प्रमुख थे-

(1) प्राथमिक स्तर- जातक कथाओं से प्राप्त जानकारी के अनुसार बौद्ध काल की प्राथमिक शिक्षा सांसारिक शिक्षा के रूप में दी जाती थी। इस सम्बन्ध में फाह्यान ने भी सामान्य अथवा प्राथमिक शिक्षा की चर्चा अपने ग्रन्थों में की है।

(2) उच्च स्तर-इस सम्बन्ध में प्रो. अल्तेकर के अनुसार-“मठों ने अपनी उच्च शिक्षा की योग्यता से, जहाँ अध्ययन करने के लिए चीन, कोरिया, तिब्बत, जावा जैसे सुदूर देशों के छात्रों को आकर्षित किया है, वहीं भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति को भी ऊँचा उठा दिया है।”

Characteristics of Buddhist Education in Hindi | Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtaye | बौद्ध कालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ

बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

1. शिक्षा प्राप्त करने की योग्यता-

इस युग में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चाण्डालों को छोड़कर सभी वर्गों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। अस्वस्थ, रोगी, असम्मानीय विकलांग एवं दण्डित लोगों को शिक्षा का पात्र नहीं समझा जाता था। शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु 8 वर्ष होती थी तथा 12 वर्ष की आयु तक विद्यार्थी ऋण की अवस्था में रहता था। 20 वर्ष की आयु के बाद वह भिक्षु बन सकता था।

2. पब्बजा संस्कार-

बौद्ध मठों एवं विहारों में सभी जाति के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश दिया जाता था किन्तु अस्वस्थ, विकलांग, नपुंसक, डाकू या राज्य द्वारा दण्डित तथा राज्य कर्मचारियों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश की आयु 6 वर्ष थी। प्रवेश के समय बालकों का पब्बजा संस्कार होता था।

पब्बज्जा का अर्थ है बाहर जाना क्योंकि उस समय बच्चे शिक्षा हेतु परिवार छोड़कर मठों अथवा विहारों में जाते थे। प्रवेश के समय होने वाले इस संस्कार को पब्बजा संस्कार कहा जाता था। बौद्ध ग्रन्थ महावग्ग में इस संस्कार का विस्तार से वर्णन किया जाए। छात्र अपने सिर के बाल मुंडवाता था, पीले वस्त्र धारण करता था, मठ के भिक्षुओं के चरणों में अपना माथा टेकता था और फिर पालथी मारकर बैठ जाता था-उसके बाद वह तीन बार उच्चारित करता था-

बुद्धं शरणम् गच्छामि
धम्मं शरणम् गच्छामि
सघं शरणम् गच्छामि

इस उच्चारण के बाद उसे 10 नियमों का पालन करना पड़ता था।

1. जीव हत्या न करना।
2. अशुद्ध आचरण न करना।
3. असत्य भाषण न करना।
4. वर्जित समय (सूर्यास्त के उपरान्त) भोजन न करना।
5. मादक वस्तुओं का प्रयोग न करना।
6. पर निन्दा न करना।
7. शृंगार की वस्तुओं का प्रयोग न करना।
8. नृत्य एवं संगीत इत्यादि से दूर रहना।
9. बिना दिए किसी दूसरे की वस्तु को ग्रहण न करना।
10. सोना, चाँदी, हीरा इत्यादि कीमती वस्तुएँ दान में न लेना।

उक्त इन नियमों के पालन की शपथ लेने के उपरान्त बालक को मठ तथा विहार में प्रवेश दिया जाता था और अब उसे श्रृमण अथवा सामनेर कहा जाता था।

3. उपसम्पदा काल-

20 वर्ष की आयु के पश्चात् छात्र को उपसम्पदा ग्रहण करनी पड़ती थी। इस समय 10 भिक्षुओं की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती थी।

4. अध्ययन समय-

12 वर्ष का पब्बजा, 10 वर्ष का उपसम्पदा समय। इस प्रकार कुल मिलाकर 22 वर्ष का अध्ययन समय सीमा होती थी।

