शारीरिक रूप से विकलांग की क्रियात्मक असमर्थताओं तथा इनको शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
शारीरिक रूप से अपंग बालकों की शैक्षिक उपलब्धि प्राय: सामान्य ही होती है लेकिन कई केसों में यह पाया गया है कि इनकी उपलब्धियों सामान्य बालकों से अधिक होती है। शारीरिक अपंगता के कारण इनको कई प्रकार की क्रियात्मक असमर्थताओं की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इनकी क्रियात्मक समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
- इनको प्राय: बाहर आने-जाने के लिए बाहरी सहारे की आवश्यकता पड़ती है। इनकी असमर्थता इनके शारीरिक विकलांगता के स्तर पर निर्भर करती है।
- शरीर की विकलांगता के कारण ये पढ़ाई पर कम ध्यान दे पाते हैं।
- विद्यालय की सहगामी व अन्य क्रियाओं में भाग लेना इनके लिए काफी मुश्किल होता है।
- विद्यालय में बालक इनकों दया की दृष्टि से देखते हैं। इस दृष्टि से देखे जाने पर इनके आत्म-सम्मान को ठेस लगती है।
- प्रायः घर में इनके सम्बन्ध माँ-बाप व घर के दूसरे सदस्यों के साथ मधुर नहीं होते।
- इनका स्वभाव चिड़चिड़ा, जीवन के प्रति उदासीन व निराशावादी होता है।
- इनको बार-बार अपनी शारीरिक जांच के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। जिससे इनका काफी समय खराब होता है। समय बर्बादी का प्रभाव इनकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है।
- अपंग होने के कारण सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने में असमर्थ होते हैं। असमर्थता के कारण इनको अपने आप पर गुस्सा आता है।
शिक्षक की भूमिका-
शारीरिक रूप से विकलांग बालकों को सबसे अधिक समायोजन की समस्या का सामना करना पड़ता है। अध्यापाक को चाहिए कि वह इस प्रकार बालकों को विद्यालय में समायोजित करने में उनकी सहायता करें। ये बालक भी समाज का एक अंग है तथा उनको समाज में पूरा सम्मान मिलना चाहिए।
शिक्षक को इन्हें शिक्षा देते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
- सबसे पहल अध्यापक को चाहिए कि वह इनकी विकलांगता के स्तर व मानसिक स्तर की जानकारी प्राप्त करे।
- इनकी आवश्यकता के अनुसार इनके लिए बैठने का प्रबन्ध होना चाहिए ताकि इनको किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो।
- जो बालक पैरों से असमर्थ हैं उनके लिए वैसाखी, पहियेदार कुर्सी का प्रबन्ध होना चाहिए ताकि उन्हें कक्षा-कक्ष में आने-जाने में कोई परेशानी न हो।.
- विद्यालय के फर्श अधिक फिसलने वाले नहीं होने चाहिए ताकि ये आसानी से आ-जा सकें।
- दूसरे विकलांग बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों का उल्लेख करके नके आत्म विश्वास को जगाना चाहिए ताकि वह अपने आपको दूसरों पर निर्भर व हीन महसूस न करें।
- अगर अध्यापक यह महसूस करता है कि इनको सामान्य शिक्षा कक्ष में वांछित लाभ नहीं हो रहा है तो इनके विशेष कक्षाओं का प्रबन्ध करना चाहिए।
- अध्यापक को चाहिए कि समय-समय पर इनके माता-पिता से मिलता रहे ताकि उनकी उपलब्धियों की जानकारी उन्हें मिलती रहे।
- अध्यापक को समय-समय पर इन बालकों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षण लेते रहना चाहिए।
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