प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
प्रकृतिवाद एवं शिक्षा का पाठ्यक्रम (Naturalism and Curriculum)
प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा बाल केन्द्रित होती है। अर्थात शिक्षा में सर्वाधिक महत्व बालक का होता है अतः पाठ्यक्रम का निर्धारण करते समय बालक को सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए। बालक की रुचियों, योग्यताओं एवं स्वाभाविक क्रियाओं को ही ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम का निर्धारण होना चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बालक के स्वाभाविक विकास में सहायक हो। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति की वास्तविक जीवन की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण होनी चाहिए। कुछ मुख्य प्रकृतिवादियों द्वारा पाठ्यक्रम के विषय में प्रस्तुत किये गये विचारों का संक्षिप्त परिचय अग्रवर्णित हैं –
1. कामेनियस के अनुसार- एक प्रसिद्ध प्रकृतिवादी शिक्षाशास्त्री के पाठ्यक्रम के विषय में कहा है कि वास्तव में बालक के स्वाभाविक विकास के लिए सभी विषय पढ़ाये जाने चाहिए या पाठ्यक्रम सभी विषय का समावेश होना चाहिए। रस्क महोदय ने कामेनियस के विचारों को इन शब्दों में स्पष्ट में किया है, कामेनियस का उद्देश्य था, सब मनुष्यों को सब विषय पढ़ाना वह सब विषयों में से कुछ को चुनना आवश्यक नहीं समझता था।
2. स्पेन्सर के विचार- स्पेन्सर ने प्रकृतिवादी शिक्षा के पाठ्यक्रम के विषय में व्यवस्थित ढंग से विचार प्रस्तुत किये हैं। इनके अनुसार शिक्षा के पाठ्यक्रम का निर्धारण करने से पूर्ण हमें चाहिए कि हम मानव जीवन की प्रमुख क्रियाओं को इनके सापेक्ष महत्व के अनुसार वर्गीकृत कर लें। स्पेन्सर ने जीवन सम्बन्धी समस्त क्रियाओं को पाँच भागों में विभक्त किया और पाँचों प्रकाश की क्रियाओं के अनुसार पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों को निर्धारित करने की राय दी। स्पेन्सर द्वारा किया गया मानव क्रियाओं का वर्गीकरण एवं इनसे सम्बन्धित विषयों का संक्षिप्त परिचय अग्रवर्णित हैं –
(i) स्पेन्सर के अनुसार प्रथम रूप में वे क्रियाएं स्वीकार की जानी चाहिए जो व्यक्ति के आत्म संरक्षण में सहायक होती है। पाठ्यक्रम में इन क्रियाओं से सम्बन्धित मुख्य विषय शरीर विज्ञान तथा स्वास्थ्य विज्ञान का समावेश होना चाहिए।
(ii) द्वितीय वर्ग में इन मानवीय क्रियाओं को सम्मिलित किया गया है जो आत्म-संरक्षण प्रत्यक्ष रूप में सहायक होती है। इस प्रकार की आवश्यकताएं हैं रोटी, कपड़ा और मकान। इन क्रियाओं एवं आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पाठ्यक्रम में भी भौतिक विज्ञान, गणित तथा भूगोल आदि विषयों का समावेश होना चाहिए।
(iii) तृतीय वर्ग में इन क्रियाओं को सम्मिलित करना चाहिए जो व्यक्ति की सन्तान के पालन-पोषण में सहायक होती है। इन क्रियाओं में दक्षता प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम में गृहविज्ञान शरीर तथा बाल मनोविज्ञान आदि विषयों का समावेश होना चाहिए।
(iv) चतुर्थ वर्ग में मानवीय क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो व्यक्ति के सामाजिक एव राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए आवश्यक होती है। इन्हीं क्रियाओं के परिणामस्वरूप व्यक्ति योग्य नागरिक तथा अच्छा पड़ोसी बनता है। इन क्रियाओं में सहायक मुख्य विषय होते हैं। इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र | इन विषयों का ही पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए।
(v) पंचम भाग में उन क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो मनोरंजन होती हैं तथा व्यक्ति की रुचियों एवं भावनाओं को सन्तुष्ट करती हैं। इन क्रियाओं से सम्बन्धित विषय कला, भाषा तथा साहित्य है तथा इनको भी शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(vi) हक्सले के विचार- अन्य प्रकृतिवादियों के समान हक्सले ने शिक्षा के पाठ्यक्रम में भौतिक विज्ञानों के समावेश को अधिक महत्व नहीं दिया। इसके स्थान पर इसने सांस्कृतिक पक्षों को भी महत्व दिया है।
