पाठ्य सहगामी क्रियाएँ कितने प्रकार की होती है? उल्लेख कीजिए।
पाठ्य सहगामी क्रियाओं के प्रकार
अनेकों प्रकार की सहगामी क्रियाओं का विद्यालय में संगठन करना चाहिए। इनका वर्णन अब हम कर रहे हैं-
(1) विद्यार्थी या छात्र परिषद्- विद्यालयों में विद्यार्थी परिषद् को स्थापित करना अति आवश्क है। विद्यार्थी परिषद् विद्यार्थियों के हित के लिए स्थापित किये जाते हैं। विद्यार्थी अपने प्रतिनिधियों का चुनाव विद्यार्थियों द्वारा ही किया जाता है। विद्यार्थी परिषद् के लिए विद्यार्थी अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और इस प्रकार जनतंत्र की प्रक्रिया में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। विद्यार्थी परिषद् का उद्देश्य विद्यालय जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय तथा एकत्व लाना होता है। परिषद् का प्रशासन एक शिक्षक के निर्देशन में किया जाता है किन्तु विद्यार्थीियों को अपने ढंग से कार्य करने की स्वतंत्रता होती है। शिक्षक केवल पथ-प्रदर्शन करता है। वह अपनी सत्ता परिषद् के चलाने में थोपता नहीं है। विद्यालय में छात्र परिषद् विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के लिए बनाये जाते हैं। उदाहरण के लिए छात्र परिषद् खेलकूद के लिए अथवा साहित्यिक गतिविधियों के लिए स्थापित किये जा सकते हैं।
मेककोन ने अपनी पुस्तक “The Student Council” में 364 ऐसी क्रियाओं का वर्णन किया है जो छात्र परिषद् द्वारा अपनाई जा सकती हैं। उनमें से कुछ हैं-
1. नये छात्रों का शुभागमन करना।
2. विद्यालय की स्वच्छता का पर्यवेक्षण।
3. विद्यालय के मेहमानों को आदर देना।
4. सड़क पर चलने के नियमों का पालन करना।
5. विद्यालय की सामग्री की सुरक्षा करना।
6. विद्यालय का वातावरण दूषित होने से बचाना।
7. विद्यार्थियों का समय पर आना सुनिश्चित करना।
8. बीमार विद्यार्थियों की सेवा करना।
9. विकलांगों को सेवा देना।
10. विद्यार्थियों में धूम्रपान की आदतों को छुड़वाना।
11. विद्यालय के प्रशासनिक संगठन की ओर आदर भाव विकसित करना।
12. विद्यालय के नियमों और कानूनों का पालन करना।
13. उन विद्यार्थियों को दण्ड देना जो विद्यालय का अनुशासन तोड़ते हैं।
14. विद्यालय का सभा के समय अच्छे व्यवहार को निश्चित करना।
15. विद्यालय के बाग-बगीचों का रख-रखाव।
16. खेल के मैदान का रख-रखाव।
17. साहित्यिक गोष्ठियों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, कविता पाठ इत्यादि को संगठित करना।
18. विद्यालय की क्रियायें, जैसे वन भ्रमण इत्यादि का संगठन करना।
19. विद्यालय की पत्रिका की छपाई करना।
20. पुस्तकालय और गठन कक्ष का पर्यवेक्षण करना।
21. गायन अथवा नाटक सम्बन्धी कार्यक्रमों का संगठन।
(2) विद्यालय सभा- एक अन्य प्रकार की सहगामी क्रिया विद्यालय सभा की है। अच्छे विद्यालयों में विद्यालय के शिक्षण कार्य के प्रारम्भ होने से पहले प्रातःकाल विद्यालय सभा आयोजित की जाती है। इन सभाओं में सब विद्यार्थी इकट्ठे होते हैं। प्रार्थना की जाती है और विद्यार्थियों को निर्देश दिये जाते हैं। सभायें किसी भी समय विद्यालयों में आयोजित की जा सकती हैं।
