निरक्षरता उन्मूलन क्या है?
निरक्षरता उन्मूलन का अर्थ है, समाज के ऐसे व्यक्तियों को साक्षर बनाना अथवा उन्हें लिखने-पढ़ने योग्य बनाना, जो न तो कुछ पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए ही सम्भवतः यह उक्ति बनी है-काला अक्षर भैंस बराबर। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि आज से लगभग चार-पाँच हजार वर्ष पहले जिस देश में वेदों की ऋचाएं गूंजती थीं और लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व जहाँ नालन्दा,तक्षशिला, विक्रमशिला तथा बल्लभी जैसे उच्च कोटि के विश्वविद्यालयों की विशाल श्रृंखला विद्यमान थी और जिसे ज्ञान, धर्म, अध्यात्म, नीति, आचार और साधना में विश्वगुरु का सम्मान प्राप्त था, आज उसी महान राष्ट्र में हमें साक्षरता के लिए विचार करना पड़ रहा है और उसके लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनानी पड़ रही हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया जो ऋषियों, मुनियों, मनीषियों, तपस्वियों और विद्वानों से भरी हुई भारत भूमि तथा मनु, सुश्रुत, चरक, धन्वन्तरि, याज्ञवल्क्य, गौतम और अशोक जैसी महान विभूतियों से सजी हुई वीर भोग्या वसुन्धरा को आज निरक्षरता के अभिशाप से जूझना पड़ रहा है?
यह सोच कर ही लज्जा अनुभव हो रही है कि भारत जैसा देश जिसके लिए कवि ने कहा था-“जगे हम लगे जगाने विश्व व्योम में फैला फिर आलोक”, वह इतना नीचे कैसे गिर गया कि उन्नीसवीं सदी में उनके लिए साक्षरता अभियान जैसे कार्यक्रम बड़े पैमाने पर चलाने पड़ रहे हैं? आज आंकड़ों में जिस 60 प्रतिशत आबादी को हम साक्षर मानकर चल रहे हैं, वह भी मात्र साक्षर तो कही जा सकती है, किन्तु शिक्षित नहीं, क्योंकि उनमें से भी अधिकांश जनसंख्या अविवेकी बनकर अपने दोषों को नहीं समझ पा रही है और लगातार एक के बाद एक गलतियाँ करती जा रही है। कुछ ताजा प्रवृत्तियों के उदाहरण देखिये जो यहाँ की आम जनता के बौद्धिक दिवालिएपन को ही प्रदर्शित कर रहे हैं-
1. छोटी-छोटी सी बातों पर सड़कों पर आन्दोलन के नाम पर हुड़दंग करना, कानून को अपने हाथों में लेना और देश की सम्पत्ति को बेरहमी से नष्ट करना।
2. जाति-प्रथा जैसे कोढ़ को अपने तन और मन पर कस कर लपेटे रहना।
3. थोड़े से धन के लालच में देश के विकास की धज्जियाँ उड़ाते हुए भ्रष्ट आचरण करना।
4. शिक्षा को इतना अधिक व्यय साध्य बना देना कि रोजगार प्राप्त करते ही व्यक्ति चोरी, रिश्वत, छल, प्रपंच, तिकड़म, और अमानवीय कार्यों द्वारा धन कमाने के लिए हर प्रकार के पाप कर्म में लिप्त हो जाये।
5. घटनाओं, समाचारों और अफवाहों पर गंभीर चिन्तन के आधार पर सत्या-सत्य विवेक का प्रयोग न करना, बल्कि क्षुद्र स्वार्थों के वशीभूत होकर जोश में होश खो देना तथा झूठे प्रचारतंत्र में पड़कर वास्तविकता का ज्ञान न कर पाना।
6. किताबी ज्ञान को हेय दृष्टि से देखना और “व्यावहारिक बनो” के नाम पर अशोभनीय व्यवहार करना और उसे उचित ठहराना।
ये आज के भारतीय जन-मानस में फैले हुए कुछ ऐसे आचरण हैं, जिनके प्रमाण प्रायः मीडिया में देखे जा सकते हैं। कम से कम एक शिक्षित व्यक्ति से इस प्रकार के आचरण की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इस विवेचना का मुख्य आधार यही है कि निरक्षरता का उन्मूलन करने की किसी भी योजना को साकार रूप देने से पहले हमें उन व्यक्तियों को सच्चे अर्थों में शिक्षित करना होगा जिन्हें समाज को साक्षर बनाने के लिए नियुक्त किया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो निरक्षरता उन्मूलन कार्यक्रम महज प्रगति के आंकड़े प्रस्तुत करने वाला एक थोथा दिखावा मात्र बनकर रह जायेगा।
