श्रवण दोषों से ग्रस्त बालकों की पहचान तथा कारणों पर प्रकाश डालिए।
श्रवण दोषों से ग्रस्त बालकों की पहचान – जो बच्चे जन्म से ही बहरे होते हैं उनकी पहचान तो जन्म के समय ही हो जाती है। लेकिन कुछ बच्चों में बहरापन किसी और कारण से भी हो सकता है। हम श्रवण बाधित बालक की पहचान उसके व्यवहार से कर सकते हैं। यदि कोई बालक सुनते समय बार-बार दाएँ या बाएँ कान पर हाथ रख लेता है तो हमें यह समझना चाहिए कि उसको सुनने में कुछ परेशानी हो रही है।
हम कक्षा में श्रवण बाधित बालकों की पहचान निम्न प्रकार से कर सकते हैं:
- कक्षा में वह बार-बार कान के अन्दर या अंगुली या कोई दूसरी वस्तु कागज, पेन, पेन्सिल आदि डालता रहता है।
- उसके कान में लगातार कोई तरल पदार्थ आदि बहता दिखाई देता हैं
- कक्षा में पढ़ते समय वह बार-बार अध्यापक को बीच-बीच टोकता या ऐसा अभास देता है कि उसे ठीक प्रकार से सुनाई नहीं दे रहा।
- कक्षा में जब अध्यापक पढ़ा रहा हो तो अध्यापक के बार-बार बुलाने पर या टोकने पर जवाब न देता हो या अध्यापक की तरफ ध्यान न देता हो ।
- सुनाई न देने के कारण कक्षा में उसका दिल न लगता हो। बालक को कक्षा में दिल न लगने के दूसरे कारण भी हो सकतें हैं लेकिन श्रवण बाधिता भी एक कारण है।
- वह अध्यापक की आवाज की उपेक्षा उसकी शारीरिक हलचल की तरफ या होंठों की तरफ अधिक ध्यान देता हो ।
- कक्षा में बालक आवाज सुनने के यंत्र का प्रयोग करता हो ।
- कक्षा में अध्यापक किसी विशेष विषय-वस्तु पर प्रश्न करता हो व बालक किसी दूसरे प्रश्न का जवाब देता हो।
- उसको भाषा का पूरा ज्ञान न हो तथा कक्षा में बैठ कर वह अपने आप को सुस्त व असामान्य महसूस करता हो।
- कक्षा में बैठा बालक-इधर-उधर अधिक देखता होता और अध्यापक की तरह पूरा ध्यान न देता हो।
- वह बहुत धीरे-धीरे या अधिक उँचा बोलता हो ।
- उसे शब्दों के उच्चारण में पर्याप्त कठिनाई होती हो।
- वह एकाग्रता न रखता हो।
National Sample Surve, 1991 के अनुसार भारत में अनुमानित 4.482 मिलियन श्रवण व बधिर हैं। पुरुषों की संख्या औरतों की तुलना में ज्यादा है।
श्रवण बाधिता के कई कारण हो सकते हैं। कुछ बालक पैदा ही श्रवण बाधित होते है। कुछ बालक जन्म के पश्चात् चोर, बीमार, दुर्घटना आदि के कारण श्रवण बाधित हो जाते हैं। श्रवण बाधिता के मुख्य कारण इस प्रकार है:
(1) वंशानुगत- श्रवण बाधिता 11-60 प्रतिशत तक वंशानुगत होती है तथा फिर यह रोग पीढ़ी चलता रहता है।
(2) छूत-रोग-जन्म के पश्चात् अगर बच्चे को छूत वाली बीमारियाँ जैसे कनपेड़े या इन्फ्लूएंजा इत्यादि हो जाये तो इसका प्रभाव बच्चे के श्रवण अंगो पर प्रभाव पड़ता है तथा वह श्रवण बाधित हो जाता है।
(3) दवाइयाँ- गर्भवती महिला अगर आवश्यकता से अधिक दवाइयों का इस्तेमाल करती है तो यह बच्चे की श्रवण बाधिता का कारण बन सकता है। गर्भवती माँ को चाहिए की वह आवश्यक्ता से अधिक दवाइयों का प्रयोग न करें।
(4) कुपोषण- गर्भवती माता को पौष्टिक भोजन करना चाहिए। उचित आहार न मिलने पर उसका प्रभाव पल रहे बच्चे पर पड़ता है। कुपोषण भी श्रवण बाधिता का एक मूख्य कारण बन सकता है। गर्भवती माँ को विटामिन आदि से भरपूर भोजन करना चाहिए तथा कुपोषण से बचना चाहिए। गर्भ के समय माँ को तीखे मसाले, शराब, सिगरेट आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
( 5 ) जर्मन खसरा- 1980 में जर्मन खसरा महामारी के रूप में फैला था। खोजों के पश्चात् यह पाया गया कि जो गर्भवती महिलाएँ इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्तानों की श्रवण शक्ति क्षीण पाई गई। खोजों से यह भी पाया गया कि श्रवण बाधितों में 27% जर्मन खसरा से प्रभावित थे।
