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शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियाँ | New Trends in Education

शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियाँ | New Trends in Education
शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियाँ | New Trends in Education

शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियाँ क्या है? इसका वर्णन कीजिए।

शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियाँ (New Trends in Education)

आज के समय में शिक्षा की नवीन प्रवृत्तियों में शिक्षा का कौशल आधारित बनाने की प्रवृत्ति चल रही है। भारत में शिक्षा की नवीन प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

1. कौशल आधारित शिक्षा (Skill Based Education)-

वर्तमान समय में कौशल आधारित शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह शिक्षा वयस्कों के लिए रोजगारोन्मुखी होने के कारण विशेष. उपयोगी होगी। आज विश्व स्तर पर रुझान बदल रहे हैं मशीनें मनुष्यों का स्थान ले रही हैं चालक रहित कारों, रोबोट सर्जरी का प्रचलन है। इसलिए बदलती हुई तकनीक से युक्त रखने के लिए शिक्षार्थियों को शिक्षित किया जा रहा है। वर्तमान शिक्षा को आवश्यक रूप से कौशल आधारित होना चाहिए। छात्रों को अस्तित्व और जीविका के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करना होगा। हर व्यक्ति को परिस्थितियों को संभालने, समस्याओं के समाधान खोजने, समीक्षकों को सोचने और आत्मनिरीक्षण करने, संकट का प्रबंधन करने और बचने के साधन खोजने के लिए तैयार होने की आवश्यकता है। आधुनिक शिक्षा प्रौद्योगिकी संचालित हो रही है। आज छात्र अपने लैपटॉप लेते हैं। छात्र इंटरनेट से सीख रहे हैं। आज के विशाल ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के उन्नत संस्करण के साथ शिक्षा का भविष्य बढ़ रहा है। शिक्षा क्षेत्र में मशीनों से सीखने में तेजी आ रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) का भरपूर उपयोग हो रहा है।

प्रौद्योगिकी ने हर क्षेत्र में क्रांति ला दी है और शिक्षा क्षेत्र को प्रभावित किया है। हमें प्रौद्योगिकी और उसके संबंधित घटकों पर जोर देना होगा। शिक्षा को कौशल आधारित होना चाहिए अन्यथा अपने उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकेगा।

शिक्षा के पाठ्यक्रम में नई तकनीक का उपयोग होने से शिक्षकों तथा स्कूल प्रबन्धकों ने आंकड़ा संग्रह तथा शिक्षण के नये तरीकों को अपनाना शुरू किया है।

2. डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy)-

डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रम तैयार करना छात्रों के विकास के चरणों पर आधारित है और शिक्षकों को सीखने के बारे में पता होना चाहिए कि कक्षा में तकनीकी एकीकरण और इनका उपयोग हो। डिजिटल साक्षरता के हेतु स्कूलों में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ, कुछ स्कूल औपचारिक डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रम और डिजिटल साक्षरता योजनाएं अपना रहे हैं।

3. पुस्तकालय मीडिया विशेषज्ञ (Library Media Specialists)-

वास्तव में पुस्तकालय तेजी से स्थानीय प्रौद्योगिकी के केन्द्र बन रहे हैं। चूँकि पुस्तकालय अध्ययन सामग्री सेवाओं की पेशकश करते हैं जिसके लिए प्रौद्योगिकी के ज्ञान और इंटरनेट तक पहुँच की आवश्यकता होती है। आज पुस्तकालय मीडिया विशेषज्ञ नई प्रौद्योगिकियों और अनुसंधान विधियों के बारे में जानकारी रखते हैं और छात्रों को देते हैं। आज पुस्तकालय मीडिया विशेषज्ञों की कई नई जिम्मेदारियां हैं। उन्हें तकनीकी नीतियां स्थापित करनी चाहिए।

4. स्वयं निर्देशित व्यावसायिक विकास (Self Directed Professional Development)-

हाल के वर्षों में शिक्षकों के लिए आत्म-निर्देशित व्यावसायिक विकास में वृद्धि देखी गई है जिसमें इंटरैक्टिव ऑनलाइन सेमिनार या वीडियो और अन्य सामग्री शामिल है जो वेब ब्राउज़र के माध्यम से संचालित हो सकती है। शिक्षकों को चुनने के लिए ऑनलाइन विकल्प उपलब्ध है। चूँकि राज्य तेजी से यह मांग कर रहे हैं कि शिक्षक नैतिक और कानूनी दिशानिर्देशों के अनुपालन में अपना कौशल अद्यतन करें और नवीनतम मानकों से परिचित हो जाएं, इसलिए कुछ स्कूलों ने स्व-निर्देशित, ऑनलाइन मॉड्यूल को बदल दिया है ताकि सीखने के घटकों को पूरा करने के लिए शिक्षकों के सीखने के अवसर प्रदान किए जा सकें।

5. विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता (Autonomy of Universities)-

