आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
आदर्शवाद और शिक्षा (Idealism and Education)
आदर्शवादी विचारधारा को शिक्षा में स्थान दिलाने वाले कान्ट, पिक्ट, फ्रोबेल, हरबर्ट, हीगेल. आदि थे। इन्होंने जीवन और जगत के सम्बन्ध में अपनी जो व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं। उनका प्रभाव हमारी शिक्षा पर पड़ा है। आदर्शवाद ने शिक्षा के विभिन्न अंगों को प्रभावित किया है। ये निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षा का अर्थ, 2. शिक्षा के कार्य 3. पाठ्यक्रम, 4. शिक्षण विधियाँ, 5. शिक्षक, 6. शिक्षार्थी, 7. शिक्षालय, 8. अनुशासन।
आदर्शवादी शिक्षक शिक्षा को बौद्धिक प्रक्रिया मानते हैं। वे शिक्षा का अर्थ ज्ञानार्जन भी मानते हैं। शिक्षा प्रक्रिया में शिक्षक को आत्मानुभूति कराता है और उसके व्यक्तित्व का विकास करना है।
शिक्षा की परिभाषाएँ
1. एडम्स के अनुसार शिक्षा का सतत् और सोउद्देश्य प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विकास को ज्ञान के संचरण एवं व्यवस्थापन के द्वारा परिष्कृत रहता है।”
2. सुकरात के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य संसार के सर्वमान्य विचारों को जो प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में स्वभावतः निहित करते हैं प्रकाश में लाना है।”
3. प्लेटो के अनुसार शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस शिक्षण से है जो बालकों में उचित आदतों के द्वारा प्रथम प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करता है।”
शिक्षा के उद्देश्य एवं आदर्शवाद
आदर्शवादियों ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं-
1. आत्मानुभूति – आदर्शवादी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य आत्मानुभूति का व्यक्तित्व का उत्कर्ष मानते हैं। ‘रॉस’ के अनुसार, ‘आदर्शवाद से विशेष रूप से सम्बन्धित शिक्षा के उद्देश्य – “व्यक्तित्व का उत्कर्ष या आत्मानुभूति अर्थात् ‘आत्मा की सर्वोच्च शक्तियों अथवा क्षमताओं को वास्तविक रूप देना है।”
2. सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि – आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि करना है। शिक्षा संस्कृति को, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाती है और उसकी समृद्धि करती है। शिक्षा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास भी करती है। रस्क के अनुसार शिक्षा को मानव जाति के इस योग्य बनाना चाहिए कि वह अपनी संस्कृति की सहायता से आध्यात्मिक जगत की सीमाओं का विस्तार भी कर सकें।”
3. आध्यात्मिक विकास – शिक्षा के द्वारा बालक का आध्यात्मिक विकास किया जाना चाहिए। बालक की मूल प्रवृत्ति को आध्यात्मिक प्रकृति में परिवर्तित किया जाना चाहिए। इसके लिए उसे शाश्वत् आदर्शों और मूल्यों का ज्ञान दिया जाना चाहिए।
4. अमर आदर्शों और मूल्यों की प्राप्ति- आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य अमर आदर्शों और मूल्यों की प्राप्ति मानते हैं। रस्क के अनुसार तीन अमर आदर्श होते हैं
(i) मानसिक- जो व्याप्त है।
(ii) भावात्मक- जिसका अनुभव किया जाता है।
(iii) सांकल्पिक- जिसका संकल्प किया जाता है।
आदर्शवाद में तीन अमर मूल्यों को प्राप्त करने के लिए कहा गया है। ये तीन मूल्य सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् हैं।
5. पवित्र जीवन की प्राप्ति- आदर्शवाद शिक्षा के द्वारा बालक का जीवन पवित्र बनाने को कहा है। शिक्षा को मनुष्य का पथ प्रदर्शन करना चाहिए। प्रमुख दार्शनिक प्रवर्तकों ने कहा है- “शिक्षा का उद्देश्य भक्तिपूर्ण, पवित्र तथा कलंक रहित पवित्र जीवन की प्राप्ति है। शिक्षा को मनुष्य का पथ प्रदर्शन इस प्रकार करना चाहिए कि उसे अपने आपकी प्रकृति का सामना करने का एवं ईश्वर से एकता स्थापित करने का स्पष्ट ज्ञान हो जाये।
6. शाश्वत एकता की प्राप्ति- आदर्शवाद के अनुसार मनुष्य को शिक्षा के द्वारा शाश्वत एकता की प्राप्ति करनी चाहिए। विभिन्न प्राकृतिक वस्तुओं में जो देवी एकता है उसे मनुष्य को समझना चाहिए और उससे एकाकार करना चाहिए। फ्रोबेल ने कहा है- “इस भूमण्डल पर जितनी भी वस्तुएं हैं उन सभी की देवी एकता है। यही एकता परमात्मा है।’
शिक्षा की पाठ्यचर्या एवं आदर्शवाद
आदर्शवादी शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति निश्चित करते हैं और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मनुष्य के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास पर बल देते हैं और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र को प्रमुख और अन्य विषयों एवं क्रियाओं को गौण स्थान देते हैं।
