योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
योजना अथवा प्रोजेक्ट विधि की उत्पत्ति दार्शनिक विचारधाराओं के प्रयोजनवादी सम्प्रदाय के फलस्वरूप हुई। यह विधि जॉन डीवी (John Dewey) के शिक्षा सम्बन्धी मत तथा समस्या विधि के स्वाभाविक विकास से विकसित हुई। योकम एवं सिम्पसन (Youkam and Simpson) का मत है कि योजना विधि का प्रयोग सबसे पहले व्यावसायिक क्षेत्र में किया गया था। शिक्षा के का में इसका प्रयोग कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन डीवी तथा उनके शिष्य किलपैट्रिक द्वारा किया गया। डीवी शिक्षा के तत्कालीन रूप एवं व्यवस्था से असन्तुष्ट थे तथा वे चाहते थे कि शिक्षा छात्रों को यथार्थ अथवा व्यावहारिक जीवन से परिचित कराये।
योजना विधि की परिभाषा (Definition of Project Method) –
योजना को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है, जो निम्नलिखित हैं-
किलपैट्रिक के अनुसार – “प्रोजेक्ट वह सहदयपूर्ण अभिप्राय युक्त क्रिया है जो पूर्ण संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में की जाए।”
वैलार्ड के अनुसार – “प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटा-सा अंश होता है जिसे विद्यालय में सम्पादित किया जाता है।”
पार्कर के अनुसार – “प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।”
सी०वी० गुण के अनुसार – “योजना नियोजित होती है तथा इसकी पूर्ति का प्रयास शिक्षक तथा शिक्षार्थियों के द्वारा स्वाभाविक जीवन जैसी परिस्थितियों में किया जाता है।”
थॉमस और लैंग के अनुसार – “प्रोजेक्ट इच्छानुसार किया जाने वाला ऐसा कार्य है, जिसमें रचनात्मक प्रयास अथवा विचार हो और जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम भी हो।”
योजना विधि की विशेषताएँ (Characteristics of Project Method)
एक श्रेष्ठ तथा सफल योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं.
1. योजना मितव्ययी होनी चाहिए।
2. योजना छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण एवं रोचक होनी चाहिए।
3. योजना का व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से उपयोगी होना अनिवार्य है।
4. योजना में विभिन्न प्रकार की अनेक क्रियाओं का समावेश होना चाहिए।
5. योजना सम्बन्धी सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो स्कूलों अथवा उनके आस-पास उपलब्ध हो सके। दूसरे शब्दो में, छात्रों को इसके प्रयोग में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
योजना विधि के लाभ (Advantages of Project Method)
प्रोजेक्ट पद्धति एक ऐसी योजना है जिसका प्रयोग किसी सामाजिक समस्या के समाधान हेतु किया जाता है। प्रो० किलपैट्रिक के अनुसार, “प्रोजेक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो सामाजिक वातावरण में पूर्ण संलग्नता से किया जाए।”
प्रोजेक्ट पद्धति के प्रमुख लाभ निम्नवत् हैं-
1. प्रोजेक्ट पद्धति में छात्रों को विभिन्न सामाजिक सिद्धान्तों तथा मनोवैज्ञानिक नियमों का ज्ञान प्राप्त होता है।
2. इस पद्धति के द्वारा शिक्षण से छात्रों को सीखने के विभिन्न नियमों, विभिन्न मनोदशाओं, जिज्ञासाओं तथा इच्छाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
3. शिक्षण में प्रोजेक्ट पद्धति के द्वारा कार्य अनुभव, विभिन्न क्षेत्रों में विचारशीलता, सामाजिक कुशलता इत्यादि को विकसित करने में सहायता मिलती है।
4. शिक्षण में प्रोजेक्ट योजना पद्धति के द्वारा जीवन से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं का उद्देश्यपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है।
5. योजना पद्धति के द्वारा हम विभिन्न विषयों का अध्ययन एक सम्मिलित एकीकृत रूप में कर सकते हैं।
6. प्रोजेक्ट पद्धति द्वारा के शिक्षण को मितव्ययिता तथा प्रभावशीलता की दृष्टि से अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
7. प्रोजेक्ट पद्धति के द्वारा छात्रों एवं नागरिकों को लोकतन्त्र का प्रशिक्षण प्रदान करके उनमें सामाजिक, राजनैतिक एवं नागरिक गुणों की समझ विकसित करने में अधिक सफलता मिलती है।
8. यह पद्धति व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर पिछड़े एवं अति प्रतिभाशाली छात्रों के लिए लाभदायी है।
परियोजना विधि के दोष (Demerits of Project Method)
सामान्यतः प्रोजेक्ट विधि के जहाँ लाभ हैं वहीं इसकी कुछ हानियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
(1) यह विधि अधिक महंगी होती है।
(2) शिक्षण कार्य व्यवस्थित नहीं हो पाता है।
(3) छात्रों का उचित मूल्यांकन करने में समस्या होती है।
(4) श्रम अधिक खर्च होता है।
(5) उच्च स्तर पर केवल प्रोजेक्ट से शिक्षण नहीं किया जा सकता।
(6) परियोजनाओं के लिए उपकरणों तथा प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है।
(7) योजना के लिए उचित सन्दर्भ साहित्य का अभाव हो सकता है।
(8) यह प्रत्येक विद्यालय से सम्भव नहीं है।
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