विद्यालय सभा के उद्देश्य
निम्नलिखित विद्यालय सभा के उद्देश्य हैं-
1. विद्यार्थियों में विद्यालय के सदस्य होने की भावना पनपाती है- क्योंकि विद्यार्थी कक्षाओं में बँटे होते हैं वह विद्यालय को एक पूर्ण इकाई के रूप में नहीं देख पाते। उनको इकट्ठा करके उनमें विद्यालय के साथ अपनेपन के भाव का विकास कर दिया जाता है।
2. सभा के समय विद्यार्थियों को सामान्य अनुभवों, आदर्शों और सुझाव के बारे में निर्देश दिये जाते हैं- विद्यार्थियों को उँचे आदर्शों के सम्बन्ध में निर्देश दिये जाते हैं और उन्हें ऐसे सामान्य अनुभवों का वर्णन दिया जाता है जो विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होता है।
3. अच्छे व्यवहार की शिक्षा प्रदान करना— विद्यार्थि प्रार्थना करना,सुनना तथा शान्तिपूर्ण ढंग से सभा के समय व्यवहार करना सीख जाते हैं। यह सभायें अच्छे व्यवहार के प्रशिक्षण केन्द्र होती हैं।
4. उन विद्यार्थियों की सराहना करना जिन्होंने अच्छा कार्य किया है- सभा के समय उन विद्यार्थियों को जिन्होंने किसी विद्यालयी क्रिया में उत्तम कार्य किया है, अच्छे व्यवहार के प्रशिक्षण केन्द्र होती है।
5. राष्ट्रीय दिवसों को मनाया जाता है- विद्यालय सभा के समय स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयन्ती इत्यादि को मनाया जाता है अथवा प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा भाषण इत्यादि का आयोजन सम्पूर्ण विद्यालय के विद्यार्थियों के लिए किया जाता है।
6. पिकनिक तथा पर्यटन- भ्रमण अथवा पर्यटन का आयोजन विद्यार्थियों के मनोरंजन के लिए किया जाता है। किन्तु इनका बहुत कुछ शैक्षिक मूल्य भी है। विद्यार्थी जब पर्यटन या भ्रमण कर जाते हैं तो वह प्रकृति से आमने-सामने के सम्पर्क में आते है। यह निकट सम्पर्क उनको प्रकृति से सीखने के योग्य बना देता है।
पर्यटन या भ्रमण के उद्देश्य-पर्यटन या भ्रमण के उद्देश्य हैं-
बालकों की भ्रमण करने की प्रवृत्ति का उपयोग शैक्षिक कार्यक्रम के लिए किया जाये। प्रत्येक व्यक्ति में विभिन्न स्थानों को देखने की चाहत होती है। बालक दिन-प्रतिदिन कक्षा के कमरे में कार्य करते-करते ऊब जाते हैं। वह कक्षा से बाहर भागना चाहते हैं।
- विद्यार्थियों को वातावरण से परिचित कराना।
- पाठ्यक्रम सम्बन्धी अनुभवों को अधिक बोधशील बनाना।
- पाठ्यक्रम सम्बन्धी सामग्री को इकट्ठा करना जैसे कि फूलों इत्यादि को
- वनस्पतिशास्त्र के अध्ययन के लिए इकट्ठा करना अथवा वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए पत्थर रोड़े इत्यादि इकट्ठा करना।
- बालकों को निरीक्षण, खोज एवं विभिन्न विषयों के सीखने के लिए प्रेरणा देना।
- विद्यार्थियों में विशिष्ट रुचियाँ विकसित करना।
(4) रुचिकर्म अथवा शौक- यह अवकाश के समय का उचित उपयोग करने के लिए बहुत लाभदायक है। रुचिकर्म द्वारा विद्यार्थी अपना मनोरंजन कर सकते हैं और सृजनात्मक क्रियायें भी कर सकते हैं। अतएव हम हाँबी की दो विशेषताओं का वर्णन कर सकते हैं—(a) मनोरंजन तथा (b) सृजनात्मक कार्य।