यूनानी दार्शनिक प्लेटो के अनुसार जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति अथवा ईश्वर की प्राप्ति है और इसके लिये सत्य, शिव और सुन्दर की प्राप्ति आवश्यक होती है। ये तीनों आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य की क्रमशः बौद्धिक, नैतिक एवं कलात्मक क्रियाओं के द्वारा प्राप्त होते हैं। अतः प्लेटो पाठ्यचर्या में उन्हीं विषयों एवं क्रियाओं के समावेश पर बल देते थे जो मानव को उपर्युक्त क्रियाओं में दक्षता प्रदान करें। उन्होंने पाठ्यचर्या में बौद्धिक क्रियाओं के लिए भाषा, साहित्य, इतिहास, भूगोल, गणित तथा शारीरिक विज्ञान का नैतिक क्रियाओं के लिये धर्म, नीतिशास्त्र तथा अध्यात्मशास्त्र का और कलात्मक क्रियाओं के लिये विभिन्न कलाओं का संगीत का समावेश किया था।
जर्मनी शिक्षाशास्त्री हरबर्ट मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति के लिए चारित्रिक एवं नैतिक विकास पर बल देते थे और इसके लिए पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, इतिहास, कला तथा संगीत को मुख्य स्थान देते थे। उनके मतानुसार पाठ्यचर्या में भूगोल, गणित तथा विज्ञान को गौण स्थान देना चाहिए।
इंग्लैण्ड के शिक्षाशास्त्री नन महोदय की दृष्टि से पाठ्यचर्या में उन्हीं विषयों का समावेश किया जाना चाहिए जिनसे मनुष्य को मानव सभ्यता एवं संस्कृति की झलक मिल सके और जिनके द्वारा बच्चों को कुछ विशेष क्रियाओं में अनुशासित एवं प्रशिक्षित किया जा सके। नन महोदय ने विशेष क्रियाओं को दो वर्गों में विभाजित किया है। प्रथम वर्ग में वे क्रियाएं आती हैं जो व्यष्टिगत एवं सामाजिक जीवन की रक्षा करती हैं जैसे स्वास्थ्य रक्षा, सामाजिक संगठन, शिष्ट, नैतिक एवं धार्मिक आचरण। इसके लिये उन्होंने पाठ्यचर्या में शरीर विज्ञान, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा धर्म आदि को स्थान दिया है। दूसरे वर्ग में सभ्यता तथा संस्कृति का निर्माण करने वाली सूचनात्मक क्रियाएं और इन क्रियाओं के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने पाठ्यचर्या में साहित्य, कला, संगीत, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान तथा दस्तकारी को स्थान दिया है।
शिक्षण विधियाँ एवं आदर्शवाद
आदर्शवादी इस तथ्य से परिचित है कि बच्चा प्रारम्भ में अनुकरण द्वारा ही सीखता है इसलिए वे बच्चों के माता-पिता एवं अध्यापकों से यह अपेक्षा करते हैं कि वे बच्चों के सम्मुख उच्च आचरण प्रस्तुत करें। अध्यापकों से वे यह भी अपेक्षा करते हैं कि वे बच्चों के सम्मुख खेल चित्रकला व संगीत आदि के उत्कृष्ट नमूने प्रस्तुत करें जिनका अनुकरण कर वे इनको सीखें। वे अध्यापकों से यह भी अपेक्षा करते हैं कि वे छात्रों में अच्छे से अच्छा कर दिखाने की प्रेरणा उत्पन्न करें। उस स्थिति में अनुकरण विधि द्वारा शिक्षण आदि अधिकारी होता है। बच्चों में मूल्यों के विकास और उनके चरित्र के लिये वे बच्चों के सामने धर्मग्रन्थों और साहित्य के धीरोदात्त नायकों के चरित्र प्रस्तुत करने पर बल देते हैं। आदर्शवादियों का विश्वास है कि मनुष्य की प्रकृति अच्छे-बुरे में भेद करने की होती है, वे इन धीरोदात्त नायकों के गुणों का अनुकरण कर अच्छे मनुष्य बनेंगे।
आदर्शवादी यह मानते हैं कि मनुष्य में सीखने की आन्तरिक इच्छा होती हैं, वह जो कुछ देखते-सुनते अथवा अनुभव करते हैं उनके बारे में स्वयं सोचने लगते हैं. इसके लिए उन पर किसी बाह्य उद्दीपन के दबाव की आवश्यकता नहीं होती। इसे ही वे आत्मक्रिया कहते हैं और इस बात पर बल देते है कि बच्चों को आत्मक्रिया द्वारा सीखने के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए।
आदर्शवादी प्राचीन साहित्य का आदर करते हैं। वे मानते हैं कि हमारे प्राचीन साहित्य में हमारे पूर्वजों द्वारा खोया हुआ ज्ञान भरा पड़ा है, हमें उससे लाभ उठाना चाहिए। प्राचीन साहित्य के अध्ययन के लिए वे स्वाध्याय विधि के पक्षधर हैं। पर इस विधि का प्रयोग शिक्षा के उच्च स्तर पर ही किया जा सकता है।
पाश्चात्य आदर्शवादी विचारकों ने अनेक शिक्षण विधियों का विकास किया है। प्लेटो के गुरु सुकरात वाद-विवाद, व्याख्यान और प्रश्नोत्तर विधि द्वारा उस समय के युवकों को शिक्षा दिया करते थे। वे किसी स्थान पर युवकों को एकत्रित कर उनके सामने प्रश्न प्रस्तुत करते थे. युवक उन प्रश्नों पर विचार करते थे, उत्तर देते थे, तब वे उन प्रश्नों के सन्दर्भ में अपना मत स्पष्ट करते थे। प्लेटो ने प्रश्नोत्तर विधि के आधार पर संवाद विधि का विकास किया। प्लेटो ने अपनी अधिकतर रचनाएँ भी संवादों के रूप में लिखी हैं। प्लेटो के संवाद विश्वविख्यात है। उनके शिष्य अरस्तू आगमन और निगमन विधियों पर बल देते थे। आगमन विधि में सामान्य से विशिष्ट की ओर चला जाता है और निगमन विधि में विशिष्ट से सामान्य की ओर चला जाता है। पहले वे उदाहरण प्रस्तुत कर सामान्यीकरण करते थे और फिर इस प्रकार प्राप्त सिद्धान्त का प्रयोग करते थे। आधुनिक आदर्शवादी दार्शनिकों में हीगल ने तर्क विधि, पेस्टालॉजी ने अभ्यास और आवृत्ति विधि, हरबर्ट ने अनुदेशन प्रणाली और फ्रोबेल ने खेल विधि का विकास किया है।
