प्राथमिक शिक्षा की समस्यायें (Problems of Primary Education)
भारत में अनेकों समस्याएँ थीं, उनमें से एक समस्या हमारे विद्यालयों के समक्ष शिक्षा की समस्या भी थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह आवश्यक हो गया था कि शिक्षा का पुनर्मूल्यांकन किया जाये। पुर्नमूल्यांकन करने के पश्चात वे सभी कारण ज्ञात हुए जिनके कारण हमारा देश अशिक्षित रहा। नयी शिक्षा योजना लागू होने के बाद भी शिक्षा की प्रगति सन्तोषजनक नहीं रही। इन पर विचार करने पर प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी निम्न समस्याएँ सामने आयर्थी जो आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं।
1. प्रशासन की समस्यायें (Problem of Administration) – भारत में प्राथमिक शिक्षा का दायित्व पूर्णरूप से स्थानीय प्रशासन पर और आंशिक रूप से राज्य प्रशासन पर है। ये दोनों ही प्रशासन प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में अपने-अपने ढंग से कार्य करते हैं। राज्य में तथा स्थानीय प्रशासन में सहसम्बन्धों का अभाव पाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रशासन अपना काम सुचारु रूप से नहीं कर पाते।
2. विद्यालयों की व्यवस्था (Arrangement of Schools) – भारत में 14 वर्ष तक की आयु के बालकों के लिये शिक्षा अनिवार्य की गयी है। लेकिन विद्यालयों को कमी के कारण इस उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा पा रहा है। जनसंख्या के अनुपात में विद्यालयों का ठीक ढंग से वितरण न होने के कारण यह समस्या बनी हुई है। गाँवों में यह समस्या और भी गंभीर है। अक्सर देखा गया है कि गाँव में विद्यालय भवनों की उचित व्यवस्था नहीं होती है तथा योग्य शिक्षकों का अभाव भी होता है, जिसके परिणाम स्वरूप बालकों की शिक्षा बाधित होती है।
3. अध्यापकों की समस्या (Problem of Teachers). प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों को उचित वेतन नहीं मिलता है। जिसके कारण योग्य अध्यापक प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने में रुचि नहीं लेते हैं। अत: न्यूनतम योग्यता रखने वाले अध्यापकों द्वारा पढ़ाने से शिक्षा के स्तर में गिरावट होती है।
4. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम (Defective Curriculum) – हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा का संचालन अनेक संस्थाओं द्वारा होता है। अत: इनका पाठ्यक्रम भी अलग-अलग है। पाठ्यक्रम व्यवस्थित नहीं है कहीं पर पाठ्यक्रम कम है, तो कहीं पर अधिक। पाठ्यक्रम संकीर्ण, कठोर एवं एक मार्गीय है। पुस्तकीय ज्ञान पर बल दिया जाता है।
5. धन का अभाव (Lack of Wealth)- विश्व के अन्य देश शिक्षा के कुल बजट का 50% भाग ही प्राथमिक शिक्षा पर खर्च करते हैं। जबकि भारत अपने बजट का 35% भाग प्राथमिक शिक्षा पर खर्च करता है। जिसके परिणामस्वरूप योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है।
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