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विद्यालय तथा घर में सहयोग एवं सन्तुलन | Co-operation and Adjustment between School and Home

विद्यालय तथा घर में सहयोग एवं सन्तुलन | Co-operation and Adjustment between School and Home
विद्यालय तथा घर में सहयोग एवं सन्तुलन | Co-operation and Adjustment between School and Home

“घर और पाठशाला में सामंजस्य न स्थापित करना बालक के साथ अनहोनी करना है।’ रॉस के इस कथन की पुष्टि कीजिए। 

विद्यालय तथा घर में सहयोग एवं सन्तुलन (Co-operation and Adjustment between School and Home)

कुछ प्रमुख विद्वानों का मानना है कि विद्यालय तथा घर दो भिन्न-भिन्न संस्थाएँ हैं जिनकी आपस में कोई विशेष समानता नहीं है। विद्यालय शिक्षा प्रदान करने की एक औपचारिक संस्था है, जहाँ विभिन्न विषयों का सैद्धान्तिक ज्ञान प्रदान किया जाता है, जबकि परिवार में प्रत्येक प्रकार की अनौपचारिकता होने के कारण केवल व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है किन्तु यह धारणा पूर्ण रूप से सत्य नहीं है। बाहरी रूप से भिन्नता दिखाई देने के बावजूद भी घर तथा विद्यालय में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है और ये दोनों एक-दूसरे की पूरक संस्थाएँ हैं। इस सम्बन्ध में जॉन डीवी ने कहा है कि-

“पाठशाला को वास्तव में घर का एक विस्तृत रूप होना चाहिए। जिस प्रकार का अनुशासन बालक को घर में कभी-कभी प्राप्त होता है, उसी के अधिक पूर्ण रूप से उच्च साधनों द्वारा वैज्ञानिक ढंग से, विद्यालय में सदैव स्थापना की जानी चाहिए।’

विद्यालय तथा घर, इन दोनों ही संस्थाओं का वास्तविक उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। परिवार अपनी क्षमता के अनुसार बालक को प्रारम्भिक ज्ञान एवं सामान्य ज्ञान प्रदान करता है, तत्पश्चात् विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिए बालक को विद्यालय में भेजा जाता है। वास्तव में शिक्षा का प्रारम्भ घर से होता है और वह पूर्ण पाठशाला में होती है। बालक की शिक्षा की नीव घर या परिवार में रखी जाती है तथा उसकी विशाल इमारत पाठशाला एवं अन्य औपचारिक संस्थाओं द्वारा निर्मित की जाती है।

अतः भिन्न-भिन्न प्रकार के परिवारों के बच्चों के स्तर में भी भिन्नता पायी जाती है। यदि कोई परिवार अपने बालक के प्रारम्भिक जीवन में शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं देता है तथा उसकी आदतों एवं सामान्य ज्ञान का समुचित विकास नहीं करता है, तो वह बालक विद्यालय में अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाता है। ऐसे बालक अन्य बालकों की अपेक्षा शिक्षा प्राप्त करने में पीछे रह जाते हैं। यदि घर एवं विद्यालय के मध्य सहयोग नहीं है तो अच्छा बालक भी सामान्य रूप से अध्ययन नहीं कर सकता है। वास्तव में जब तक बालक का शिक्षण कार्य जारी रहता है तब तक घर एवं विद्यालय में सहयोग होना अत्यन्त अनिवार्य है। इस तथ्य को रॉस ने अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है- “घर और पाठशाला में सामंजस्य न स्थापित करना बालक के साथ अनहोनी करना है।”

वास्तव में घर और विद्यालय का बालक के प्रति एक ही उद्देश्य होता है। अतः ये दोनों संस्थायें परस्पर पूरक एवं सहयोगी होनी चाहिए। घर जिस कार्य को प्रारम्भिक स्तर पर एवं साधारण ढंग से करता है उसी कार्य को विद्यालय वैज्ञानिक ढंग से तथा उच्च स्तर पर करता है। घर एवं विद्यालय के इस परस्पर सहयोग को व्यक्त करते हुए जैक्स ने लिखा है कि “घर बालक की प्रथम पाठशाला है। और पाठशाला वास्तव में घर का विस्तार है। भरसक प्रयत्न करने पर पाठशाला शिक्षा संस्था के रूप में घर का स्थान नहीले सकती है। दोनों को विशेष सहयोग से कार्य करना है।”

उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि घर तथा विद्यालय में सामंजस्य स्थापित होता है और यदि इसमें कोई बाधा है भी तो उसे दूर करके इन दोनों में सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। इन दोनों में सामंजस्य न स्थापित करना बालक के साथ अनहोनी करना है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि घर तथा विद्यालय परस्पर पूरक तथा सहयोगी संस्थाएँ हैं।

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