( 6 ) असुरक्षित प्रसव- कई बार शहर से दूर रहने वाले लोग वहीं पर दाई आदि से प्रसव करवा लेते हैं जो कि सुरक्षित प्रसव नही होता। अधिक रक्त बहने के कारण भी श्रवण बाधि ता हो सकती है।
(7) जन्म के समय- बच्चे के जन्म के समय आक्सीजन की कमी, प्रसव क्रिया के दौरान चिमटी आदि का गलत प्रयोग, समय से पहले बच्चे का जन्म आदि भी सुनने की क्षमता का प्रभाव डालते हैं। कई बार बच्चे को जन्म के पश्चात् एकदम बाद पीलिया की शिकायत हो जाती है। इसका इलाज जल्दी से जल्दी करवाना चाहिए। पीलिया भी श्रवण बाधिता का कारण बन सकता है।
(8) जन्म के पश्चात्- बुखार, पीलिया छूत की बीमारियों से बच्चे को बचाना चाहिए। अगर बच्चे की आँख या कान से लगातार कोई द्रव्य बह रहा हो तो झटपट इसकी तरफ ध्यान देकर इसका ईलाज करवाना चाहिए। लापरवाही करने से बच्चे को श्रवण बाधिता का शिकार होना पड़ सकता है।
श्रवण सहायता केन्द्र, अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान, नई दिल्ली ने माँ- बाप के लिए निम्न निर्देश दिये गये हैं ताकि वह इन्हें प्रयोग में लाये-
1. माँ-बाप बच्चे को बतायें कि वे उसे उसे चाहते है, उसे प्यार करतें हैं तथा उन्हें पूरा विश्वास है। बच्चे को यह विश्वास दिलाना चाहिए की वह बोल सकता था। जब माँ-बाप बच्चे से बात करें तो उसे यह कहें कि बोलते समय वह होठों तथा चेहरे को ध्यान से देखे ।
2. माँ बाप को बच्चे से खुलकर बात करनी चाहिए तथा उसके मनोभाव को समझकर तथा उसकी रूचियों को ध्यान में रखकर उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। बच्चे के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर उसे चित्रों वाली किताबों से पढ़ाना चाहिए तथा कहानियाँ भी पढ़कर सुनानी चाहिए।
3. बच्चे के आस-पास के लोगों के साथ घुलने-मिलने का अवसर देना चाहिए ताकि वह समाज में अपने आपको समायोजित कर सके। इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग बच्चे से मिलते हैं वे उसका मनोबल तो नहीं गिरा रहे।
4. माँ-बाप का व्यवहार बच्चे के साथ दोस्ताना होना चाहिए तथा माँ-बाप को बच्चे के लिए समय निकालना चाहिए।
5. माँ-बाप को सब्र से काम लेना चाहिए क्योंकि जो कान से सुन नही सकता वह इसका कार्य आंखो के द्वारा करता है तथा काफी हद तक श्रवण बाधिता को आँखो द्वारा दूर कर लेता हैं।
6. माँ-बाप को चाहिए कि बच्चे के कान में बात करें। इस प्रकार मौखिक दिया गया ज्ञान उसके शब्दकोष में बढ़ोतरी करेगा।
7. बच्चे के मानसिक स्तर व योग्यता के अनुसार उससे काम की अपेक्षा करनी चाहिए।
8. माँ-बाप को चाहिए कि वे आस-पास के लोग या रिश्तेदार अगर बच्चे के बारे में उलूल-जलूल बातें करे तो उनकी तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। माँ-बाप को इस बात के लिए शर्मिन्दा नही होना चाहिए कि उनका बच्चा श्रवण बाधित है।
9. माँ-बाप को चाहिए की वे बच्चे कि तुलना दूसरे बच्चों के साथ न करें तथा बच्चे को कक्षा के दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने देना चाहिए।
10. हर छोटी-छोटी बात के लिए उसे डाँटना नहीं चाहिए तथा न ही बच्चे को इस बात अहसास होना चाहिए कि वह श्रवण बाधित है।
11. माँ-बाप को चाहिए कि वे बच्चे के मनोबल बढ़ाते रहें तथा उसको प्रेरणा दें कि वह यह कार्य कर सकता है।
12. बच्चे के साथ बात करते समय पूरे वाक्यों का उच्चारण करना चाहिए तथा उसकी गलतियों को दूर करना चाहिए।
13. बच्चे का इलाज चल रहा हो तो माँ-बाप को धैर्य से कार्य लेना चाहिए।
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