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समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।

समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।
समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।

समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।

समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण के कौशल- अध्यापक का विकास व्यक्तित्व, अध्यापन विधियों, अध्यापन कौशलों पर निर्भर करता है। कौशल एक विशिष्ट उद्देश्य को प्राप्त करने का साधन है। किसी भी विषय के विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अध्यापक के द्वारा विभिन्न कौशलों को अपनाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो शिक्षण और अधिगम को रुचिकर तथा प्रभावी बनाती है।

शिक्षण कौशल अध्यापक के उस व्यवहार समूह को कहते हैं जो छात्र-अध्यापकों में वांछित परिवर्तन लाने में विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध होता है।

गेज के अनुसार- “शिक्षण कौशल वे विशिष्ट अनुदेशन क्रियाएँ व प्रक्रियाएँ हैं, जिन्हें अध्यापक अपनी कक्षा में प्रयोग करता है। ये शिक्षण की विभिन्न अवस्थाओं से या शिक्षण के कार्य के निरन्तर प्रवाह से सम्बन्धित होते हैं। “

मैकईनटेयर तथा व्हाइट के अनुसार- “शिक्षण कौशल सम्बन्धित शिक्षण व्यवहारों का समूह है जो विशिष्ट प्रकार की कक्षीय अन्तक्रिया स्थितियों को उत्पन्न करता है जिनसे विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति में सुगमता होती है। “

समावेशी शिक्षा में शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिये अध्यापक के द्वारा विषय-वस्तु को गहनता के अनुसार व विद्यार्थियों की रुचि, योग्यता व क्षमता के अनुसार विभिन्न कौशलों का प्रयोग करता है, जो निम्न हैं-

उद्दीपन परिवर्तन कौशल-

उद्दीपन परिवर्तन कौशल इस सिद्धान्त पर आधारित है कि उद्दीपन में परिवर्तन के ध्यान को आकर्षित करता है। यह विद्यार्थी की अधिगम में रुचि उत्पन्न करता है। प्रायः यह देखा गया है कि एक उद्दीपन पर ज्यादा देर तक ध्यान स्थिर रखना कठिन होता है। अध्यापक को विशिष्ट बालकों के ध्यान को आकर्षित करने के लिये उद्दीपन कौशल में पारंगत होना आवश्यक है। विद्यार्थियों के ध्यान को आकृष्ट करने के लिए अध्यापक के व्यवहार में परिवर्तन कौशल कहा जाता है।

स्नेह जोशी के अनुसार- “विद्यार्थियों को उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त करने और उसे बनाये रखने के लिये अध्यापक को कब, क्या और कैसे परिवर्तन करना है इसके लिये कौशल की आवश्यकता होती है ऐसे कौशल को उद्दीपन परिवर्तन कौशल कहते हैं। “

पुनर्बलन कौशल-

पुनर्बलन एक ऐसी तकनीक है जो अधिगम एवं व्यवहार प्रक्रिया को प्रभावित करती है। स्किनर के अनुसार, “यदि किसी अनुक्रिया के पश्चात् पुनर्बलन प्रदान किया जाये तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है। “

पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-

(1) सकारात्मक पुनर्बलन- यह पुनर्बलन वांछनीय व्यवहार को सशक्त बनाकर कक्षा में विद्यार्थियों की सहभागिता में वृद्धि करता है।

(2) नकारात्मक पुनर्बलन- यह पुनर्बलन विद्यार्थियों के अवांछित व्यवहारों को निरुत्साहित कर उनमें अपेक्षित सुधार लाने में सहायता करता है।

सकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग जितना लाभदायक होता है उसका गलत उपयोग उतना ही हानिकारक होता है।

पुनर्बलन कौशल से अभिप्राय ऐसी शिक्षण तकनीक से है जिसके द्वारा एक अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने हेतु पुनर्बलकों के उचित चुनाव और उनके प्रभावपूर्ण उपयोग में पूरी-पूरी सहायता मिलती है।

व्याख्या कौशल

इस कौशल के द्वारा विषयवस्तु को सरल, स्पष्ट तथा सुगम बनाया जाता है। इसका प्रयोग अध्यापक के द्वारा विभिन्न सरल कथनों दृश्य-श्रव्य सामग्री तथा उदाहरणों की सहायता से विषयवस्तु की व्याख्या के लिये किया जाता है।

किसी व्यक्ति को किसी विचार, अवधारणा, नियम, अथवा क्रिया का बोध कराना व्याख्या कौशल कहलाता है। यदि शाब्दिक कौशल है और इसके मुख्य रूप से दो तथ्य हैं-

(i) विद्यार्थियों की आयु, परिपक्वता एवं पूर्ण ज्ञान के अनुकूल तथा अवधारणा, नियम आदि के अनुकूल उचित कथनों का चयन करना।

(ii) अवधारणा, विचार अथवा घटना को समझाने के लिए चुने हुए कथनों में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करना और उनका प्रयोग करना।

व्याख्या को प्रभावशाली बनाने के लिये अध्यापक को वांछित व्यवहारों में वृद्धि कर अवांछित व्यवहारों से बचना होता है।

श्यामपट्ट लेखन कौशल

श्यामपट्ट अथवा चॉकबोर्ड महत्त्वपूर्ण दृश्य साधन है। इसका प्रयोग अध्यापक अपने पाठ को सरल, रोचक एवं आकर्षक बनाने के लिये करता है। अध्यापक को श्यामपट्ट प्रयोग करने की कला में दक्ष होना चाहिए जिससे वह इसका प्रयोग करके शिक्षण को सफल बना सके।

