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समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद | Benefits or controversies of inclusive education

समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद | Benefits or controversies of inclusive education
समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद | Benefits or controversies of inclusive education

समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद का उल्लेख कीजिए।

समावेशी शिक्षा में उन सभी तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है, जो विशिष्ट बालको पर लागू होते हैं अर्थात समावेशी शिक्षा शारिरीक, मानसिक या प्रतिभाशाली तथा विशिष्ट गुणों से युक्त विभिन्न बालकों पर अपनायी जाती है लेकिन यह शिक्षा सामान्य बालकों को शिक्षण नहीं देती। विशिष्ट शिक्षा का इतिहास अत्यन्त विशाल है। प्राचीन काल में ब्राह्मण तथा क्षत्रिय शिक्षा के क्षेत्र में निपुण होते थे तथा वैश्यों व शूद्रों को भी शिक्षा उनके अनुरुप अलग-अलग प्रदान की जाती थी। उस समय कार्यों का वर्गीकरण विभिन्न प्रतिभाओं के अनुरूप किया जाता था अर्थात विभिन्न प्रतिमाओ से सम्पन्न छात्रों को अलग अलग श्रेणी में रखकर शिक्षण प्रदान किया जाता था।

प्रतिभाशाली छात्रों के माता पिता तथा शिक्षकगण उनकी प्रतिभाओ को पहचानते थे और उनकी प्रतिभाओ के अनुरूप प्रशिक्षण दिया करते थे। विशिष्ट बालकों की शिक्षा के क्षेत्र में आज आधुनिक शिक्षा शास्त्री सामान्य और शारीरिक रुप से विकृत बालकों पर विशेष ध्यान दिये जाने के कारण विशिष्ट बालकों की आवश्यक्ताओं पर कम ध्यान दे पाते है। समेकित शिक्षा के क्षेत्र मे विभिन्न तथ्य विवादास्पद पूर्ण है। ये तथ्य बालको को शिक्षा की मुख्य धारा से नही जोड़ते है। जिसके कारण विशिष्ट बालको को विशेष अवसर प्रदान कराने के पक्ष में है।

समावेशी बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने तथा सामान्य एवं समावेशी शिक्षा कार्यक्रमों से लाभान्वित होने के लिए विशेष सहायता साधनो एवं अधिगम सामग्री की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त उपकरणों की भी आवश्यकता होती है। श्रवण बाधित बालको के लिए श्रवण यन्त्र, वाणी प्रशिक्षक तथा दृष्टि बाधित बालकों के लिए देखने के उपकरण जैसे उत्तल लैंस जिसकी सहायता से छोटे शब्दों को बड़े शब्दों में देखा जा सकता है। इसी प्रकार मन्दबुद्धि बालकों को खिलौने तथा खेलने की सामग्री की आवश्यकता होती है। प्रतिभाशाली बालकों को अधिगम सामग्री, अभ्यास पुस्तिका आदि की आवश्यकता होती है। अधिकांश विद्यालयों में प्रतिभाशाली या समावेशी बालकों के शिक्षण हेतु पढ़ाने में सहायक सामग्री तथा साधन पूर्णतया उपलब्ध नही होते है। इससे बालकों की वास्तविक क्षमता तथा कार्यकलापो मे अन्तर बढ़ जाता है।

समावेशी बालकों को प्रेरणा तथा आर्थिक सहायता, वाहन भत्ता, अधिगम सामग्री. यूनीफार्म आदि खरीदने हेतु आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। राज्य सरकार शारिरीक व मानसिक रूप से बाधित बालको को इस प्रकार के अनुदान देने में समर्थ नही है।

समावेशी शिक्षा के आदर्श एवं उद्देश्य दोनो ही सामान्य शिक्षा के आदर्शो एवं उद्देश्य के समान ही है। इन दोनों में मात्र अन्तर इनके स्वरूप एवं विधियों में है। समावेशी शिक्षा समावेशी बालकों की विशिष्ट योग्यताओं एवं अक्षमताओं के अनुरूप होती है। अतः समावेशी बालकों की शिक्षा में शिक्षण, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन की विशिष्ट विधियों एवं तकनीको प्रयोग किया जाता है।

किसी बालक को शिक्षा प्रदान करने से पहले उसके व्यक्ति को समझना अत्यन्त आवश्यक है। यह समावेशी बालकों के लिए तो अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि विशिष्ट बालक ही विशेषताएँ साधारण बालकों की तुलना में अधिक तीव्र व विचित्र है। इन इन बालकों के माता पिता व शिक्षको को चाहिये कि वह बालक को समस्याओं कि वे भी ऐसे व्यक्ति है जिन्हें सभी के समान आदर, विश्वास स्नेह और सुरक्षा चाहिये। समावेशी बालकों के व्यक्तित्व के विषय में पूर्ण जानकारी एवं समझ शिक्षकों के लिये समावेशी बालकों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण की प्रक्रिया को सरल प्रगतिशील एवं रुचिकर बना देगी।

समावेशी बालकों को भी सामान्य बालकों के समान औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। उनके लिये ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये कि उन्हें कम से कम पढ़ने लिखने और साधारण गणित का ज्ञान हो जाये। आधुनिक शैक्षिक तकनीकी ने ऐसी विधियों, तकनीको एवं उपकरणो का आविष्कार किया है। जिनकी सहायता से विकलांग बच्चों को भी औपचारिक शिक्षा दी जा सकती है। जिनकी सहायता से बालकों की शिक्षा का स्तर उनके शारीरिक एवं मानसिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए। औपचारिक शिक्षा हेतु स्कूल में अति समावेशी वातावरण की नहीं, बल्कि समावेशी प्रशिक्षित शिक्षक की नितान्त आवश्यकता है।

समावेशी बालको के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण भी आवश्यक है किन्तु ये समावेशी शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिये। विकलांग बालकों को रोजगारपरक काम धन्धों में प्रशिक्षित करने की व्यवस्था होनी चाहिये। इन्हें जैसे संगीत, टाइप-राइटिंग कताई-बुनाई, सिलाई-कढ़ाई, धुनाई, पाक विध्या, आदि कार्यों में प्रशिक्षित करना चाहिए।

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