Related Link
- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन तथा जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा व्यवस्था
- निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ, प्रकृति, गुण एवं इसके दोष | Meaning, nature, Merits and Demerits of prohibitive education in Hindi
- रूसो के अनुसार मानव विकास की अवस्थायें और शिक्षा | Stages of Human Development and Education according to Rousseau in Hindi
- रूसो का प्रकृतिवाद | Naturalism of Rousseau in Hindi
- रूसो की शैक्षिक विचारधारा | Educational Thoughts of Rousseau in Hindi
- गिज्जूभाई के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of Gijjubhai in Hindi
- शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में गिज्जूभाई | Gijjubhai as a Teacher-Educator in Hindi
Important Links
- स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन | विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य
- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ | विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन
- “पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।” व्याख्या कीजिए।
- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा एंव शिल्प केन्द्रित शिक्षा की आवश्यकता
- बुनियादी शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप, महत्व एंव इसके गुण | Meaning, Objectives, Nature, Importance and Properties of Basic Education
- गाँधीजी के शिक्षा का सम्प्रत्यय | Gandhiji Concept of Education in Hindi
- महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy) in Hindi
- विश्व शांति के महत्त्व एवं विकास | Importance and development of world peace
- भारत एवं विश्व शान्ति |India and world peace in Hindi
- विश्व शांति का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी आवश्यकता
- स्वामी विवेकानन्द जी का शान्ति शिक्षा में योगदान | Contribution of Swami Vivekananda in Peace Education
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व | objectives and Importance of international organization
- भारतीय संदर्भ में विश्वशान्ति की अवधारणा | concept of world peace in the Indian context
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की प्रासंगिकता | Relevance of International Organization
- भारतीय परम्परा के अनुसार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का स्वरूप
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य एवं महत्त्व | Objects & Importance of International Organization
- मानवीय मूल्यों को विकसित करने में शिक्षा की भूमिका
- मूल्यों के विकास के स्त्रोत अथवा साधन क्या हैं? What are the source or means of Development of values?
- मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति | Meaning and Definition of human value and its nature
- व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा | Concept of value in Practical life
- सभ्यता एवं संस्कृति का मूल्य पद्धति के विकास में योगदान
- संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य का अर्थ, प्रकार एंव इसके कार्य
- संस्कृति का मूल्य शिक्षा पर प्रभाव | Impact of culture on value Education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ, परिभाषा तथा मूल्य एवं संस्कृति के संबंध
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
- मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व | Meaning, Needs and Importance of Values
- विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ?
- विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एंव इसके लक्ष्य और उद्देश्य | Meaning and Objectives of Health Education
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of health education in schools
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव इसके महत्व | Meaning and Importance of Health in Hindi
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi
- समावेशित विद्यालय की क्या विशेषताएँ हैं ? समावेशी विद्यालय विकास के बिन्दु
- समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।
- समावेशी शिक्षा एवं परिवार | Role of class Teacher in Inclusive Education
- संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका | Important role of resource teacher
- समावेशी शिक्षा में कक्षा अध्यापक की भूमिका | Role of class teacher in inclusive education
- विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता | school and community interdependence
Disclaimer