निरक्षरता उन्मूलन कार्यक्रम
(1) अनिवार्य निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था-शिक्षा का प्रारम्भ सही उम्र से ही होना चाहिये। बचपन की उम्र शिक्षा के लिए सबसे उपयुक्त है। अतः सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 5 तक) अनिवार्य बना देनी चाहिये। शिक्षा सिर्फ अनिवार्य ही नहीं नि:शुल्क भी हो। भारत जैसे गरीब देश में जहाँ लोगों के पास खाने को पैसे नहीं हैं वे फीस, ड्रेस, किताबों व कॉपियों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। अत: यदि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की ओर आकर्षित करना है, तो यह शिक्षा निःशुल्क भी होनी चाहिये।
(2) मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था-भारत जैसे देश में अभी भी अनेक लोग गरीबी-रेखा से भी नीचे रह रहे हैं। उनके साथ शिक्षा की बात करना भी बेमानी है। अत: यदि सभी बच्चों को शिक्षा की परिधि में लाना है, तो मुफ्त कॉपी-किताब, फीस, ड्रेस के साथ मुफ्त भोजन की व्यवस्था भी करनी होगी। दोपहर में बच्चों को सरकार की ओर से भोजन की व्यवस्था शिक्षा प्रक्रिया को आकर्षक बना देगी। खाने के लालच में ही माँ-बाप अपने बच्चों को विद्यालय भेजेंगे।
(3) प्रौढ़ों की शिक्षा की व्यवस्था-निरक्षरता की समस्या जितनी बालकों के साथ है, उससे कहीं ज्यादा प्रौढ़ों के साथ है। वे व्यक्ति जो पढ़ने की उम्र में किसी कारण से पढ़ न पाये हो, निरक्षर प्रौढ़ कहलाते हैं। उन्हें पढ़ने की इच्छा होने पर भी विद्यालय जाना उचित नहीं लगता। अत: उनके लिए प्रौढ़ विद्यालयों की स्थापना की जाये।
(4) साक्षरता शिविरों का आयोजन-निरक्षरता उन्मूलन तभी सम्भव हो सकता है, जब इसे एक राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में लिया जाये। इस प्रक्रिया में सरकारी प्रयासों के अलावा गैर-सरकारी संगठनों की भी महती भूमिका होनी चाहिये। वे सरकारी संस्थाएं या स्वयंसेवी संस्थाएं ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों में समय-समय पर कुछ दिवसों के लिए साक्षरता-शिविरों का अयोजन कर सकती हैं। इन शिविरों में कार्यकर्ता न सिर्फ निरक्षरों को साक्षर बनायें बल्कि उन्हें पढ़ने-लिखने की सामग्री निःशुल्क वितरित कर स्वयं पढ़ने के लिए प्रेरित करें। जिस क्षेत्र में शिविर लगाया गया है वहाँ के लोगों के अनुरूप मनोरंजन की व्यवस्था भी इन शिविरों में ही की जानी चाहिये। यथा गाँव में यदि प्रौढ़ों के लिए शिविर हो तो नाटक, नौटंकी, भजन, कीर्तन, आदि की व्यवस्था हो। बच्चों के लिए शिविर में खेल-कूद व मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था हो। इन शिविरों में कार्यक्रमों के रूप में शिक्षक व छात्र भी जा सकते हैं।
