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समावेशी शिक्षा एवं परिवार | Role of class Teacher in Inclusive Education

समावेशी शिक्षा एवं परिवार |  Role of class Teacher in Inclusive Education
समावेशी शिक्षा एवं परिवार | Role of class Teacher in Inclusive Education

 समावेशी शिक्षा एवं परिवार का उल्लेख कीजिए।

समावेशी शिक्षा प्रदान करने में परिवार की भूमिका व उत्तरदायित्व महत्वपूर्ण है। सबसे बड़ा सत्य वह यथार्थ है कि बालक कि प्रारम्भ की शिक्षा का उत्तरदायित्व पहले परिवार को ही निभाना होता है। ज्ञान के संचित कोष में वृद्धि होने से और परिवारिक परिस्थितियों के बदलने से विद्यालयों की आवश्यकता पड़ी और परिवार ने बालकों की शिक्षा का कार्य स्कूलों को सौंप दिया। परन्तु विकलांग बालकों की शिक्षा की जिम्मेदारी परिवार की ही थी। परन्तु आज भी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए सामान्य बालकों और विकलांग बालकों की देखभाल, भोजन वस्त्र पहनना, व्यवहार का अनुकरण करना आदि परिवार पर ही निर्भर करता है। बालक के सामाजिक गुणों के विकास के लिए परिवार अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसी आधार पर

“परिवार को सामाजिक गुणों का पालना कहा जाता है।” रूसों ने तो माता-पिता को बालक का सर्वोत्तम शिक्षक बताया है, पेस्टोलॉजी ने घर को शिक्षा का सर्वोत्तम स्थान और बालक का प्रथम स्कूल बताया है। शिक्षा शास्त्री फ्रोबेल के अनुसार ‘आदर्श शिक्षिका है और परिवार द्वारा दी जाने वाली शिक्षा अत्यन्त प्रभावशाली है। महात्मा गांध जी ने भी छोटे बालकों के लिए माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ समझा है।

बालक की इसी तथ्य का समर्थन करते हुए हैडरसन तथा मैप ने कहा है कि “जब परिवार अपने बालकों की शिक्षा में आवेष्ठित होते है तो विद्यार्थियों की उपलब्धि बढ़ती है, वे विद्यालय में अधिक टिकते हैं तथा पूर्णरूप से स्कूल में भागीदारी रखते है।

बालकों की शिक्षा के प्रति परिवार निम्न भूमिका निभाता हैं।

  • बच्चों के शारीरिक विकास में –
  • बच्चों के बौद्धिक विकास में-
  • बच्चों के नैतिक विकास में-
  • बच्चों के सामाजिक विकास में-
  • बच्चों के संवेगात्मक विकास में-
  • बच्चों के स्वस्थ आदतों के निर्माण में-
  • बच्चों के व्यावसायिक रुचि उत्पन्न करन में-
  • अनौपचारिक शिक्षा में सहयोग के लिए-
  • भाषा के ज्ञान एवं विकास करने में-

परिवार का महत्वपूर्ण योगदान है।

जहाँ तक समावेशी शिक्षा में परिवार की भूमिका का प्रश्न है तो बाधिता ग्रस्त या असमर्थी बालक को उनकी क्षमता व आयु के अनुसार शिक्षा प्रदान की जा रही है या नहीं, उनके बच्चे विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा से लाभन्वित हो रहे हैं या नहीं। इन बालकों में कौशलों का विकास हो रहा है या नहीं, आदि माता-पिता जानना चाहते हैं। वास्तव में माता-पिता बालकों के खुशहाल जीवन एवं सफलता के संरक्षक होते है। विशिष्ट बालकों की शिक्षा के सन्दर्भ में अध्यापकों को कई समस्याओं को सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में माता-पिता का सहयोग प्राप्त होना आवश्यक हो जाता है। इन बच्चों को माता-पिता की ओर से सहयोग, प्रेरणा पुनर्बलन की सदैव अपेक्षा रहती है। माता-पिता एवं अध्यापक को उनके कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि असमर्थी बालक की क्षमताओं का विकास हो सके। विद्यालय द्वारा बालक की शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों को सुविधाजनक ढंग से चलाने के लिए परिवार को निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना आवश्यक होगा।

  • बालक की असमर्थता की शीघ्र पहचान की जाय।
  • असमर्थता की पहचान के आधार पर चिकित्सक, मनोचिकित्सक की सहायता लेना।
  • माता-पिता का समावेशी कार्यक्रम से परिचित होना ।
  • शिक्षा प्रदान करने में बालक की सहायता करना।
  • ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विद्यालय व अध्यापकों को सहयोग प्रदान करना।
  • असमर्थी बालक की शिक्षा व अन्य सुविधाओं की पूर्ति करना।
  • ऐसे बालकों के संवेगात्मक विकास के लिए प्रोत्साहन व स्नेह युक्त वातावरण प्रदान करना।
  • ऐसे बालकों की रुचियों का पता लगाना और उनके अनुसार व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करना।
  • विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रम व रोजगार चयन में सहायता करना।
  • इन बच्चों की कमियों को स्वीकार करें। ऐसे बच्चों में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
  • इन बच्चों के गुण, कमियों व आवश्यकताओं का ज्ञान रखना।
  • दैनिक दिनचर्या में माता-पिता कुछ समय दें।
  • बच्चों की क्षमता एवं योग्यता के अनुसार उनसे अपेक्षा रखना।
  • कक्षा शिक्षक, संबल शिक्षक व मनोचिकित्सक से सम्पर्क बनाये रखना।
  • बालक में सकारात्मक चिन्तन, अधिगम की चुनौतियों को स्वीकार करने तथा अभिवृत्ति में विकास करना।
  • बालक के शिक्षण तथा अधिगम कार्यों में कौशल प्राप्ति के लिए शिक्षकों को सहयोग देना।
  • बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों में रूचि रखना।
  • ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों के लिए प्रशंसा, पुनर्बलन देना ।
  • स्वअनुशासन का विकास करना।
  • भविष्य में बालक के विकास के लिए संसाधन जुटाने, जीवनोचित मूल्यों के विकास करने में सहयोग प्रदान करना।
  • माता-पिता को चाहिए कि वे इनकी तुलना दूसरों से न करें।
  • बालकों में स्व प्रतिष्ठा के सम्प्रदाय का सृजन करने में सहायता करना।
  • बालकों के लिए नकारात्मक टिप्पणी न करें।
  • व्यक्तिगत शैक्षिक योजना जैसे कार्यक्रमों में सहयोग दें।
  • इनसे सम्बन्धित सभा, बैठकों में भाग ले।

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