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बुनियादी शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप, महत्व एंव इसके गुण | Meaning, Objectives, Nature, Importance and Properties of Basic Education

 बुनियादी शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप, महत्व एंव इसके गुण | Meaning, Objectives, Nature, Importance and Properties of Basic Education
बुनियादी शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप, महत्व एंव इसके गुण | Meaning, Objectives, Nature, Importance and Properties of Basic Education

बुनियादी शिक्षा का अर्थ

उत्तर भारत में 1935 का अधिनियम पारित हुआ जिसे हम भारत सरकार अधिनियम 1935 (Indian Govt Act 1935) के नाम से जानते हैं। जिसके परिणामस्वरूप सन 1937 में भारत में द्वैध शासन प्रणाली समाप्त की गयी। उस समय भारत के विभिन्न राज्यों में शिक्षा को लेकर समस्या थी क्योंकि शासन को एक सर्वमान्य शिक्षा नीति का निर्माण कर उसे लागू करना था, जिसमें गाँधी जी की शिक्षा नीति को भी स्थान देना था तथा इसके साथ ही साथ निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करनी थी जिसके लिये उन्हें धन की व्यवस्था भी करनी थी।

बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य

बुनियादी शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं-

  1. बालकों का सभ्य नागरिकों के रूप में विकास करना।
  2. अन्त्योदय सिद्धान्त का निर्माण कर इसकी भावना के अनुरूप कार्य करना।
  3. बालकों में देश की संस्कृति के प्रति सही दृष्टि हो।
  4. प्रत्येक के लिए शिक्षा को सर्वसुलभ बनाना।
  5. विद्यार्थियों के श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करना।
  6.  ऐसी शिक्षा प्रदान करना जिससे बालकों में आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति आ सके।

बुनियादी शिक्षा का स्वरूप

बुनियादी शिक्षा का स्वरूप निम्न प्रकार है-

  1. बुनियादी शिक्षा में 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जायेगी तथा बेसिक शिक्षा का कालखण्ड 7 वर्षों का होगा।
  2. शिक्षा हिन्दी माध्यम से प्रदान की जायेगी।
  3. बालकों को शिल्पकार बनाने का प्रशिक्षण दिया जायेगा।
  4. शिल्प जरूरतों के अनुसार होंगे।
  5. शिल्प कार्य शिक्षा देते समय यह ध्यान में रखा जायेगा कि विद्यार्थी शिल्प के वैज्ञानिक तथा सामाजिक दृष्टिकोण को जान जायें।

बुनियादी शिक्षा का वर्तमान संदर्भ में महत्व
(Present Relevance of Basic Education)

बुनियादी शिक्षा के महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है –

1. सामाजिकता- बुनियादी शिक्षा बालकों के अन्दर सामाजिक गुणों का विकास करती है अतः यह सामाजिक दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। यह शिक्षा ऐसे नागरिकों का निर्माण करती है जो अपने कर्तव्य एवं प्रकार को भली-भांति समझकर अपने उत्तरदायित्व को निभा सकें और समाज के विकास में अपना योगदान दे सकें।

2. आर्थिक दृष्टि से महत्व- बुनियादी शिक्षा ग्रहण करने वाला बालक बेकार नहीं रहता है, वह – कुछ न कुछ ऐसा रोजगार कर ही लेता है जिससे उसका जीवनयापन आराम से हो जाये।

3. मनोवैज्ञानिकता- यह शिक्षा आधुनिक मनोविज्ञान के प्रमुख सिद्धान्त ‘क्रिया द्वारा शिक्षा पर आधारित है। इसके द्वारा बालकों की जन्मजात तथा रचनात्मक प्रवृत्तियां सन्तुष्ट होती हैं और बालकों के हाथ और मस्तिष्क का विकास एक साथ होता है, जिससे सीखी हुई वस्तु का प्रभाव उसके ऊपर स्थायी रूप से अमिट हो जाता है। इस प्रकार यह बालकों की प्रवृत्ति पर आधारित होता है।

4. कार्य का महत्व- इस शिक्षा में बालकों को किसी हस्त कार्य के माध्यम से शिक्षा देने पर जोर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप बालक के मन में श्रम के प्रति आदर की भावना का विकास होता है और वह श्रमिकों के कार्य को हीन दृष्टि से नहीं देखता। इस प्रकार यह शिक्षा एक ऐसे समाज की कल्पना करती है, जिससे अमीर-गरीब का भेदभाव न होगा।

