प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
प्रकृतिवाद का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Naturalism)
प्रकृतिवाद के दर्शन के अनुसार, प्रकृति अपने आप में पूर्ण तत्त्व है। इस दर्शन के अनुसार, प्रत्येक वस्तु प्रकृति से उत्पन्न होती है और फिर उसी में विलीन हो जाती है। प्रकृतिवादी इन्द्रियों के अनुभव से प्राप्त ज्ञान को ही सच्चा ज्ञान मानते हैं तथा उसके अनुसार, सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिये मनुष्य को स्वयं निरीक्षण-परीक्षण करना चाहिए।
प्रकृतिवादियों के मतानुसार, मनुष्य की अपनी एक प्रकृति होती है जो पूर्णरूप से निर्मल है, उसके अनुकूल आचरण करने में उसे सुख और सन्तोष होता है तथा प्रतिकूल आचरण करने पर उसे दुःख और असन्तोष का अनुभव होता है, इसलिए प्रकृतिवादियों के अनुसार, मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए। दूसरे शब्दों में प्रकृतिवादी मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल आचरण करने की स्वतन्त्रता देते हैं तथा वे उसे किन्हीं सामाजिक नियमों एवं आध्यात्मिक बन्धनों में जकड़कर नहीं रखना चाहते। इस प्रकार वे प्राकृतिक नैतिकता के पक्षधर हैं।
प्रकृतिवाद के सम्बन्ध में कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्न प्रकार हैं-
जेप्स वार्ड – “प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो प्रकृति को ईश्वर से अलग करती है, आत्मा को पदार्थ अथवा भौतिक तत्त्व के अधीन मानती है और अपरिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च मानती है। “
जॉयसे- ” प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है अथवा प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन में उन बातों को स्थान देना है जो हमारे अनुभवों से परे नहीं है। “
आर० बी० पैरी-“प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं है, वरन् विज्ञान के बारे में दावा है। अधिक स्पष्ट रूप से यह इस बात का दावा करता है कि वैज्ञानिक ज्ञान अन्तिम है, जिसमें विज्ञान से बाहर अथवा दार्शनिक ज्ञान को कोई स्थान नहीं है। “
जे० एस० रॉस- “प्रकृतिवाद एक ऐसा शब्द है जिसका शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्तों में उन शिक्षा प्रणालियों के लिये प्रयोग किया जाता है जो स्कूलों और पुस्तकों पर आधारित होने के बजाय शिक्षार्थी के वास्तविक जीवन को क्रियात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करती है। “
थॉमस और लैंग– “प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविक भौतिक है आध्यात्मिक नहीं।”
प्रकृतिवाद के रूप (Forms of Naturalism)
(1) पदार्थवादी प्रकृतिवादी (Physical Naturalism ) – यह बाह्य प्रकृति से सम्बन्धित प्रकृतिवादी है जो पदार्थ-जगत् (Physical world) के अनुसार मनुष्य को जानने का प्रयास करता है। इसमे शिक्षा जगत् को कोई योगदान नहीं दिया है।
(2) यन्त्रवादी प्रकृतिवाद (Mechanical Naturalism) – इस वाद के अनुसार, विश्व एक प्राणविहीन यन्त्र है जिसका निर्माण पदार्थ व गति के द्वारा हुआ है। इस वाद के अन्तर्गत मनुष्य के चेतन तत्त्व की अपेक्षा करके यह माना जाता है कि मनुष्य भी इस बड़े यन्त्र का भाग है तथा अपने में वह पूर्ण यन्त्र भी है। इसका संचालन बाह्य प्रभावों द्वारा होता रहता है। इस वाद ने ‘व्यवहारवादी मनोविज्ञान’ (Psychology of Behaviourism) को जन्म दिया।
(3) जैविक प्रकृतिवाद (Biological Naturalism) – यह वाद पशु और मनुष्य के विकास की निरन्तरता में विश्वास करता है। ‘जीवन के लिये संघर्ष’ और ‘सबसे उपयुक्त का अस्तित्त्व’ इसके दो प्रमुख सिद्धान्त हैं।
प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त (Basic Principles of Naturalism)
प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-
(1) संसार का कर्ता और कारण दोनों स्वयं प्रकृति हैं। प्राकृतिक तत्त्वों के संयोग से रचना होती है. तथा विघटन से उसका अन्त होता है। यह संयोग और विघटन की क्रिया कुछ निश्चित नियमों के अनुसार होती है। पानी से बर्फ और बर्फ से पानी बन जाने की क्रिया प्राकृतिक परिवर्तन का ही एक उदाहरण है।
(2) यह भौतिक संसार ही सत्य है, आध्यात्मिक संसार मात्र एक कल्पना है। पदार्थ न कभी बनता और न उसका कभी नाश होता है, वह मात्र रूप परिवर्तन करता है।
(3) संसार प्रकृति द्वारा निर्मित है। प्राणियों में चेतन तत्त्व (आत्मा) के विकास के प्रश्न के सम्बन्ध में प्रकृतिवादी कहते हैं कि प्रकृति के पदार्थ परमाणुओं के संयोग से बनते हैं और परमाणु इलैक्ट्रोन्स, प्रोटोन्स तथा न्यूट्रोन्स के संयोग से बनते हैं जिनमें क्रियाशीलता पाई जाती है। इनके कारण ही जड़ जीव में चेतना का विकास होता है। प्रकृतिवादियों के अनुसार, आत्मा पदार्थजन्य चेतन तत्त्व है।
(4) जैविक प्रकृतिवादियों के अनुसार मनुष्य का विकास निम्न प्राणी से उच्च प्राणी के रूप में हुआ है। दूसरे प्राणियों के समान मनुष्य भी कुछ मूल शक्तियाँ (प्राकृतिक) लेकर पैदा होता है। लेकिन बाह्य वातावरण से उत्तेजना प्राप्त कर ये शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं तथा मनुष्य का व्यवहार निश्चित होता है।
(5) प्रकृतिवाद मनुष्य को संसार की श्रेष्ठतम रचना स्वीकार करता है। जैविक प्रकृतिवादियों के अनुसार, अन्य पशुओं की अपेक्षा मनुष्य में कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जिनके द्वारा वह अन्य पशुओं से उच्च है तथा इसका प्रमुख कारण मनुष्य की बुद्धि है।
(6) प्रकृतिवाद का दृष्टिकोण पूर्णतः भौतिकवादी है। उनके अनुसार, मनुष्य जीवन का उद्देश्य सुख प्राप्त करते हुये जीना है।
(7) प्रकृतिवादियों के मतानुसार, मनुष्य दुखी इसलिये है क्योंकि वह सभ्यता एवं विकास की दौड़ में प्रकृति से दूर हो गया है। प्रकृतिवादी, वस्तुतः, मनुष्य को उसकी प्रकृति के अनुसार स्वतन्त्र वातावरण में रखकर उसके स्वतन्त्र विकास पर बल देते हैं।
(8) जैविक प्रकृतिवादियों के अनुसार, वही व्यक्ति जीवित रह सकता है जो अपनी जीवन रक्षा कर सके, जो प्राकृतिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर सके तथा जिसमें अपनी परिस्थितियों पर नियन्त्रण रखने की शक्ति हो ।
(9) प्रकृतिवादियों के अनुसार, राज्य की केवल व्यावहारिक सत्ता है। उसे व्यक्ति के स्वतन्त्र विकास में बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिये।
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