शिक्षा के साधनों से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के विभिन्न साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
शिक्षा के विभिन्न साधन (Various Kind of Agencies of Education)
शिक्षा स्कूल तथा कालेजों में ही दी जाती है परन्तु स्कूल तथा कालेजों के अतिरिक्त भी शिक्षा प्रदान करने के अनेक साधन है। समाज ने प्राचीनकाल से ही शिक्षा को क्रियान्वित रूप देने के लिए विभिन्न संस्थाओं को अपनाया है तथा उनका विकास किया है। ये संस्थाएँ ही शिक्षा के साधन कहलाती है।
रेमान्ट के कथनानुसार, “अध्यापक ही केवल शिक्षा नहीं देता केवल स्कूल तथा कालेज ही शिक्षण संस्थाएँ नहीं हैं वरन ऐसी कई संस्थाएँ हैं जिनका प्रभाव शैक्षिक होता है।”
वैसे शाब्दिक अर्थ के अनुसार साधन शब्द अंग्रेजी शब्द Agency का हिन्दी रूपान्तर है। Agency का तात्पर्य है ‘एजेन्ट’ (Agent) का कार्य। एजेन्ट से तात्पर्य उस तत्व माध्यम, वस्तु या व्यक्ति से है जो कोई कार्य सम्पादित करता। अथवा प्रभाव डालता है। शिक्षा के साधन का तात्पर्य – उस वस्तु, स्थान, तत्व या संस्था से है जो बालक को शिक्षा प्रदान करती है अर्थात् उस पर शैक्षिक प्रभाव डालती है। सार गार्डफ्रे थामसन (Sir Godfrey Thomson) के शब्दों में, “सम्पूर्ण वातावरण व्यक्ति की शिक्षा का साधन है किन्तु इस वातावरण में कुछ तत्वों जैसे घर, स्कूल, चर्च, प्रेस, व्यवसाय – सार्वजनिक जीवन आनन्द के साधन का विशेष महत्व है।”
शिक्षा के विभिन्न साधनों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
औपचारिक साधन (Formal Agencies)-
वे संस्थाएँ जो किसी पूर्ण निश्चित उद्देश्य के अनुसार चलती हैं, उनके कार्य की कुछ सीमा होती है और जो शिक्षा के संकुचित उद्देश्य की प्राप्ति के साधन मात्र होती हैं, औपचारिक साधन कहलाती हैं। औपचारिक संस्थाओं में जानबूझकर विचारपूर्वक शिक्षा प्रदान की जाती है। इन साधनों के अन्तर्गत शिक्षालय, चर्च, संग्रहालय, पुस्तकालय, आर्ट गैलरीज आदि होती हैं। यह सभी साधन बालकों को औपचारिक शिक्षा प्रदान करते हैं।
औपचारिक संस्थाओं का निर्माण समाज अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कराता है। इनकी देखभाल प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा की जाती है। इन संस्थाओं का कार्य, समय व स्थान निश्चित योजना के द्वारा ढालने का प्रयास किया जाता है, इसमें शिक्षा की प्रक्रिया सुव्यवस्थित रूप से चलती है।
औपचारिक शिक्षा के दोष भी हैं। डॉ. वी. के अनुसार, “औपचारिक शिक्षा बड़ी ही सरलता से तुच्छ, निर्जीव, अस्पष्ट एवं किताबी बन सकती है। कम विकसित समाजों में जो संचित ज्ञान होता है, उसे कार्य में बदला जा सकता है। किन्तु उन्नत संस्कृति में जो बात सीखी जाती है वे प्रतीकों के रूप में होती है और उन्हें कार्यों में परिणित नहीं किया जा सकता है। इस बात का हमेशा डर बना रहता। है कि औपचारिक शिक्षा जीवन के अनुभव से कोई सम्बन्ध न रखकर केवल विद्यालयों की विषय सामग्री न बन जाये।
अनौपचारिक साधन (Informal Agencies) –
अनौपचारिक साधन वह साधन है जिनका कार्य शिक्षा देना नहीं होता परन्तु यह आकस्मिक रूप से अथवा परोक्ष रूप से सभी पर शैक्षिक प्रभाव डालते हैं। दूसरे शब्दों में अनौपचारिक साधन वे साधन हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा प्रदान करते हैं। अतः यह साधन औपचारिक साधन से भिन्न होते हैं। इन साधनों की न तो कोई पूर्व निश्चित योजना होती है और न कोई निश्चित नियम होते हैं। यह अज्ञात अप्रत्यक्ष तथा अनौपचारिक रूप से बालक के संस्कारों में रूपान्तर करते हैं। इन साधनों के अन्तर्गत परिवार, समाज, राज्य, युवक, समूह, खेल का मैदान, चलचित्र, प्रेस, रेडियो, दल-गुट आदि आते हैं।
