प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
प्रकृतिवाद और शिक्षा (Naturalism and Education)
प्रकृतिवाद के अनुसार, सही शिक्षा मनुष्य को उसकी प्रकृति के अनुकूल विकास करने एवं जीवन को सुखमय बनाने में सहायता प्रदान करती है। इस वाद का जन्म आदर्शवादी विचारधारा के विरोध में हुआ। इस बाद के समर्थक पुस्तकीय ज्ञान को शिक्षा का पर्याय नहीं मानते। शिक्षा के क्षेत्र में यन्त्रवादी प्रकृतिवाद की महत्त्वपूर्ण देन है-व्यवहारवादी मनोविज्ञान व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य के समूचे व्यवहार का विश्लेषण मूल प्रवृत्तियों के आधार पर किया है। मैक्डूगल मूल प्रवृत्तियों के उदातीकरण को ही शिक्षा मानते हैं। जैविक प्रकृतिवादी चाहते हैं कि मनुष्य की शक्तियों का स्वाभाविक विकास हो।
प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषतायें (Merits of Naturalism Education)
1. शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिए – शिक्षा एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न पक्ष सम्मिलित हैं, जैसे कि शिक्षक छात्र तथा पाठ्यक्रम प्रकृतिवादी की मान्यता है शिक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया में सबसे ज्यादा महत्व बालक का होना चाहिए। अर्थात शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिए। अर्थात यह कहा जा सकता है कि शिक्षा बालक के लिए है न कि बालक शिक्षा के लिए हो। बालक क्षमता, रुचि एवं स्वभाव के अनुसार होना चाहिए। इस विषय में रॉस (Ross) महोदय का कथन उल्लेखनीय है, “प्रकृतिवादी शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख स्थान बालक का है न कि शिक्षक, स्कूल, पुस्तक या अध्ययन की वस्तु का “
2. प्रकृति का अनुसरण अनिवार्य- प्रकृतिवादी सिद्धान्तों में सर्वाधिक महत्व इस सूत्र का है प्रकृति का अनुसरण करो। यह महासूत्र प्रकृतिवादी शिक्षाशास्त्री कामेनियस ने प्रदान किया था। इस मान्यता के अनुसार लक का स्वाभाविक विकास केवल प्राकृतिक वातावरण में ही हो सकता है। कृत्रिम वातावरण में विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं चल सकती। वास्तव में स्वभाव से बालक अच्छा होता है। उसे तो कृत्रिम सामाजिक वातावरण ही भ्रष्ट कर देता है। इस विषय में रूसो का प्रस्तुत कथन उल्लेखनीय है “बच्चे का स्वभाव मूलतः अच्छा होता है और समाज ही उसे भ्रष्ट करता है।”
बालक की अपनी प्रकृति अर्थात् स्वभाव की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। बालक की मूल प्रवृत्तियों, आवेगों, रुचियों एवं क्षमताओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। बालक को शैक्षिक क्षेत्र में इस बात की सुविधा एवं अवसर प्रदान करने चाहिए। जिससे कि वह अपनी प्रकृति का योगदान होना चाहिए न कि शिक्षक, पुस्तकों तथा विकास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
3. ज्ञान के द्वार इन्द्रियाँ- प्रकृतिवादियों की मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति के लिये इन्द्रियों को प्रयोग में लाना चाहिए। इसलिए इन्द्रियों को प्रशिक्षण को अनिवार्य माना गया है। इन्द्रियों के उचित प्रयोग से ज्ञान प्राप्त होता है। रूसों का कथन है, “शिक्षा को इन्द्रियों के उचित प्रयोग करके ज्ञान के ‘द्वार खोलना चाहिए।’
4. बालक की स्वतन्त्रता पर बल- प्रकृतिवाद की सैद्धान्तिक विशेषता है, शिक्षा के क्षेत्र में बालक की पूर्ण स्वतन्त्रता अनिवार्य है। बालक को अपनी रुचि, योग्यता एवं इच्छा के अनुसार विकसित होने के लिए सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। शारीरिक दण्ड, भय, बाध्यता एव चिन्ता आदि से बालक का विकास स्वाभाविक नहीं रह पाता। अतः प्रकृतिवाद ने इन सबका विरोध किया है। प्रकृतिवाद का दृढविश्वास है, “बालक अच्छा प्राणी है, खराब नहीं। वह जन्म के समय अच्छा होता है और यदि भय तथा घृणा की सब बातों को दूर कर दिया जाये तो वह अच्छा ही रहता है।”
5. पुस्तकीय शिक्षा का विरोध- प्रकृतिवादी शिक्षा मान्यताओं में पुस्तकों का विरोध किया गया है। तथा वास्तविक शिक्षा के लिए पुस्तकों को अनावश्यक माना गया है। पुस्तकीय ज्ञान व्यावहारिक नहीं होता। बच्चों को व्यावहारिक रूप से ही प्राप्त करना चाहिए यह अनुभव निरीक्षण एवं स्वयं करके सीखने से ही प्राप्त हो सकता है। इस विषय में एड का कथन इस प्रकार है, “शिक्षा में प्रकृतिवाद का मोटा अर्थ इन सब पद्धतियों से है जो विद्यालय और पुस्तकों का निर्भर न होकर छात्र के वास्तविक जीवन के अध्ययन पर निर्भर रहती है।”