भारत में आज सरकारी अंकुश को विश्वविद्यालयों के विधेयकों में परिवर्तन कर कम किया जा रहा है। विश्वविद्यालय आर्थिक दृष्टि से इतने आत्मनिर्भर बनाए जा रहे कि उन्हें राजकीय कोष पर आश्रित न होना पड़े। UGC) ने आदर्श विश्वविद्यालय के लिए विधेयक तैयार किया है जिससे राजकीय विश्वविद्यालय को सुझाव प्राप्त हो सकते हैं।

वर्तमान में कुछ विश्वविद्यालयी कार्यक्रम हैं जिन पर बाह्य हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं हैं-

  1. छात्रों का चयन एवं प्रवेश ।
  2. प्राध्यापकों की नियुक्ति एवं प्रोन्नति ।
  3. पाठ्यक्रम का निर्धारण, शिक्षणविधि, शोधकार्य का निर्धारण।
  4. विश्वविद्यालय का क्षेत्र निर्धारण।

विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय को बाह्य नियंत्रण से मुक्त किया जा रहा है। विभिन्न इकाइयों के कार्य संचालन में स्वतन्त्रता प्रदान की जा रही है।

व्यक्तिगत और राजनैतिक संस्थाओं का विश्वविद्यालय के कार्यकलापों में हस्तक्षेप घटाया जा रहा है। केन्द्र व राज्य सरकार विश्वविद्यालय में रूचि लेते हैं लेकिन वे विश्वविद्यालय के प्रतिदिन के प्रशासनिक कार्यक्रमों में हस्तक्षेप कम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय को अपने संगठन के अंतर्गत कार्यों का विभाजन और उत्तरदायित्व स्पष्ट कर देने चाहिए, अन्यथा ये एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप करेंगे और विश्वविद्यालय की कार्यक्षमता पर इसका प्रभाव पड़ेगा।

6. उच्च शिक्षा में स्ववित पोषित पाठ्यक्रम (Self Financed Courses in Higher Education) –

हमारे देश में उच्च शिक्षा प्रणाली से सर्वोच्च रूप में गठित, अत्यधिक स्तरीय तथा राष्ट्र के सम्मानीय नागरिकों द्वारा प्रभावित, नियंत्रित तथा आर्थिक सहयोग प्राप्त रही है। उच्च शिक्षा अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजर चुकी है। भारत में उच्च शिक्षा के सामने सुलभता, प्रासंगिकता, गुणवत्ता, समता तथा समतुल्यता प्रमुख चुनौतियां हैं। आज एक ओर राजनैतिक बाध्यता, सामाजिक मांग, बाह्यय दबाव तथा आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है, वहीं विद्यार्थियों की बेचैनी तथा रोजगारपरक शिक्षा की माँग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसी के साथ-साथ राष्ट्रीय नीतियों में परिवर्तन जैसे कि वैश्वीकरण, औद्योगीकरण, निजीकरण तथा सूचना तकनीकी आदि नीतियों का क्रियान्वयन का प्रभाव शैक्षिक क्षेत्रों में पड़ा है। जिससे उच्च शिक्षा का प्रसार और विकास अनेक दिशाओं में हो रहा है। उच्च शिक्षा केवल वर्ग तक सीमित रहकर नहीं है।

वर्तमान उच्च शिक्षा संस्थाएं प्रमुख नौ स्रोतों से निधि या आर्थिक अनुदान प्राप्त करती हैं-

1. सरकारी अनुदान 2. सरकारी अनुदान, भत्ता 3. विद्यार्थियों को लोन, 4. विद्यार्थियों से फीस तथा अन्यवसूली, 5. अनुसंधान, पाठ्यक्रम तथा परामर्श आदि के कांट्रेक्ट, 6. बौद्धिक सम्पदा से आय, 7. व्यापारिक गतिविधियां, 8. निधि निवेश, 9. उपहार व दान आदि।  लेकिन उच्च शिक्षा की शैक्षिक संस्थाओं को अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए दूसरे विकल्प ढूंढने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।

अप्रैल, 2000 में शिक्षा में सुधार के लिए एक नीतिगत ढांचा तैयार किया गया, जिसमें यह कहा गया था कि विश्वविद्यालयों को उद्योगों के साथ भागीदारी के लिए अत्यधिक प्रोत्साहन देना चाहिए, इससे विश्वविद्यालयों को शिक्षण व अनुसंधान के लिए अतिरिक्त धनराशि जुटाने का अवसर मिलेगा, उनको आर्थिक स्वायत्तता, अभिनव तकनीकी की सुलभता तथा विद्यार्थियों के लिए बेहतर रोजगार, पाठ्यक्रम का सतत उन्नयन तथा विद्यार्थियों में बेहतर प्रेरणा प्राप्त होगी। यही कारण है कि आज विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय एक वैकल्पिक अर्थव्यवस्था उत्पन्न करने की दृष्टि से स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों की मदद ले रहे हैं जो इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