अनौपचारिक शिक्षा की संस्थाओं पर किसी और संस्था का नियन्त्रण नहीं होता। ये बन्धन मुक्त होते हैं। इनका विकास स्वाभाविक रूप से होता है। इनकी शिक्षा सरल, स्वाभाविक तथा आडम्बर विहीन होती है। इनके द्वारा बालक वास्तविक जीवन की शिक्षा प्राप्त करते हैं और उनका स्वाभाविक रूप से विकास होता है। डीवी अनौपचारिक साधनों को औपचारिक साधनों से अधिक महत्व प्रदान करता है। उनका कथन है “ये आकस्मिक एवं स्वाभाविक रूप से प्रभाव डालकर अनजाने ही व्यक्तियों में अच्छी आदत, व्यवहार, चरित्र एवं रुचियों का निर्माण करते हैं। बालक को वास्तविक अनौपचारिक रीति से शिक्षा देते हैं। उनकी बुद्धि एवं कल्पना शक्ति का विकास करते हैं और उनके अनुभवों को विकसित एवं प्रबुद्ध बनाते हैं। सामाजिक अनुकूलन में उनकी सहायता करते हैं। स्पष्ट है कि इन साधनों का अभाव व्यापक होता है।
अनौपचारिक शिक्षा के अनेक गुणों के होते हुए भी कुछ दोष हैं। अनौपचारिक शिक्षा किसी पूर्व निश्चित योजना के अनुसार नहीं चलती, इसलिए इसमें समय एवं प्रयासों का अपव्यय होता है। इसके द्वारा उच्चकोटि का ज्ञान नहीं मिल पाता है। इनके द्वारा कला-कौशल की शिक्षा नहीं दी जा सकती। उक्त दोषों के होते हुए भी अनौपचारिक शिक्षा का अपना ही एक महत्व है।
शिक्षा के अन्य अनौपचारिक साधन (Other Informal Agencies of Education)-
शिक्षा के कुछ अनौपचारिक साधन हैं। इसकी जानकारी करना आवश्यक है तथा हम यहाँ पर शिक्षा के अनौपचारिक साधनों पर विचार करेंगे। ये साधन निम्न हैं-
1. समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ (News Paper and Magazines) – अनौपचारिक साधनों में समाचार पात्रों की शिक्षा देने की क्षमता स्वयं सिद्ध है। दैनिक समाचार पत्र व्यक्ति तथा समाज का नित्य का शिक्षक है। देश-विदेश में विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में क्या हो रहा है, इसका ज्ञान हमें समाचार पत्रों से प्राप्त होता है। समाचार पत्रों के उत्तम कहानियाँ, निबन्ध, साहित्यिक समीक्षा एवं लेख भी होते हैं। इन्हें पढ़कर व्यक्ति बहुत से विषयों बातों की शिक्षा प्राप्त करते हैं और विचार विश्लेषण द्वारा अपने निष्कर्ष निकालते हैं। व्यापारियों को वस्तुओं के भाव मालूम होते हैं। खिलाड़ियों को अपनी रुचि के खेलों के सम्बन्ध में ज्ञान मिलता है।
2. रेडियो एवं टीवी (Radio and T.V.) – जिन अनौपचारिक साधनों से शिक्षा प्रदान होती है उनमें रेडियो तथा टी. वी. का शिक्षात्मक एवं सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। रेडियों नागरिकों को बड़ी सजगता के साथ शिक्षा दे रहा है। इनके द्वारा हम शीघ्र ही समाचार सुन लेते हैं। इनके द्वारा प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से हम कुछ न कुछ सीखते हैं। समय-समय पर विशेषज्ञों द्वारा दिये गये समाज विषयक भाषण इसकी उपयोगिता के प्रतीक है। इन भाषणों में हमें पर्याप्त शिक्षा मिलती है। किसानों को खेती-बारी तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत सी बातें बतलाई जाती हैं। बालकों तथा स्त्रियों के मानसिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए विशेष कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। वादन, नतत्य के प्रति सामान्य जन की रुचि में विकास करने का श्रेय रेडियो एवं टी. वी को है।
