आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं ? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
आदर्शवाद का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Idealism)
आदर्शवाद का आधार आध्यात्म है। आदर्शवाद मूलभूत रूप से शाश्वत मूल्यों एवं आदर्शों को स्वीकार करता है। इस विचारधारा के अनुसार भौतिक जगत की कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं है अतः इनका विशेष महत्व नहीं है। इस विचारधारा के अनुसार आत्मा परमात्मा और विचार ही शाश्वत है। आदर्शवाद के आदि प्रवर्तक प्लेटो के अनुसार प्रत्यक्षों या विचारों का एक वास्तविक विचारों के प्रकटीकरण से ही यह भौतिक जगत बना है। इसी मत को प्रत्ययवाद या विचारवाद कहा जाता है। परन्तु बाद में विभिन्न आध्यात्मवादी सिद्धान्तों के आधार पर विभिन्न रूपों में आदर्शवाद को प्रस्तुत किया गया। आदर्शवाद एक जटिल विचारधारा है अतः इसे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। आदर्शवाद मन की प्रकृति को वास्तव में स्वीकार करता है। वही बात या तथ्य सत्य एवं वास्तविक हो सकता है जो अनिवार्य रूप से आध्यात्मिक या मानसिक हो। आदर्शवाद का अर्थ स्पष्ट करने के लिए पेट्रिक ने तुलनात्मक रूप से आदर्शवाद तथा भौतिकवाद का अन्तर स्पष्ट किया है। भौतिकवाद इस संसार का आधार ‘पदार्थ’ को स्वीकार करता है परन्तु आदर्शवाद में ‘मस्तिष्क को संसार का आधार माना है। आदर्शवाद के अनुसार मन पहले है तथा पदार्थवाद बाद में। श्री पेट्रिक का कथन है, कि आदर्शवादियों का विश्वास है कि संसार का एक निश्चित अर्थ एक निश्चित अभिप्राय और शायद निश्चित लक्ष्य है और सृष्टि के हृदय तथा मनुष्य की आत्मा में एक प्रकार का आन्तरिक सामंजस्य है। यह सामंजस्य ऐसा है कि मानव बुद्धि प्रकृति के बाह्य को भेदकर कम से कम कुछ सीमा तक आन्तरिक शक्ति परमतत्व तक पहुँच सकती है। आदर्शवाद का परिचय प्राप्त करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
1. हार्न की परिभाषा – हार्न ने आदर्शवाद की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है – “आदर्शवाद का सार यह है कि ब्रह्माण्ड बुद्धि एवं इच्छा की अभिव्यक्ति है। विश्व के स्थायी तत्व की प्रकृति मानसिक है और भौतिकता की वृद्धि द्वारा व्याख्या की जाती है।”
2. बूबेकर द्वारा परिभाषा – बूबेकर ने मस्तिष्क को सर्वोपरि स्वीकार करते हुए आदर्शवाद की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, “आदर्शवादियों का कहना है कि संसार को समझने के लिए मस्तिष्क सर्वोपरि है। इनके लिए सबसे अधिक वास्तविक बात कोई नहीं है कि मस्तिष्क संसार को समझने में लगा रहे हैं किसी और बात को मस्तिष्क से अधिक वास्तविक समझना स्वय मस्तिष्क की कल्पना होगी।
3. हैन्डरसन द्वारा परिभाषा – हैन्डरसन ने मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष को आदर्शवाद का आधार मानते हुए इन शब्दों में आदर्शवाद की परिभाषा प्रस्तुत की हैं, “आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है। इसका कारण यह है। आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य और जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। आदर्शवादियों का विश्वास है कि मनुष्य अपने सीमित मस्तिष्क को असीमित मस्तिष्क से प्राप्त करता है वे यह मानते हैं कि व्यक्ति और संसार दोनों बुद्धि की अभिव्यक्तियां हैं। वे कहते हैं कि भौतिक संसार की व्याख्या मस्तिष्क से ही की जा सकती है।”
आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धान्त (Basic Principles of Idealism)
आदर्शवाद के अर्थ एवं परिभाषा के विवेचन के उपरान्त विचारधारा के सिद्धान्तों को जानना भी अनिवार्य है। आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धान्त निम्न वर्णित हैं –
1. मनुष्य का जड़ कृति की अपेक्षा अधिक महत्व- हमारा समस्त जगत दो भागों में विभक्त किया जा सकता है या जड एवं चेतना । चेतन जगत का प्रतिनिधित्व मनुष्य करता है। आदर्शवाद के सिद्धान्तों के अनुसार जड़ प्रकृति की तुलना में चेतन मनुष्य का अधिक महत्व है। इस महत्व का एक मुख्य कारण मनुष्य की बौद्धिक शक्ति भी है। मनुष्य को समस्त जड़जगत का ज्ञान प्राप्त है वह अपने ज्ञान से जड़जगत पर नियन्त्रण स्थापित करता है तथा अपनी संस्कृति का विकास करता है। एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास करता है। इन्हीं समस्त विशेषताओं के कारण मनुष्य का महत्व सर्वाधिक है।
