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समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि | Socialized Recitation Method in Hindi

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि (Socialized Recitation Method)

समाज एक आवश्यक आवश्यकता है। आधुनिक युग में कक्षा-कक्ष में समाजीकृत प्रक्रियाओं के प्रयोग की विधि लगातार बढ़ती जा रही है, परिणामस्वरूप शिक्षण में एक नवीन एवं मूल्यात्मक विधि को प्रमुख स्थान दिया जा रहा है, जिसे समाजीकृत अभिव्यक्ति के नाम से जाना जाता है। आधुनिक समय में समाजीकृत अभिव्यक्ति शिक्षण की एक प्रभावशाली पद्धति मानी जाती है। वेस्ले का विचार है कि आधुनिक समाजीकृत अभिव्यक्ति एक आदर्श है जो शिक्षण में ऐसे प्रयोग की कल्पना है जिससे कक्षा के सभी बालक सहयोग तथा सद्भावनापूर्वक ज्ञानार्जन कर सकें। इसके द्वारा कक्षा के वातावरण की कृत्रिमता को समाप्त किया जाता है और उसके स्थान पर स्वाभाविक वातावरण उत्पन्न किया जाता है, जिससे बालक अपने स्वभाव एवं रुचि के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक सहयोगी ढंग से ज्ञान प्राप्त करता है।

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के सम्बन्ध में बाइनिंग व बाइनिंग ने कहा है कि- “समाजीकृत अभिव्यक्ति को सामाजिक वाद-विवाद कहा जा सकता है।” समाजीकृत अभिव्यक्ति की वास्तविक एवं स्पष्ट परिभाषा के सम्बन्ध में विद्वानों में एक राय नहीं है। कुछ इसके अर्थ एवं परिभाषा को संकुचित रूप में व्यक्त करते हैं। ऐसे लोगों का विचार है कि समाजीकृत अभिव्यक्ति वह प्रक्रिया है। जिसमें शिक्षक अपना भार सम्पूर्ण कक्षा या छात्रों को सौंपकर स्वयं को कक्षा की कार्यवाही से कर लेता है जबकि कुछ विद्वान इसे उदार एवं विस्तृत दृष्टिकोण से देखते हैं। उनका मानना है कि कोई भी कक्षा सत्र जो एक वर्ग के रूप में सामूहिक चेतना तथा वैयक्तिक उत्तरदायित्व को प्रदर्शित मुक्त करे, समाजीकृत अभिव्यक्ति है।”

समाजीकृत अभिव्यक्ति छात्रों में सामाजिकता उत्पन्न करती है। इसमें छात्र वाद-विवाद पद्धति के द्वारा गोलाकार बैठकर सामूहिक रूप से अध्ययन करते हैं। इस अध्ययन विधि को स्पष्ट करते हुए मुफात ने कहा है कि “समाजीकृत अभिव्यक्ति व्याख्यान पद्धति की अपेक्षा छात्रों को सहयोग के लिए अधिक अवसर प्रदान करती है। यह एक सामान्य सामूहिक वाद-विवाद विधि है जिसमें सभी बालक अपना योगदान देकर, प्रश्न पूछकर तथा समस्या के समाधान के लिए प्रयास करके सहयोगी ढंग से भाग लेते हैं।

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि का प्रयोग (Application of Socialized Recitation Method)

बाइनिंग तथा बाइनिंग ने समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के प्रयोग के निम्नलिखित रूप बताये

(1) औपचारिक समूह योजना – समाजीकृत अभिव्यक्ति की औपचारिक समूह योजना के अन्तर्गत छात्र अपने आपको व्यवस्थित करके कार्य करते हैं। जिस प्रकार प्रौढ़ों का समूह अपने क्लब, कौंसिल, सीनेट बनाकर किसी समस्या का व्यवस्थित ढंग से हल खोजते हैं, उसी प्रकार छात्रों का समूह भी संगाठित होकर निर्धारित समस्याओं पर विचार-विमर्श करके हल खोजते हैं।

(2) अनौपचारिक समूह योजना- अनौपचारिक समूह योजना के अन्तर्गत किसी प्रकार की व्यवस्थित योजना नहीं होती है, न तो कोई समय निश्चित होता है, न स्थान निर्धारित होता है और न ही समस्या का चयन होता है। इसमें छात्र तथा अध्यापक स्वतन्त्र रूप से किसी भी समस्या पर विचार-विमर्श करके उसके हल को खोजने का प्रयत्न करते हैं।

(3) आत्म-निर्देशन समूह योजना – आत्म-निर्देशन समूह योजना उच्च कक्षाओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इस पद्धति में शिक्षक को बहुत ही कम बोलना पड़ता है, छात्र समसयाओं पर वाद-विवाद करके उनका हल स्वयं ही निकाल लेते हैं। यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है।

(4) सेमिनार का आयोजन – सेमिनार अधिकांशतः कालेज स्तर पर आयोजित किये जाते हैं। इस विधि में किसी एक समूह को कोई एक समस्या दे दी जाती है। यह समूह उस विषय में पूरी तरह से खोजबीन करके उसे वाद-विवाद तथा आलोचना के लिए सेमिनार में प्रस्तुत करता है। सेमिनार में सभी उस विषय पर अपने विचार पक्ष तथा विपक्ष में प्रकट करते हैं। निष्कर्षतः उस समस्या के निराकरण के लिए सुझाव दिए जाते हैं तथा सामूहिक रूप से एक प्रतिवेदन तैयार किया जाता है।

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के गुण तथा दोष (Merits and Demerits of Socialized Recitation Method)

गुण (Merits) –

समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के निम्नलिखित गुण हैं –

1. इस विधि के माध्यम से छात्र योजना बनाना सीख जाते हैं।

2. इससे छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न किया जा सकता है

3. इस विधि द्वारा छात्रों के समान उद्देश्यों तथा रुचियों की खोज की जाती है।

4. इससे छात्र वाद-विवाद में भाग लेना सीख जाते हैं।

5. इससे छात्रों में स्वतन्त्र विचरण की नींव डाली जाती है।

6. इस विधि द्वारा छात्रों की प्रेरणा-शक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है।

7. इस विधि से छात्रों में आत्म-निर्णय की प्रवृत्ति विकसित होती है।

दोष (Demerits)-

इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं –

1. यह विधि विषय-वस्तु पर समुचित अधिकार (Adequate Mastery) करने के लिये उपयुक्त नहीं है।

2. इस विधि से कुछ छात्र ही सम्पूर्ण कार्य को संचालित करते हैं; अन्य छात्रों को इससे कोई लाभ नहीं मिल पाता।

3. इस विधि द्धारा कार्य के वाद-विवाद में अधिकांश छात्रों का समय नष्ट होता है।

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