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यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य | Early Educational works of European Christian Missionaries in Hindi

यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य
यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक कार्यों के बारे में

यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य –भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत 1510 ई. में पुर्तगाली ईसाई मिशनरियों ने कर दी थी। 1613 में अंग्रेज ईसाई मिशनरियों का आगमन हुआ। अंग्रेजों ने आधुनिक ईसाई अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की नींव को मजबूत किया। इनके साथ-साथ फ्रान्सीसी और डेन मिशनरियों ने भी इस कार्य को अपने-अपने तरीकों से किया। इसको गति देने और विकास करने का कार्य अन्त में अंग्रेज ईसाई मिशनरियों और ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने ही किया। आधुनिक अंग्रेजी शिक्षा के विकास में यूरोपीय मिशनरी-डच, फ्रान्सीसी तथा डेन मिशनरियों के शैक्षिक कार्य निम्न हैं-

यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के प्रारम्भिक शैक्षिक कार्य (Early Educational works of European Christian Missionaries) –

भारत में सर्वप्रथम यूरोपीय जातियों में पुर्तगाली व्यापारी और पुर्तगाली ईसाई मिशनरियों ने प्रवेश किया। इसके बाद क्रमश: अंग्रेज, डच, फ्रान्सीसी, डेन और डच व्यापारी एवं ईसाई मिशनरी आये थे। इनमें से कुछ ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक कार्य निम्नलिखित हैं-

1. डच ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक कार्य –

भारत में हॉलैण्ड निवासी डच व्यापारियों का प्रवेश 17वीं शताब्दी के मध्य में हुआ। इन्होंने अपने व्यापारिक संस्थान समुद्र के किनारे बंगाल में चिनसुरा और हुगली में तथा मद्रास में नागापट्टनम् और बिल्लीपट्टम् में स्थापित किये। डच व्यापारियों के साथ डच ईसाई मिशनरी भी आये थे। इन डच मिशनरियों ने प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना कारखानों में काम करने वाले डच नागरिकों के बच्चे तथा भारतीय नागरिकों के बच्चों दोनों के लिये की। सामान्य भारतीयों के बच्चे भी इन विद्यालयों में प्रवेश ले सकते थे। इन विद्यालयों में इन्होंने डच भाषा, स्थानीय भाषाओं, भूगोल, गणित और स्थानीय कला-कौशलों की शिक्षा की व्यवस्था यूरोपीय पद्धति पर की। इन्होंने विद्यालयों को ईसाई धर्म शिक्षा का केन्द्र नहीं बनाया। परन्तु अंग्रेजो से शत्रुता हो जाने के कारण इन्हें शीघ्र ही भारत छोड़ना पड़ा।

2. फ्रान्सीसी ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक कार्य –

भारत में फ्रान्सीसी व्यापारियों का आगमन 1667 में हुआ। फ्रान्सीसी व्यापारियों के साथ फ्रान्सीसी ईसाई पादरी भी आये थे। इन्होंने अपने कारखाने माही, यनाम, कारीकल, चन्द्रनगर और पाण्डिचेरी में स्थापित किये। फ्रान्सीसी व्यापारियों ने प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना कारखानों के पास की। फ्रान्सीसी ईसाई मिशनरियों के हाथ में इन विद्यालयों के संचालन का कार्य था। इन विद्यालयों में दो माध्यमों से शिक्षा दी जाती थी, फ्रान्सीसी शिक्षक फ्रान्सीसी माध्यम से शिक्षा देते थे तथा भारतीय शिक्षक भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देते थे। इनमें ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी और इसके लिये प्रत्येक स्कूल में एक पादरी शिक्षक की नियुक्ति की जाती थी।

3. डेन ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक कार्य –

डेन व्यापारियों ने सीरामपुर, ट्रावनकोर, तंजौर और चित्रनापल्ली में अपने कारखाने स्थापित किये तथा ईसाई धर्म का प्रचार एवं प्रसार करने के लिये ट्रावनकोर, तंजौर तथा मद्रास में प्राथमिक स्कूलों की स्थापना की। इन स्कूलों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषाएँ थीं, इनमें ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी। दक्षिण भारत में तमिल भाषियों के लिये बाईबिल का तमिल भाषा में अनुवाद भी किया, जिसके फलस्वरूप 50,000 भारतीयों को ईसाई बनाने में सफल हुए।

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