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विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता | school and community interdependence

विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता | school and community interdependence
विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता | school and community interdependence

विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता पर प्रकाश डालिए।

समुदाय किसी भी शैक्षिका संस्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समुदाय बालक के व्यवहार में सामाजिक सम्बन्धों समूह गत्यात्मकता के द्वारा संशोधन अथवा परिवर्तन लाता है। समाज अपने माध्यमों द्वारा बालक का समाजीकरण करता है तथा उसे ‘सामाजिक’ बनाता है। शिक्षक, माता-पिता एवं विद्यार्थी इस बात से सहमत हैं कि बालक की शिक्षा एवं विकास में समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण है, क्योंकि विद्यार्थियों की व्यक्तिगत उपलब्धियों तथा विद्यालयकी सफलता में इसका योगदान निम्नांकित होता है।

विद्यालय एवं समुदाय की अन्योन्याश्रितता- विद्यालय एवं समुदाय की आपसी निर्भरता का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

विद्यालय की समुदाय पर निर्भरता- विद्यालय शिक्षा को एक सफल प्रयास बनानेके लिए विद्यालय को समुदाय से निम्नलिखित की आवश्यकता रहती है-

  1. तत्कालीन सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिमान।
  2. स्थानीय शैक्षिक एवं सामाजिक आवश्यकताएँ।
  3. समुदाय की पूर्ण जनसंख्या ।
  4. विशिष्ट आवश्यकताओं के बालकों की संख्या।
  5. सामुदायिक आय की वृद्धि के साधन ।
  6. सम्भावित असमर्थी बालकों की पहचान।
  7. समुदाय में कार्य कर रही स्वयं-सेवी संस्थाएँ।
  8. समावेशी शिक्षा हेतु शिक्षकों के प्रशिक्षण संस्थानों का प्रावधान आदि।

समुदाय की विद्यालयों पर निर्भरता- समुदाय को स्कूलों से निम्नलिखित की अपेक्षा होती है-

  1. विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या।
  2. बालक की शैक्षिक प्रगति सम्बन्धी सूचनाएँ।
  3. बालक की समस्याओं के प्रमुख क्षेत्र।
  4. बालक की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका ।
  5. विद्यालय के वातावरण सम्बन्धी सूचनाएँ।
  6. शिक्षा के लिए उपयुक्त वित्तीय सूचनाएँ।
  7. समावेशन के लिए आवश्यक उपकरण तथा सामग्री का आयोजन।

सामुदायिक संस्थाओं के सदस्यों की असमर्थी बालकों की शिक्षा में भूमिका- सामुदायिक संस्थाओं के सदस्य निम्नलिखित के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं-

  1. माता-पिता एवं शिक्षकों में बालकों के अधिकारों के सम्बन्ध सकारात्मक अभिवृत्ति उत्पन्न करना।
  2. स्थानीय संसाधनों को संचारित करना।
  3. बालकों के डॉक्टरी परीक्षणों के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  4. विद्यालयों के लिए धन राशि का प्रबन्ध करना।
  5. असमर्थी बालकों के प्रति सामान्य जनता के निषेधात्मक विश्वासों तथा अभिवृत्ति के निराकरण के लिए संचार साधनों के सहयोग में वृद्धि करना।

निष्कर्ष- सामुदायिक शिक्षा सदैव सार्थक एवं सकारात्मक होती है। समाज बालकों की शिक्षा के लिए उपयुक्त दशाओं की व्यवस्था करता है, स्थितियाँ उत्पन्न करता है तथा इस प्रकार शिक्षा संग्रहण के द्वारा उनकी योग्यताओं के विकास करके, उन्हें समाज के विकासशील नागरिकों के रूप में जीवन-यापन की तैयारी में योगदान देता है।

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