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हड्डियों के रोगों से ग्रस्त या विकलांग बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है?

हड्डियों के रोगों से ग्रस्त या विकलांग बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है?
हड्डियों के रोगों से ग्रस्त या विकलांग बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है?
हड्डियों के रोगों से ग्रस्त या विकलांग बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है? विवेचना कीजिए। 

विकलांग बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान की जा सकती है?

शारीरिक रूप से अपंग बालक भी समाज का एक अभिन्न अंग हैं। अतः हम सब का यह कर्तव्य बन जाता है कि हम उनकी शारीरिक मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें ताकि वह भी आत्मनिर्भर हो कर समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जी सके। हम विकलांग बालकों को निम्न प्रकार से शिक्षा प्रदान कर सकते हैं-

(1) समायोजन- शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के सामने सबसे बड़ी समस्या समायोजन की होती है। उन्हें घर, विद्यालय तथा समाज में अपने आप को समायोजित करना पड़ता है। अगर हम उन बालकों को हेय दृष्टि से देखेंगे तो उनमें हीन भावना पनपने लगेगी। हमें उनकी शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनकी सहायता करनी चाहिए ताकि उनमें आत्मविश्वास की भावना जागृत हो तथा वे अपने आप को अकेला न समझें। हमें उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए कि वे भी सामान्य बालकों की भांति हैं। उन्हें अन्य बालकों के साथ समझौता करने की प्रेरणा देना चाहिए। शारीरिक, मानसिक व योग्यता के अनुसार उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे आत्म-निर्भर होकर समानपूर्वक जीवन जी सकें। जब उन्हें घर, विद्यालय तथा समाज से सहयोग मिलेगा तो वे और ध्यान लगाकर अपनी पढ़ाई कर सकेंगे।

( 2 ) देखभाल- शारीरिक रूप से अपंग बालकों को कई कारणों स दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है अतः घर में हमारा यह कर्तव्य बन जाता है कि हम उनकी छोटी-से-छोटी आवश्यकताओं का ध्यान रखें। शारीरिक दोषों को दूर करवाने के लिए उनका उचित इलाज करवाना चाहिए। कृत्रिम अंग लगा कर उनको अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरणा देना चाहिए। उनकी मानसिक योग्यताओं व शारीरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनकी शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना चाहिए।

(3) उपचार सुविधा- कुछ अपंग या विकलांग बालकों को समय-समय पर अपने आप को चेक-अप करवाना पड़ता है। इसके लिए उसे अवकाश की आवश्यकता पड़ती है तथा उनको विद्यालय से अनुपस्थित भी रहना पड़ता है। इससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि प्रभावित होती है। अध्यापक वे दूसरे छात्रों को ऐसे बालकों के साथ सहयोग करना चाहिए तथा विद्यालय के नियम इन बालकों के लिए लचीले होने चाहिए। इनको हर प्रकार की संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए।

(4) विशेष कक्षा- शिक्षा शास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि शारीरिक रूप से विकलाग बालकों को सामान्य बालकों के साथ ही शिक्षा प्रदान करना चाहिए लेकिन कुछ बालक ऐसे भी होते हैं जिनकी आवश्यकताएँ सामान्य बालकों से अलग होती है और वह साधारण कक्षा में वांछित लाभ नहीं उठा सकते। ऐसे बालकों के लिए विशेष कक्षा का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

(5) विशेष कक्षाएँ- कुछ बालकों को अपनी बीमारी के कारण स्कूल से कई दिन की छुट्टी करनी पड़ती है। इससे उनका शैक्षिक नुकसान होता है और वह पढ़ाई में सामान्य बालकों से पिछड़ जाते हैं। उनकी पढ़ाई के नुकसान को पूरा करने के लिए विशेष कक्षाएँ लगा कर उनकी शैक्षिक क्षतिपूर्ति करनी चाहिए ।

(6) निपुण अध्यापक- एक साधारण अध्यापक जब सामान्य कक्षा में शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे को पढ़ाता है तो वह विकलांग बालक के मनोविज्ञान को नहीं समझ सकता। अतः ऐसे बालकों के लिए एक निपुण व प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक की नियुक्ति करनी चाहिए जो इनके सामाजिक, व्यक्तिगत संवेगात्मक व शारीरिक विकास को ध्यान में रखकर उनके विकास में अपना योगदान दें। ऐसे बालकों के लिए हम किसी विशेष प्रशिक्षित अध्यापक की सेवाएँ भी ले सकते हैं। वह आवश्यकतानुसार विद्यालय की स्थापना विकलांग बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करे तथा अपने निर्देशन में इन बालकों को शिक्षा प्रदान करें।

(7) विशेष विद्यालय- कुछ बालक जो शारीरिक रूप से अधिक अपंग या विकलांग होते हैं वह सामान्य बालकों के साथ शिक्षा का लाभ नहीं उठा सकते तथा न ही वह विशेष या अतिरिक्त कक्षाओं में पढ़ सकते हैं। उनकों पढ़ाने के लिए हमें विशेष विद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए। इन विद्यालयों में विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापक, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक वे एक डॉक्टर का प्रबन्ध होना चाहिए।