उदाहरणों द्वारा दृष्टान्त कौशल

कुछ अवधारणायें इतनी अमूर्त होती हैं कि व्याख्या की सहायता से विशिष्ट बालक उसे ठीक ढंग से नहीं समझ पाते। ऐसी परिस्थिति में एक कुशल अध्यापक विचार, अवधारणा व सिद्धान्त की व्याख्या करने के लिये उदाहरणों का प्रयोग करता है।

उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल एक ऐसी कला है जिसके द्वारा अध्यापक अनुकूल उदाहरणों का न्याय संगत चयन करता है और विद्यार्थियों को सम्मुख उन्हें उचित रूप से प्रस्तुत करता है ताकि वे सम्बन्धित विचार, अवधारणा, सिद्धान्त आदि को अच्छी तरह समझ सकें और उनका उचित प्रयोग कर सकें।

उदाहरण द्वारा दृष्टान्त कौशल में मुख्यतः दो प्रक्रियाएँ निहित होती हैं-

(1) विद्यार्थियों के सम्मुख किसी विचार अथवा सिद्धान्त को स्पष्ट करना।

(2) इस बात की पुष्टि करना कि विद्यार्थियों ने उस विचार को अच्छी प्रकार समझ लिया है या नहीं।

विवरण कौशल

विशिष्ट बालकों को कविता, कहानियों आदि का विवरण देकर शिक्षण शिक्षण को रुचिपूर्ण बनाता है।

विवरण का अर्थ है- कहानियाँ सुनाना या घटनाओं का वर्णन करना।

पेंटन के अनुसार, विवरणं अपने आप में एक कला है, जिसका लक्ष्य वाणी के माध्यम से विद्यार्थियों के सम्मुख स्पष्ट, रोचक एवं विधिवत क्रम से घटनाओं को इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि वे अपनी कल्पनाओं में उनका पुनर्निमाण कर सकें वे स्वयं उनके दर्शक हों या उनमें भाग ले रहे हों।

विवरण कौशल वह कला है जिसके द्वारा अध्यापक अन्तर्सम्बन्धित कथनों की सहायता से कोई तथ्य, नियम, सिद्धान्त का बोधगम्य कराता है। यह एक शैक्षिक कौशल है जिसके दो प्रमुख तत्त्व हैं-

1. विद्यार्थियों की आयु, परिपक्वता एवं पूर्व ज्ञान के अनुकूल तथा अवधारणा, नियम, घटना के अनुकूल उचित कथनों का चयन करना।

2. अवधारणा, विचार अथवा घटना आदि के बोध के लिये चुने हुए कथनों में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करना व उनका प्रयोग करना।

विवरण कौशल में तीन प्रकार के कथन प्रयुक्त होते हैं-

  1. वर्णनात्मक कौशल
  2. अर्थात्मक कथन।
  3. तर्कात्मक कथन।

कथात्मक कौशल

छोटी कक्षाओं में शिक्षण के लिये कथात्मक कौशल का प्रयोग बहुत उपयोगी एवं प्रभावशाली है। प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को प्राचीन समय के महान पुरूषों तथा स्त्रियों की प्रसिद्ध शासकों, सुधारकों साधुओं, वैज्ञानिकों तथा व्यापार की कहानियाँ सुनाई जा सकती हैं। बालक स्वभावतः कहानी प्रिय होते है। अध्यापक के अन्दर इस कौशल का होना अनिवार्य है। इस कौशल के प्रयोग के लिये अध्यापक की कल्पना शक्ति उत्तम हो, अतीत का उचित तथा पूर्ण ज्ञान हो और अवसर के अनुसार कहानियों के प्रयोग के लिये उपयुक्त संग्रह हो । कथात्मक कौशल ऐसी कला है जिसके द्वारा अध्यापक उचित कहानी का चयन करता है और उसे विद्यार्थियों के सामने उचित रूप से प्रस्तुत करता है ताकि सम्बन्धित विचार, अवधारणा आदि को अच्छी तरह समझ सकें और उनके आदर्शों का अनुसरण करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें।

अभिनव कौशल

विशिष्ट बालकों के शिक्षण में अभिनयीकरण अथवा नाटकीकरण का शिक्षण में बहुत अधिक महत्त्व है। सही और उचित समय पर किया गया अभिनव शिक्षण को अधिक रोचक, सरल एवं प्रभावपूर्ण बनाने में सहायता करता है।

नाटकीकरण का अर्थ है- किसी तथ्य, कथानक या भाव को अंग संचालन या चेहरे पर दर्शाए गए हाव-भाव द्वारा समझाना। नाटकीकरण एक कला है जो विद्यार्थियों की कल्पना शक्तियों को विकसित करने में सहायक होता है। इसके द्वारा बच्चों में समाजिक गुणों का भी विकास होता है। अभिनव कौशल का प्रयोग यदि शिक्षक अच्छे ढंग से करता है तो इससे केवल बालक की प्राकृतिक शक्तियों का विकास ही नहीं होता बल्कि बालक का सम्पूर्ण सर्वांगीण विकास किया जा सकता है। सर्वांगीण विकास से सृजनात्मक शक्तियों का विकास भी होता है। अभिनव कौशल के द्वारा शिक्षक विषयवस्तु को रुचिकर बनाकर आसानी से समझा सकता है।

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