ई-अधिगम (E-Learning)
शिक्षण और अधिगम के परम्परागत तरीकों में आज क्रान्तिकारी परिवर्तन आ चुका है। पहले ज्ञान की जो अवधारणा शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य अन्तःक्रिया तक सीमित थी, वह अब पूर्णत: बदल चुकी है। आज का विद्यार्थी घर बैठे दुनिया के किसी भी कोने में उपस्थित शिक्षक से ज्ञान प्राप्ति की आशा कर सकता है। ज्ञान के लिए वह पुस्तकों पर भी निर्भर नहीं है। इंटरनेट की सुविधा से वह किसी भी क्षेत्र का नवीनतम ज्ञान पलक झपकते प्राप्त कर सकता है। आज स्थिति यह है कि कम्प्यूटर एवं नेट प्रणाली के माध्यम से न केवल हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। वरन् ऐसी वास्तविक कक्षा कक्ष की परिस्थितियों का निर्माण कर सकते हैं जहाँ दुनिया के किसी भी क्षेत्र के शिक्षक, किसी भी स्थान के एक या अनेक शिक्षार्थी के साथ अन्तः क्रिया कर सकते हैं। ई-लर्निंग का क्षेत्र विस्तृत होने के कारण इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रयोग व प्रक्रियाएँ आती है। ई- अधिगम में, अधिगम उद्देश्य से विभिन्न स्त्रोतों द्वारा सामग्री या पाठ्यवस्तु को विभिन्न संचार प्रणालियों के माध्यम से वितरित किया जाता है। यह एक प्रकार से उन विद्यार्थियों के लिए सतत् शिक्षा प्रणाली है जो औपचारिक विधियों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो जाते हैं। अतः कैनेट (Kenet) के अनुसार, ई-लर्निंग एक प्रभावशाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया है, जिसकी रचना ई-डिजिटल शिक्षण सामग्री, स्थानीय समुदाय, ट्यूटर तथा वैश्विक समुदाय की सहायता व सम्पर्क द्वारा संयुक्त रूप से होती है।
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ई-अधिगम का क्षेत्र (Scope of E-Learning)
ई-लर्निंग में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों तथा इंटरनेट सेवाओं का प्रयोग कर अन्य क्षेत्रों में ई-कामर्स, ई-बैंकिंग, ई-मेल तथा ई-बुकिंग जैसे कार्यों को संपादित किया जाता है। अर्थात् ई-लर्निंग का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसी प्रकार की ई-लर्निंग युक्त सुविधाओं के सन्दर्भ में रोजेन वर्ग (2001) ने ई-लगिंन को इस प्रकार परिभाषित किया है “ई-अधिगम से तात्पर्य इंटरनेट तकनीकियों के ऐसे प्रयोग से है जिनसे विविध प्रकार के ऐसे रास्ते खुले जिनके द्वारा ज्ञान और कार्य क्षमताओं में वृद्धि की जा सके।’
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