हॉबी को प्रोत्साहित करने के कारण निम्नलिखित हैं-
- बालक को अपनी हॉबी पर कार्य करने में प्रसन्नता होती है।
- हॉबी उसे अवकाश के समय का उचित उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करती है।
- हॉबी मन को उत्तेजना प्रदान करते हैं और विद्यार्थियों को सृजनात्मक प्रवृत्तियों को विकसित करते हैं।
- यह विद्यार्थियों की कल्पनात्मक शक्तियों में वृद्धि लाते हैं।
- कभी-कभी वह बालकों को उन व्यवसायों का शिक्षण देने में सफल होते हैं जो कि वह भविष्य में अपनाना चाहते हैं।
- हॉबी एक सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास की ओर ले जाने वाले होते हैं।
- यह हाथों से कार्य करने की ओर आदर का भाव विकसित करते हैं।
हॉबी के प्रकार- बहुत से प्रकार की हॉबी होती हैं। हॉबी की पसन्द बालक की आयु, रुचि इत्यादि पर निर्भर होती है। एक हॉबी जो 6 वर्ष के बालक को आकर्षित करती है वह 14 वर्ष के बालक को सम्भवतः नहीं करेगी। कुछ अच्छी हॉबी जिनको शिक्षकों को विद्यार्थियों द्वारा अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिए, वह हैं-
(1) चित्रांकन, (2) चित्रकारी, (3) बागवानी, (4) पर्यटन, (5) फोटोग्राफी, (6) प्रतिदर्श का संकलन, (7) सहयोगी समितियाँ बनाना, (8) बालचर, (9) स्टाम्प या सिक्के जमा करना, (10) वैज्ञानिक प्रयोग, (11) मिट्टी के मॉडल बनाना, (12) काष्ठ कला, (13) ऐसी वस्तुएँ जैसे—साबुन, वार्निश वगैरा बनाना।
5. विद्यालय पत्रिका- विद्यालय पत्रिका विद्यार्थियों को अपने विचारों को प्रकट करने में सहायता देती है। यह विद्यार्थियों को लेख, कहानियों एवं कविताओं को लिखने का प्रशिक्षण देती है। जब बालक अपने लेख को छपे रूप में देखता है तो उसे प्रसन्नता होती है और वह अच्छे लेख लिखने के लिए प्रेरित हो जाता है। पत्रिका आत्म प्रकाशन की शक्ति को विकसित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
6. विद्यालय क्लब तथा अन्य संस्थाएँ– विद्यालय क्लब तथा अन्य संस्थाओं को विद्यालय की सहगामी क्रियाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान देना चाहिए। क्लब का स्थापन विद्यार्थियों की रुचियों को विकसित करने के लिए होता है। क्लब को विद्यार्थियों की सृजनात्मक क्रियाओं के लिए अवसर प्रदान करने चाहिए तथा नेतृत्व के गुण विकसित करने चाहिए।
7. बालचर- बालचर या स्काउटिंग के जन्मदाता सर रोबर्ट बेडन पॉवल थे। इसका मुख्य उद्देश्य चरित्र का विकास करना था। वह सहयोग और भाईचारे पर बल देता है।
8. बालिका गाइड- बालिका विद्यालयों में बालिका गाइड की क्रियायें स्काउटिंग की भाँति होती है। बालिका गाइडिंग क्रियाओं द्वारा बालिकाएँ गृह कार्य करना सीखती हैं। उनके स्वास्थ में भी सुधार होता है और उन्हें अच्छा नागरिक बनने का प्रशिक्षण मिल जाता है। अधिकतर समाज सेवा के गुण जो बालकों में स्काउटिंग द्वारा विकसित होते हैं। वह बालिकाओं में बालिका गाइडिंग द्वारा विकसित किये जाते हैं।
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