5. छात्र-कर्त्तव्य-

छात्र गुरुओं की सेवा करते थे, भिक्षा माँगते थे, तीन बार भोजन करते थे, तीन ही वस्त्र पहनते थे, शुद्ध स्नान करते थे तथा अनुशासन में रहते थे।

6. स्त्री-शिक्षा-

इस काल में स्त्रियों का स्थान पुरुषों की तुलना में नीचे होता था। पहले स्त्रियाँ संघ में वर्जित थी। बाद में जब संघ में उन्हें प्रवेश मिला तब ही उनकी शिक्षा आदि की प्रगति हुई।

7. व्यावसायिक शिक्षा-

बुद्ध काल में लेखन, गणना, रुपम, कृषि, वाणिज्य, कुटीर उद्योग, पशुपालन, इस्तज्ञान, इन्द्रजाल, मृतकों को जीवित करने का मन्त्र, पशुओं की बोलियों का ज्ञान, धनुर्विद्या, भविष्य कथन, इन्द्रिय सम्बन्धी क्रियाओं का वशीकरण, शारीरिक संकट, औषधि विज्ञान आदि विषय पाठयक्रम में थे।

आधुनिक शिक्षा में बौद्ध शिक्षा प्रणाली के मुख्य योगदान

हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली की नींव वैदिक कालीन शिक्षा से मानी जाती है, किन्तु बौद्धकालीन शिक्षा की आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सर्वाधिक समानता पायी जाती है। आधुनिक शिक्षा में बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली के प्रभाव को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) शिक्षा पर केन्द्रीय नियन्त्रण-

आधुनिक शिक्षा शासन केन्द्रीय नियन्त्रण में है और इस व्यवस्था का सूत्रपात बौद्धकालीन शिक्षा से हुआ था जब शिक्षा बौद्ध संघों के नियन्त्रण में दी जाती थी। आज की तरह बौद्धकालीन शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त था। प्रारम्भिक स्तर पर निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी तथा उच्च शिक्षा में शुल्क की व्यवस्था आज आधुनिक शिक्षा में भी शुल्क की ऐसी ही व्यवस्था है।

(2) शिक्षा का विभिन्न स्तरों पर विभाजन-

वैदिक शिक्षा दो स्तरों प्राथमिक एवं उच्च स्तर पर विभाजित थी किन्तु बौद्धकालीन शिक्षा तीन स्तरों प्राथमिक उच्च तथा भिक्षु शिक्षा में विभाजित थी। इसी मनोवैज्ञानिक आधार पर आधुनिक शिक्षा को भी पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च स्तरों में विभाजित है।

(3) समयानुकूल शिक्षा के उद्देश्य-

बौद्धकालीन शिक्षा की तरह आधुनिक शिक्षा में भ कला-कौशल, व्यवसायों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाता है जो कि बेरोजगारी दूर करने के लिए अति आवश्यक होती है।

(4) विशिष्ट एवं विस्तृत पाठ्यचर्या-

बौद्धकालीन शिक्षा में पाठ्यक्रम को अत्यन्त बारीकी से विभाजित किया गया जिससे उसमें विशिष्टीकरण तथा विस्तृत स्वरूप प्राप्त हुआ। आधुनिक शिक्षा में तो भी इसी प्रकार के विशिष्ट एवं विस्तृत पाठ्यक्रम को अपनाया गया है।

(5) स्वाध्याय एवं कक्षा शिक्षण का प्रारम्भ-

आधुनिक कक्षा शिक्षण की नींव बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली से ही प्रभावित है जिस प्रकार बौद्धकाल में कक्षाओं का स्तर तथा विषयानुसार विभाजन किया गया था आज भी उसी प्रकार कक्षा शिक्षण की व्यवस्था पायी जाती है। साथ ही स्वाध्याय शिक्षण विधि की शुरूआत भी बौद्धकालीन शिक्षा से चली आ रही है।

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