श्रवण बाधित बालकों की असमर्थताओं तथा इन बालकों को शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिए।
बाहरी संसार की जानकारियाँ हम सुनकर प्राप्त करते हैं। श्रवण के द्वारा ही हमें खतरे का आभास होता है। श्रवण दोष बालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता तथा वे क्रियात्मक होने में असमर्थ हो जाते हैं। वे जीवन से सम्बन्धित कार्यों को करने में भी अपने आपको असमर्थ पाते हैं। इन बालकों की क्रियात्मक असमर्थताएँ निम्न प्रकार की होती है।
(1) व्यक्तिगत क्रियात्मक असमर्थाएँ- बालक अपने व्यक्तिगत कार्य करने में क्रियात्मक रूप से असमर्थ होते हैं तथा अधिक सक्रिय नहीं होते। यह बालक प्राय: कुंठाग्रस्त रहते हैं। ये केवल इशारों के द्वारा ही दूसरे के भावों को समझ सकते हैं। ये जीवन के प्रति अधि क सकारात्मक नहीं होते तथा इनमें आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति की अभाव रहता है। इनमें सामान्य बालकों के साथ घुलमिल कर कार्य करने की योग्यता न के बराबर होती है। जीवन को चुनौती समझकर जीने के तमन्ना नहीं होती।
(2) सामाजिक क्रियात्मक असमर्थताएँ- ये बालक अपने आपको समाज के साथ समायोजित करने में असमर्थ पाते हैं। सामाजिक कार्यों में भाग लेना इनके लिए कठिन होता है। हीन भावना से ग्रस्त होने के कारण इनमें इच्छाशक्ति तथा आत्मविश्वास की कमी होती है। इसी कारण ये समाज से कटे-कटे रहते हैं। इनका सामाजीकरण एक मुश्किल कार्य होता है। कुछ बालक सीखने की इच्छा करते हैं तथा ये अपने उद्देश्य में कामयाब हो जाते हैं।
(3) शैक्षिक क्रियात्मक असमर्थताएँ- श्रवण बाधित बालकों का मौखिक विकास नहीं हो पाता क्योंकि ये केवल इशारों के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। मौखिक विकास न होने के कारण इतना भाषा का विकास भी नहीं हो पाता। पढ़ने की समस्या तो इनके साथ होती ही है, सीखना इनके लिए अति कठिन होता है। इनकी शैक्षिक बुद्धि-लब्धि बहुत कम होती है। ये केवल संकेतों व इशारों के सहारे ही ज्ञान प्राप्त करते हैं।
शिक्षक की भूमिका
कक्षा में कुछ ऐसे बालक भी होते हैं जिनको कम सुनाई देता है या फिर ये अधिक ऊंचा सुनते हैं। इन बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जानी चाहिए। अध्यापक को चाहिए कि वह इन बालकों के प्रति अधिक ध्यान दे तथा इन्हें हर प्रकार की संभव सहायता प्रदान करे। इन बालकों को शिक्षा देते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(1) अध्यापक को इन बालकों के श्रवण-दोष के स्तर का पूरा ज्ञान होना चाहिए तथा उसी के अनुसार उनको शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
(2) शिक्षक ऐसे बालकों को आगे की सीटों पर बिठाए ताकि ये आवाज को आसानी से सुन लें।
(3) अगर अध्यापक ऐसा महसूस करता है कि सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देने से इनको अधिक लाभ नहीं हो रहा है तो उसे इन बालकों के लिए विशेष कक्षा का प्रबन्ध करके अलग से पढ़ाना चाहिए।
(4) अध्यापक को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि जो बालक श्रवण यंत्रों आदिकी सहायता से सुन सकते हैं उनके श्रवण यंत्र ठीक हों तथा ये उचित रूप से उनका प्रयोग करें।
(5) अगर इन बालकों की कुछ विशेष आवश्यकताएँ हों तो उन्हें पूरा करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
(6) कक्षा में दूसरे बालक इन बालकों के उचित व्यवहार करते हैं या नहीं, इसका भी अध्यापक को पूरा ध्यान रखना चाहिए।
(7) इन बालकों के प्रति अध्यापक का दृष्टिकोण सकारात्मक, सहयोगपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण को पूरा ध्यान रखना चाहिए।
(8) अध्यापक को समय-समय पर इन बालकों के माता-पिता से मिलते रहना चाहिए।
(9) क्योंकि ये बालक कम या ऊँचा सुनते हैं अतः ये अपने आपको घर, विद्यालय तथा समाज में समायोजित करने में दिक्कत महसूस करते हैं। अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यालय में इन बालकों को समायोजित करने में सहायता करे।
(10) विद्यालय में इन बालकों के प्रति सभी का दृष्टिकोण सकारात्मक सहयोगपूर्ण तथा दोस्ताना होना चाहिए। शिक्षक को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कोई इन्हें हीन भावना से न देखे। इनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखकर इन्हें प्रेरित करते रहना चाहिए।
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