इन विद्यालयों में निम्नलिखित सुविधाएँ अवश्य उपलब्ध होना चाहिए।

  1. जाँच के लिए शारीरिक उपचार कक्ष के साथ-साथ डॉक्टर व दवाइयों का प्रबन्ध होना चाहिए।
  2. व्यायामशाला कक्ष के साथ-साथ एक मनोरंजन कक्ष की भी स्थापना होना चाहिए ताकि इलाज के साथ-साथ उनका मनोरंजन भी होता रहे।
  3. विद्यालय के दरवाजे ऊँचे व अधिक चौड़े होने चाहिए। घुमावदार सीढ़ियों के साथ-साथ लिफ्ट का भी प्रबन्ध होना चाहिए।
  4. कुर्सी, मेज तथा दूसरा फर्नीचर बालकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनवाना चाहिए।
  5. पीने के पानी की टंकी की ऊँचाई सभी बालकों के कद के अनुसार रखनी चाहिए ताकि उन्हें पानी पीने में कोई कठिनाई न हो।
  6. विद्यालय में एक आराम कक्ष अवश्य होना चाहिए ताकि बालक खाली समय में वहाँ पर आराम कर सकें।
  7. छात्रावास का प्रबन्ध विद्यालय के साथ ही होना चाहिए ताकि उन्हें आने-जाने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई न हो।
  8. विकलांग बालकों की शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा देने के लिए योग्य, कुशल व अनुभव अध्यापकों की नियुक्ति करनी चाहिए।
  9. विद्यालय में एक पुस्तकालय की भी स्थापना होनी चाहिए ताकि बालक वहाँ जाकर ज्ञान अर्जित कर सकें।

(8) विशेष पाठ्यक्रम- आमतौर पर विकलांग बालकों को सामान्य बालकों के साथ ही पढ़ाया जाता है तथा उनको वहीं पाठ्यक्रम पढ़ना पड़ता है जो दूसरे सामान्य बालक पढ़ते हैं। कुछ बालकों की शारीरिक अपंगता इतनी अधिक होती है कि वह उस सामान्य पाठ्यक्रम, का लाभ नहीं उठा सकते। अतः यह आवश्यक बन जाता है कि उनकी आवश्यकता व मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनाया जाए। पाठ्यक्रम के साथ-साथ उनकी परीक्षा भी लचीली रखी जानी चाहिए ताकि उन्हें किसी प्रकार का कोई मानसिक तनाव न हो ।

(9) व्यावसायिक प्रशिक्षण- शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक रूप से विकलांग बालकों को उनके मानसिक स्तर व आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उन्हें उचित व्यावसायिक प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वह उनमें निपुण होकर अपनी योग्यतानुसार अपना रोजगार कर सके या फिर कहीं नौकरी कर सके। व्यावसायिक प्रशिक्षण उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होगा और उनमें सकारात्मक सोच का संचार होगा।

(10) समाजीकरण- समाज में प्रायः विकलांग बालक को हेय की दृष्टि से देखा जाता है। इससे उनमें हीनभावना का विकास होता है और उनके स्वाभिमान को ठेस लगती है। अतः यह अति आवश्यक हो जाता है कि हम उन्हें पूरा सम्मान दें व उनका मजाक न उडाएँ। घर, विद्यालय व समाज में समायोजित करने के लिए उनका पूरा सहयोग दें ताकि उनका समाजीकरण हो सके और वे भी अपने आप को समाज का अंग समझें। उनकी शारीरिक अपंगता को ध्यान में रखकर उनके लिए व्यायामशाला विशेष कार्यक्रम, खेल-कूद, गोष्ठियों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। उनको भी इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

(11) नौकरी- विकलांग बालकों को शिक्षा वे व्यावसायिक शिक्षा देने के पश्चात् उनके लिए सम्मानजनक नौकरी का प्रबन्ध करना चाहिए। भारत सरकार द्वारा विकलांगों के लिए व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना की गई है। ये केन्द्र अपंग या विकलांग बालकों को उनकी योग्यता, रुचि व अभिरुचि को ध्यान में रखकर प्रशिक्षण प्रदान करते हैं तथा इनको. रोजगार दिलाने में सहायता प्रदान करते हैं। विकलांगों की भलाई हेतु राज्य राष्ट्र स्तर पर ही नहीं बरन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य हो रहे हैं। 20 सितम्बर, 1959 को ज्यूरिख सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि प्रति वर्ष मार्च महीने के तृतीय रविवार को विश्व विकलांग दिवस मनाया जाए। यूनेस्को ने वर्ष 1982 को विकलांगों को अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था। सरकारी नौकरियों वे विद्यालय यो विश्वविद्यालय में दाखिल के लिए तीन प्रतिशत सीटें विकलांगों के लिए रखी गई हैं। 3 दिसम्बर को विकलांग दिवस मनाया जाता है।

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