प्रकृतिवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य (Naturalism and Aims of Education)
प्रकृतिवाद के विभिन्न रूप हैं। प्रकृतिवाद के विभिन्न रूपों के अनुसार शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की भिन्न-भिन्न स्वीकार किये गये हैं। पदार्थवादी प्रकृतिवादियों ने तो शिक्षा एवं शिक्षा के उद्देश्य के विषय में अपने-अपने विचार प्रकट नहीं किये हैं। यन्त्रवादी प्रकृतिवादी मानव मनोविज्ञान को महत्व देते हैं। अतः यह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में ऐसे व्यवहार का विकास करना है जिसमें कि वह मशीनों के समान कुशलतापूर्वक कार्य कर सके। जीवन विज्ञानवादी प्रकृतिवादियों के रूप में सर्वाधिक महत्व दिया है, अतः इसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के वर्तमान शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों का उल्लेख निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है-
1. व्यक्ति के वर्तमान सुख की सुरक्षा- प्रकृतिवादी कुछ हद तक सुखवायी है, व्यक्ति के सुख का विशेष महत्व है। इस दिशा में शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति के वर्तमान सुख की सुरक्षा करना भी है। इस प्रकार किसी भी कीमत पर वर्तमान सुख की अवहेलना नहीं की जा सकती है। इस विषय पर रूसो ने स्पष्ट कहा है- “पिताजी! इन सरल बालकों की इन प्रसन्नताओं को क्यों छीनते हो जो क्षण भर में मिट जायेगी। बाल्यावस्था में शीघ्र व्यतीत हो जाने वाले दिनों को क्यों कलुषित करते हो जो पुनः वापस नहीं आयेंगे। क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे बालकों को कब मृत्यु डस लेगी। वे बिना जीवन का आनन्द लिये हुए ही मर जायें।”
2. जीवन संघर्ष के योग्य बनाना प्रकृतिवाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के संघर्षो का सामना करना पड़ता है जो व्यक्ति इस संघर्ष में सफल होता है वही जीवित रह पाता है। अतः शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य इस शक्ति का विकास करना भी होना चाहिए, जिसके कारण वह जीवन संघर्ष में सफल हो सके। इस मृत का समर्थन मुख्य रूप से डार्विन आदि जीव विज्ञानवादियों ने किया था।
3. वातावरण समायोजन के योग्य बनाना- प्रकृतिवादियों के अनुसार जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए वातावरण से समायोजन करना अनिवार्य है अतः शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति को इस योग्य बनाना भी है कि वह अपने वातावरण से समायोजन कर सके।
4. नैसर्गिक शक्तियों का नैसर्गिक विकास- मनुष्य में विभिन्न नैसर्गिक शक्तियाँ होती हैं। शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य इन नैसर्गिक शक्तियों के स्वाभाविक विकास में योगदान प्रदान करना भी है। व्यक्ति की रुचि, योग्यता एवं प्राप्ति के अनुसार इसका विकास होना चाहिए।
5. व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों का मार्गान्तीकरण एवं उदात्तीकरण- व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियां प्रकृतिवादी विचारधारा व्यवहारवादी मनोविज्ञान की समर्थन है। इस विचारधारा के अनुसार शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों का मार्गान्तीकरण एवं उदात्तीकरण करना है। मूल प्रवृत्तियों को सही मार्ग पर लाना ही शिक्षा का उद्देश्य सहज प्रवृत्तियों की ऊर्जा का शोधन सहज आवेगों का दिशान्तरण, मूल बन्धन और तालमेल करना है।
6. जातीय गुणों का विकास- शिक्षा का एक उद्देश्य जातीय गुणों का संरक्षण एवं विकास करना भी है। इस पक्ष को समर्थन मुख्य रूप से जार्ज बर्नार्ड शॉ ने किया है। मनुष्य को अपने जातीय अनुभवों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरण करना चाहिए। जार्ज बर्नार्ड शॉ के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है- “विकास की गति और प्रजातीय विकास को तेज करना।”
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