बुनियादी शिक्षा के प्रमुख गुण

बुनियादी शिक्षाओं को निम्न विशेषताओं के कारण महानतम उपहार कहा जाता है-

(1) कर्म प्रधान शिक्षा- बुनियादी शिक्षा में कर्म को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है इसी कारण हस्त-शिल्प को भी पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। कर्म को बुनियादी शिक्षा की बुनियाद अथवा आधारशिला भी कह सकते हैं क्योंकि वह बालकों के मन में बाल्यकाल से ही कर्म के महत्त्व को प्रभावपूर्ण ढंग से व्यक्त करती है।

(2) बालक प्रधान शिक्षा – बुनियादी शिक्षाओं की प्रमुख विशेषता इसका बालक प्रधान होना है। बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही इसकी रचना की गई है क्योंकि बालक ही इसका ग्राहक होता है। इस सम्बन्ध में डॉ. एस. एन. मुखर्जी के शब्दों में-” नई तालीम बाल केन्द्रित शिक्षा है और में बालक क्रिया द्वारा ज्ञान का अर्जन करता है। इस शिक्षा की संरचना करते हुये ही बालक को ध्यान में रखा गया था। “

(3) आर्थिक आधार- बुनियादी शिक्षा की विशेषता इसका आर्थिक पक्ष भी है। इस शिक्षा प्रणाली में बालक के द्वारा बनाई गई वस्तुओं की बिक्री से विद्यालय का खर्च निकल आता है तथा बालक भी हस्त-शिल्प में प्रवीण होकर भविष्य में अपने किसी व्यवसाय को प्रारम्भ कर सकता है।

(4) घर तथा विद्यालय में सामन्जस्य- बुनियादी शिक्षा में घर के वातावरण के समान ही विद्यालय के वातावरण को बनाने का प्रयास किया गया है जिससे बालक के मन में कोई अन्तर की भावना न आये। विद्यालय में उनके साथ घर जैसा ही व्यवहार होता है।

(5) सामाजिकता – बुनियादी शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता इसकी सामाजिकता की भावना है। बालक के अन्दर सामाजिक गुणों का विकास किया जाता है तथा हस्तशिल्प के माध्यम से उसमें कर्म, प्रेम, स्नेह, सहयोग, आत्म-विश्वास जैसे गुणों का विकास होता है तथा समाज के एक अच्छे व्यक्ति के रूप में विकसित होता है।

(6) शारीरिक श्रम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण- बुनियादी शिक्षा प्रणाली में शारीरिक श्रम को भी पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है जिससे बाल्यावस्था से ही बालक के मन में शारीरिक श्रम के प्रति रुचि जाग्रत होती है। इसके विपरीत अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में बालक को आराम पसन्द बना दिया जाता है तथा वह श्रम के महत्त्व को समझ नहीं पाता है।

(7) ज्ञान की अखण्डता- बुनियादी शिक्षा को ज्ञान के एक अभिन्न खण्ड के रूप में मान्यता दी गई है। इस प्रणाली में शिक्षा के विषयों को पृथक्-पृथक् करके नहीं रखा गया है बल्कि उपयोगी शिल्प के माध्यम से सभी विषयों के ज्ञान को सम्बन्धित करके ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(8) स्वतन्त्र वातावरण- बुनियादी शिक्षा में बालक तथा शिक्षक दोनों को स्वतन्त्रता प्रदान की – जाती है। उन्हें किसी बन्धन में रहकर कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है। बालक को अपनी रुचि के अनुसार विषय तथा शिल्प के चयन की स्वतन्त्रता रहती है। शिक्षक की भी किसी निर्धारित पाठ्यक्रम को पूरा करने की बाध्यता नहीं रहती है तथा वह बालक के विकास व शिक्षण तथा विद्यालय की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए किसी भी शिक्षण विधि का प्रयोग कर सकता है।

इन सभी विशेषताओं का अध्ययन करने पर हम यह कह सकते हैं कि बुनियादी शिक्षा अपने आप में पूर्ण है तथा इसी कारण वह महानतम उपहार कही जाती है।

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