(5) स्वयंसेवी संस्थाओं का महत्त्व-निरक्षरता उन्मूलन का कार्यक्रम बिना सामाजिक सहभागिता के सफल नहीं हो सकता है। स्वयंसेवी संस्थाएं यदि पहल करें, तो वे एक विशेष गाँव या शहरी क्षेत्र को अपना कार्यस्थल बना सकती हैं। वे तब तक उस स्थल को अपने संरक्षण में रखती हैं, जब तक वह साक्षर न हो जायें। फिर उस स्थान के ही किसी कार्यकर्ता को अपना प्रतिनिधि बनाकर जनसहयोग से साक्षरता कार्यक्रम को जीवित रखती हैं। आवश्यकता पड़ने पर पुनः संरक्षण के लिए प्रस्तुत हो जाती हैं। इससे लोगों में आत्मविश्वास आता है और साक्षरता अभियान का वास्तविक उद्देश्य शिक्षित बनने की प्रेरणा भी प्राप्त हो जाती है।
(6) जनसंचार माध्यमों का प्रयोग-साक्षरता आन्दोलन को सफल बनाने में जनसंचार के माध्यमों का प्रयोग भी किया जा सकता है। टी०वी० रेडियो इस दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं। कभी-कभी दैनिक अखबारों व पत्रिकाओं की रोचक खबरें भी साक्षर बनने की प्रेरणा देती हैं। इन माध्यमों का प्रयोग सरकार द्वारा अच्छी तरह किया जा सकता है।
(7) साक्षरता अभियान को स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना-साक्षरता अभियान को स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने से भी इस अभियान को बढ़ावा मिल सकता है। सभी स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए साल में 15 दिन तक साक्षरता अभियान में भाग लेना अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा हो। यह या तो साक्षरता शिविरों के माध्यम से हो या Each One Teach One (प्रत्येक एक को पढ़ाये) अभियान के माध्यम से हो। शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भी इसे स्थान दिया जाना चाहिये।
- लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है? |लैंगिक असमानता के प्रकार | लैंगिक विभिन्नता पर निबन्ध
- भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सुझाव दीजिए।
- भारत में लैंगिक असमानता के स्वरूप Nature of Gender Inequality in India in Hindi
Important Links
- विद्यालय संगठन के उद्देश्य एंव इसके सिद्धान्त | Objectives and Principle of School Organization
- विद्यालय प्रबन्ध का कार्य क्षेत्र क्या है?विद्यालय प्रबन्ध की आवश्यकता एवं वर्तमान समस्याएँ
- विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एंव इसकी आवश्यकता | Meaning, Purpose and Need of School Organization
- विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ, परिभाषा एंव इसकी विशेषताएँ | School Management
- विद्यालय प्रबन्ध के उद्देश्य | Objectives of School Management in Hindi
- विद्यालय प्रबन्धन की विधियाँ (आयाम) | Methods of School Management (Dimensions) in Hindi
- सोशल मीडिया का अर्थ एंव इसका प्रभाव | Meaning and effects of Social Media
- समाचार पत्र में शीर्षक संरचना क्या है? What is the Headline Structure in a newspaper
- सम्पादन कला का अर्थ एंव इसके गुण | Meaning and Properties of Editing in Hindi
- अनुवाद का स्वरूप | Format of Translation in Hindi
- टिप्पणी के कितने प्रकार होते हैं ? How many types of comments are there?
- टिप्पणी लेखन/कार्यालयी हिंदी की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
- प्रारूपण लिखते समय ध्यान रखने वाले कम से कम छः बिन्दुओं को बताइये।
- आलेखन के प्रमुख अंग | Major Parts of Drafting in Hindi
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग | Forms of Business Letter and its Parts
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
Disclaimer