2. आध्यात्मिक जगत का विशेष महत्व- आदर्शवाद की मान्यताओं के अनुसार भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत का अधिक महत्व है। वास्तव में आध्यात्मिक जगत ही सत्य है। भौतिक ‘जगत मिथ्या मात्र है। इसी तथ्य को फिश्नर ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है “विश्व का भौतिक पहलू सार्वभौमिक मस्तिष्क का केवल बाहरी प्रकटीकरण है। इसी प्रकार हार्न ने स्पष्ट किया है, “आदर्शवाद की मान्यता है कि विश्व का क्रम नित्य एवं आध्यात्मिक सत्यता देश एवं काल में प्रकटीकरण के “कारण चलता है।’
3. आध्यात्मिक मूल्यों का विशेष महत्व- आदर्शवादी मान्यताओं के अनुसार आध्यात्मिक मूल्यों का अधिक महत्व है। आध्यात्मिक मूल्य हैं, सत्यं, शिव, सुन्दर । ईश्वर के साक्षात्कार के लिए इन मूल्यों को जानना अनिवार्य है। इनके पूर्व साक्षात्कार से ही ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक मूल्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। इन महत्वपूर्ण मूल्यों के साक्षात्कार के लिये ज्ञान इच्छा तथा चेष्टा अनिवार्य है। ये तीनों क्रियाएं मन द्वारा परिचलित होती हैं। इन मूल्यों के महत्व को रॉस ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है – “सत्यं, शिव, सुन्दर से निरपेक्ष गुण है। जिनमें से प्रत्येक अपनी आवश्यकता के कारण उपस्थित है और वह अपने आप में पूर्णतया वांछनीय है।
4. विचार का वस्तु की अपेक्षा अधिक महत्व- भौतिक जगत की प्रत्येक वस्तु का हमारे मस्तिष्क में एक ही विचार होता है। आदर्शवाद के अनुसार भौतिक वस्तु की अपेक्षा इस विचार का महत्व अधिक होता है। यह मानसिक विचार या प्रयास ही वास्तव में सत्य होता है। वास्तव में विचार अमर एवं शाश्वत होते हैं, वे नष्ट नहीं होते परन्तु भौतिक वस्तुएं नष्ट हो जाती हैं, विचार सूक्ष्म होते हैं तथा मस्तिष्क में रहते हैं। विचार आदि काल से ही हैं तथा यदि एक बार वस्तु नष्ट भी हो जाये तो इस विचार के आधार पर उसका पुनः निर्माण किया जा सकता है। इसलिये विचार का वस्तु की अपेक्षा महत्व है।
5. अनेकत्व में एकता का सिद्धान्त- आदर्शवाद के अनुसार अनेकत्व में एकत्व को स्वीकार किया गया है। विश्व में प्रतीत होने वाली विभिन्नता के पीछे एकता भी है। यह एकता ईश्वर, चेतन अथवा सत्य के रूप में नियन्त्रणकारी शक्ति है। शिक्षा के उददेश्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इसी परमशक्ति का साक्षात्कार करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्यपूर्ण समझना चाहिए।
6. आत्मा और परमात्मा का अनादि अनन्त अस्तित्व- आदर्शवाद का एक सिद्धान्त यह है कि आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व है तथा ये आदि एवं अनन्त हैं। परमात्मा को स्थूल इन्द्रियों द्वारा देखा सुना नहीं जा सकता है परन्तु मन द्वारा इसका अनुभव किया जा सकता है। परमात्मा को सत्य के माध्यम से जाना जा सकता है। इसी प्रकार आत्मा को भी सूक्ष्म अनादि तथा अनन्त स्वीकार किया गया है। कुछ आदर्शवादी आत्मा और परमात्मा का ही एक अंश स्वीकार करते हैं बल्कि कुछ विचारकों ने आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार किया है।
7. सत्य विचार आचरण तथा उच्च चरित्र का महत्व- आदर्शवाद में आचरण को भी विशेष महत्व दिया जाता है। परम लक्ष्य अर्थात् आत्मानुभूति के लिये सत्य-विचार, आचरण एवं उच्च चरित्र का होना भी आवश्यक है। इससे यह लोक तथा परलोक दोनों का ही सुधार होता है।
8. आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर मानव विकास- आदर्शवाद के अनुसार मानव विकास आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर होता है। इस मान्यता के अनुसार मनुष्य को कुछ आध्यात्मिक) शक्तियाँ उपलब्ध हैं इन्हीं शक्तियों एवं सभ्यता एवं संस्कृति के द्वारा मनुष्य के अपने भौतिक पर्यावरण) को नियन्त्रण करता है तथा क्रमशः आत्मानुभूति की दिशा में अग्रसर होता है जोकि मनुष्य का परम लक्ष्य है।
9. राज्य की सत्ता सर्वोच्च- सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन में आदर्शवादी राज्य की सत्ता को सर्वोच्च मानते हैं। व्यक्ति की अपेक्षा राज्य का महत्व अधिक है। राज्य एवं राज्य की सत्ता को विशेष महत्व दिया गया है। प्लेटो, हेगेल तथा फिल्टे आदि आदर्शवादियों ने हर प्रकार से राज्य की सत्ता को महत्वपूर्ण माना है।
10. आत्मानुभूति परम लक्ष्य है- आदर्शवाद की मान्यताओं के अनुसार मनुष्य का जीवन सप्रयोजन है। मनुष्य का अस्तित्व उसकी आत्मा अनादि तथा अनन्त है तथा परमात्मा का अंश है। परन्तु अज्ञानवश मनुष्य आत्मा के इस स्वरूप को नहीं जान पाता जब मनुष्य को इस सत्यता का ज्ञान हो जाता है तो उसे परम आनन्द की प्राप्ति होती है तथा यही स्थिति आत्मानुभूति की होती है। आत्मानुभूति ही मनुष्य का परम लक्ष्य है।
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