3. सिनेमा (Cinema) – सिनेमा शिक्षा का मुख्य साधन है। बालक बहुत सी बाते सिनेमा से सीख जाते हैं। इस प्रकार इनसे मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धन भी होता है। शिक्षा की दृष्टि से सिनेमा की न्यूज रील विशेष लाभकारी सिद्ध हुई है। सिनेमा का बालक चरित्र पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु खेद का विषय है कि शिक्षा के इस प्रबल साधन का हमारे चलचित्र निर्माता निम्न कोटि के चित्र प्रदर्शित करते हैं जिनका बालक तथा बालिकाओं के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह फिल्म निर्माता व्यक्ति, समाज, देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर चलचित्रों का कथानक चुने तो सभी का कल्याण हो सकता है। इस सम्बन्ध में सरकार के लिए यह आपेक्षित है कि वह गन्दे एवं अश्लील चित्रों पर रोक लगाये और उनके स्थान पर ऐसे चित्रों को प्रोत्साहन दे जो शिक्षा और चरित्र निर्माण की दृष्टि से उत्तम हों।
4. नाटक (Drama) – शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में नाटक हमारे जीवन एवं चरित्र पर प्रभाव डालते हैं। इनसे हमें अनेकानेक शिक्षाये मिलती हैं। यह हमारी केवल कल्पना शक्ति का ही विकास नहीं करते वरन् वे बोल-चाल में प्रशिक्षित करते हैं। ये पाठ्यक्रम की बहुत सी कडुवी बातें बड़ी सरलता से बालकों तक पहुंचा देते हैं। समाज में फैली हुई बुराइयों तथा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास के नाटकों का प्रदर्शन लाभदायक होता है। बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए नाटक बहुत जरूरी है। इससे शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। इनके शैक्षिक महत्व को देखते हुए कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने इनके अध्ययन क्लब खोलकर अच्छे शिक्षाप्रद नाटकों के प्रदर्शन किए। नाटकों का प्रभाव बुरा भी होता है, इसलिए अश्लील तथा कामवासना को उत्तेजित करने वाले नाटकों को प्रदर्शित नहीं करना चाहिए।
5. धर्म (Religion) – बालक की शिक्षा में जहाँ समाज के अन्य संगठनों का शिक्षा के अनौपचारिक साधन के रूप में महत्व है वहाँ इनके मध्य धर्म तथा धार्मिक संस्थाओं का भी अपना एक स्थान है। इस सम्बन्ध में हमारे लिए यह जानना आवश्यक नहीं है कि धार्मिक शिक्षा होनी चाहिए अथवा नहीं और धर्म से हम कुछ सीखते रहते हैं। धार्मिक स्थानों जैसे मन्दिर मस्जिद, धार्मिक कार्यों, धार्मिक यात्राओं, धार्मिक उत्सवों आदि से हमें शिक्षा मिलती है। प्राचीनकाल में तो धर्म एवं धार्मिक संगठन औपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान करते थे परन्तु आज स्थिति बदल गई है। अब विद्यालय अनौपचारिक शिक्षा के मुख्य साधन बन गये परन्तु धर्म का इस सम्बन्ध में अब भी महत्व है और धर्म से हम अनौपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त करते हैं।
6. समाज कल्याण केन्द्र आदि (Social Welfare Centre etc.) – शिक्षा की कुछ ऐसी भी अनौपचारिक एजेन्सियाँ हैं जिन्हें ब्राउन महोदय ने शिक्षा के अव्यावसायिक साधनों (Non Commercial Agencies) के अन्तर्गत रखा है। इनमें समाज कल्याण केन्द्र, युवक दल स्काउटिंग की गणना की जाती है। सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत समाज कल्याण केन्द्रों तथा समाज शिक्षा केन्द्रों की गाँवों एवं शहरों में स्थापना की गयी है। इनके कार्य एवं क्रियाओं में भाग लेने से व्यक्ति इनके द्वारा अनौपचारिक रूप से शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार युवक युवक दलों से बालक स्काउटिंग से और बालिकाएँ गर्ल मा डग शिक्षा ग्रहण करती हैं। कारखानों में काम करने वाले कारीगर व्यावसायिक उद्योग-धन्धों में कार्य करके अपने-अपने व्यवसाय सम्बन्धी अपना ज्ञान तथा अपनी कार्य कुशलता बढ़ाते हैं।
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