7. शान्ति शिक्षा तथा शान्ति के लिए शिक्षा (Peace Education and Education for Peace) –

वर्तमान में पूरे विश्व पर आतंकवाद व युद्ध की छाया मंडराती रहती है। आज युद्ध बहुत अधिक विध्वंसकारी हो गये हैं। जैव-रासायनिक तथा आणविक शस्त्र क्षण भर में मानव सभ्यता को मिटा सकते हैं। भारत में सदैव शांति स्थापना के उपाय शिक्षा के माध्यम से ही ढूँढने का प्रयास किया गया है। गांधीजी ने ऐसे समाज की कल्पना की थी, जिसका आधार अहिंसा और सत्य पालन हो, जो किसी भी प्रकार के शोषण व अन्याय से मुक्त हो। महात्मा गांधी का पूर्ण विश्वास था कि अहिंसा और सत्य की प्राप्ति केवल शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है। भारत में धार्मिक व नैतिक शिक्षा के बजाय मूल्य शिक्षा का मार्ग अपनाते हुए शान्ति शिक्षा और शांति के लिए शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। भारत में यह प्रयास शिक्षा के विशाल संदर्भ को ध्यान में रखकर किया गया है- विगत वर्ष में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना (National Curriculum Framework, 2005) में NCERT ने अपने उपागम में महत्वपूर्ण परिवर्तन करते हुए शांति शिक्षा के स्थान पर शांति के लिए शिक्षा को एक आदर्श रणनीति मानते हुए यह कहा है कि ‘शांति के लिए शिक्षा’ ही शांति मूल्यों के संदर्भीकरण तथा क्रियान्वयन में सहायक हो सकती है। आज उभरते वैश्विक समाज में सार्वभौमीकरण या वसुधैव कुटुम्बकम् की, प्रजातीय व सांस्कृतिक रुढ़ियों के स्थान पर अन्य संस्कृतियों व प्रजातियों के प्रति सहिष्णुता व सद्भाव की, अनेकता और विविधता के बोध की आवश्यकता है। आज की सबसे गम्भीर आवश्यकता है, अहिंसा और सहिष्णुता की संस्कृति की स्थापना की तथा आज आवश्यकता है एक ‘शांत’ व समन्वित समाज के निर्माण की। अतः उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में शिक्षा को शांतिशिक्षा के रूप में विकसित करने का प्रयास जारी है जिसके द्वारा समाज में शांति की संस्कृति, सहिष्णुता, प्रजातांत्रिक मूल्य, मानव अधिकार व कर्त्तव्य बोध स्थापित किया जा सकें। शांति के लिए शिक्षा ‘बाजार’ का विरोध नहीं करती। ‘शांति के लिए शिक्षा’ जीवन जीने की कला को सिखाती है लेकिन इसका उद्देश्य केवल जीवन यापन का प्रशिक्षण नहीं है। ‘शांति के लिए शिक्षा’ का अर्थ व्यक्तित्व .के सम्पूर्ण विकास के लिए व्यक्ति में मूल्य, कौशल व दृष्टिकोणों को उत्पन्न करना है जिससे कि वह दूसरों के साथ मिलजुल कर, , दायित्वपूर्ण ढंग से रह सके। ‘शांति के लिए शिक्षा’ विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम पर अतिरिक्त बोझ नहीं बढ़ाती बल्कि पाठ्यक्रम के बोझ को सार्थक रूप से कम करती है। यह अधिगम और जीवन को आनन्दमयी बनाने में विश्वास करती है। आज तेज रफ्तार तथा चिन्ता ने अधिगम व समतायुक्त जीवन के आनन्द को समाप्त कर दिया है जिसका प्रतिफल शिक्षा जगत में दिखाई देता है। आज के समय में शिक्षा की परिधि में जघन्य अपराध, क्रोध, हत्या, आत्महत्या जैसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ी है, अतएव इस ओर शैक्षिक विचारकों व बौद्धिक समाज का ध्यान गया है।

8. ई-विश्वविद्यालय (E-Universities)-

ऐसे विश्वविद्यालय जो इंटरनेट के माध्यम से अपना कार्य संचालन कर रहे हैं, ई-यूनिवर्सिटी या आभासी विश्वविद्यालय कहलाते हैं। ये विश्वविद्यालय विभिन्न प्रकार के डिग्री व सर्टीफिकेट कोर्स, यहाँ तक कि पी.एच.डी. कार्यक्रम भी चला रहे हैं। ई-विश्वविद्यालयों की परिधि असीमित है। इनके माध्यम से विद्यार्थी केवल संचार उपकरणों व माध्यमों से ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकता है। उसका मूल्यांकन भी ई- माध्यम के द्वारा होता है। इन विश्वविद्यालयों का आधार डिजिटल लाइब्रेरी, सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण, ई-मेल, इलेक्ट्रानिक सूचना संसाधन, CD ROM संसाधन, वेब संसाधन, ई-जरनल नेटवर्क समाचार तंत्र आदि होते हैं।

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