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अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व | objectives and Importance of international organization

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व
अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व का उल्लेख कीजिए।

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किए हैं। इनके कार्यों की श्रृंखला एवं सूची भले ही लम्बी नहीं हो, लेकिन जो कुछ कार्य हैं, वे अत्यन्त अहम् प्रकृति के हैं। इनके कुछ मुख्य मुख्य कार्य निम्नांकित हैं-

(1) संधिकरना- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का पहला मुख्य कार्य संधियाँ (Treaties) करने का है। यह उनकी शक्ति या अधिकार भी हैं। यह अधिकार विभिन्न संगठनों के संविधान पर आधारित हैं। यद्यपि संविधानों में संधि करने का अधिकार का स्पष्ट या अभिव्यक्त उल्लेख नहीं होता, यद्यपि विवक्षित तौर पर यह शक्ति उन्हें प्रदत्त रहती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 104 में यह कहा गया है कि, “प्रत्येक राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने संगठनों को ऐसी शक्तियाँ अथवा स्वरूप प्रदान करें ताकि वे अपने कर्तव्यों एवं कृत्यों का आसानी से निष्पादन एवं निर्वहन कर सकें।”

संयुक्त राष्ट्र विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति अभिसमय, 1946 में यह कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विधिक व्यक्तित्व है। उसे (क) संविदा करने (ख) अचल एवं चल सम्पत्ति अर्जित करने (ग) ऐसी सम्पत्ति का व्ययन करने (घ) विधिक कार्यवाहियाँ करने का अधिकार होगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने राज्यों एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अनेक संधियों की हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य संगठनों ने राज्यों के साथ मुख्यालय करार तथा संगठनों के साथ सहयोग करार किया हैं। यह करार अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ (International Treaties) माने जाते हैं।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय दावा करना- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन अन्तर्राष्ट्रीय दावा (International Claims) करने में क्षमता रखते हैं। यह उनका एक प्रमुख कार्य भी है। यह कार्य (क) विधिक व्यक्तित्व की क्षमता (ख) उद्देश्य (ग) कार्य (घ) संवैधानिक दस्तावेज आदि पर आधारित हैं।

(3) क्रियात्मक संरक्षण- कतिपय अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को प्रत्येक संविदाकारी राज्य में कुछ कार्य करने की क्षमता प्रदान की गई है। उदाहरण स्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन को प्रत्येक संविदाकारी राज्य के राज्य क्षेत्र में ऐसे विधिक कार्य करने की क्षमता प्राप्त है जो उसके कार्यों के संचालन एवं संपादन के लिए आवश्यक हो यथा- (क) संगठन का हित (ख) प्रशासनिक तंत्र का सुव्यवस्थित संचालन (ग) सम्पत्ति तथा परिसम्पत्ति का संरक्षण आदि।

(4) प्रभुत्व सम्पन्नता की रक्षा- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं का एक प्रमुख कार्य राज्यों की प्रभुत्वसम्पन्नता (Sovereignty of States) की रक्षा करते हुए उनकी विभिन्न सामाजिक प्रणालियों के बावजूद उनमें परस्पर शान्तिपूर्ण सहयोग का प्रचार करना है। सदस्य राज्यों के बीच परस्पर सहयोग का भाव पैदा करना तथा उनके हितों की रक्षा करना अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का प्रमुख दायित्व है।

(5) प्रतिस्पर्धा के स्वरूप को बनाय रखना- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं का एक और अहम कार्य व्यक्तिगत राज्यों के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा (Competition) के स्वरूप को शान्तिपूर्ण तरीके से बनाये रखना है।

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का दायित्व- कार्यों, कृत्यों एवं कर्तव्यों के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों कुछ दायित्व (Responsibility) भी है।

अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा उसके सदस्य बाह्य अन्तरिक्ष में उस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा कय गये कार्यों से कारित क्षति के लिए उत्तरदायित्व है। इस सम्बन्ध में कई संधियाँ और करार किये गय हैं। यथा-

(क) चन्द्रमा तथा खपिण्डों को सम्मिलित करके बाध्य अन्तरिक्ष समन्वेषण तथा प्रयोग के राज्यों के क्रियाकलापों को शासित करने वाले सिद्धान्त पर संधि ।

(ख) अन्तरिक्ष यात्रियों के बचाव, अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी तथा बाह्य अंतरिक्ष में प्रक्षेपित उपग्रहों की वापसी पर करार 1967

(ग) अन्तरिक्ष उपग्रहों द्वारा कारित क्षति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व अभिसमय, 1971 आदि। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य एवं दायित्व है।

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