प्रकृतिवाद एवं शिक्षण विधि (Naturalism and Teaching Methods)
प्रकृतिवाद के दो मुख्य पहलू हैं। पहले पहलू के अनुसार प्रकृतिवाद एक दार्शनिक विचारधारा है जिसने आध्यात्मिक सत्ता का खण्डन और प्रकृति की सत्ता का प्रतिपादन किया है। प्रकृतिवाद के इस पहलू से शिक्षा के उद्देश्यों का निर्माण हुआ है। प्रकृतिवाद का दूसरा पहलू मनोवैज्ञानिक है, मनुष्य की प्रकृति का अध्ययन और उसकी मूल शक्तियों में विश्वास है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रकृतिवादियों की यह पहुँच बड़े महत्व की है। इस पहलू ने हमें शिक्षण की अनेक उपयुक्त विधियाँ है। इन नवीन उपयोगी विधियों का आधार रूसो तथा हरबर्ट स्पेन्सर के विचारों में मिलता है।
रूसो का सबसे पहला नारा था ‘प्रकृति की ओर लौटो’। रूसो ने विकास की चार अवस्थाओं शिशु बाल, किशोर तथा युवा का वर्णन कर भिन्न-भिन्न अवस्था के बच्चों की प्रकृति का वर्णन किया और भिन्न-भिन्न स्तर के लिये भिन्न-भिन्न क्रियाओं एवं शिक्षण विषयों का चुनाव किया, पर पुस्तकीय शिक्षा के ये विरोधी थे।
रूसों के अनुसार बच्चों को स्वयं अनुभव करके सीखना चाहिए। इनके अपने शब्दों में – अपने विद्यार्थी को मौखिक पाठ मत पढ़ाओ, उसे तो अनुभव द्वारा सीखने देना चाहिए। जब भी अवसर मिले उसे करके सीखने दो और शब्दों द्वारा सीखने की बात तभी सोचो जब करके सीखना असम्भव हो।” इस प्रकार स्वयं करके सीखने तथा स्वानुभव द्वारा सीखना रूसो का दूसरा नारा था।
रूसो ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार मानते थे। इनके अनुसार प्रारम्भ में ज्ञानेन्द्रियों का विकास ही करना चाहिए। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा, यह रूसों का तीसरा नारा था।
रूसो बच्चों को किसी प्रकार के नियन्त्रण में रखना पसन्द नहीं करते थे, ये बच्चों को अपने स्वाभाविक विकास के लिए पूर्ण स्वतन्त्र छोड़ने के पक्ष में थे। शिक्षा में स्वतन्त्रता रूसो का चौथा नारा था।
रूसो से पहले बच्चा एक छोटा प्रौढ़ माना जाता था। रूसो ने इसका विरोध किया और बताया कि बच्चे की रुचि, रुझान, योग्यता और आवश्यकताएं एक प्रौढ की रुचि रुझान योग्यता और आवश्यकताओं से सदैव भिन्न होती है, अत: उसे उसकी रुचि, रुझान, योग्यता और आवश्यकतानुसार ही शिक्षा देनी चाहिए। यह उनका पांचवा नारा था।
रूसो उस शिक्षा को जो बच्चों को आदेशों के रूप में या पुस्तकों के माध्यम से सीधे दी जाती है और जिसके द्वारा उन्हें प्रौढों के कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है, सकारात्मक शिक्षा (Positive Education) कहते हैं। इनके अनुसार इस प्रकार से दिया गया ज्ञान स्थाई नहीं होता। इसके विपरीत वह ज्ञान अथवा क्रिया जिसे बच्चे स्वयं करके स्वयं के अनुभवों से सीखते है वह स्थाई होता है। इसे रूसो ने नकारात्मक शिक्षा (Negative Education) की संज्ञा दी। रूसो के अनुसार नकारात्मक शिक्षा ही सच्ची शिक्षा है।
हरबर्ट स्पेन्सर ने इस विषय पर विस्तार से विचार किया है कि शिक्षण करते समय अध्यापक को किस क्रम में चलना चाहिए। इनके अनुसार अध्यापक को सरल से जटिल की ओर ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर, अनिश्चित से निश्चित की ओर, प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर तथा अनुभूत से तर्कयुक्त की ओर चलना चाहिए। स्पेन्सर ने स्वतः सीखने पर भी बल दिया है। इनके अनुसार शिक्षण प्रणाली रुचिकर तथा मनोरंजक होनी चाहिए।
प्रकृतिवाद ने शिक्षण की अनेक मनोवैज्ञानिक विधियों को जन्म दिया है। खोज विधि तथा डाल्टन प्रणाली इन्हीं सिद्धान्तों पर बनाई गई हैं। भाषा शिक्षण की प्रत्यक्ष विधि तथा भूगोल शिक्षण की निरीक्षण विधि भी प्रकृतिवादी विचारधारा की देन है। खेल द्वारा शिक्षा को भी प्रकृतिवादियों ने बढ़ावा दिया है। इन सभी विधियों में बच्चों की व्यक्तिगत रुचि, रुझान एवं योग्यता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
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