शिक्षा तथा साक्षरता व अनुदेशन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
शिक्षा व साक्षरता (Education and Literacy)
साक्षरता शब्द साक्षर से बना है जिसका अर्थ है अक्षर से परिचित होना। साक्षरता में 3R (Reading, Writing and Arithmetic) अर्थात् लिखना, पढ़ना व गिनना समाहित होते हैं। यह उस मनोदशा अथवा दृष्टिकोण का परिचायक है जो हमारे प्रत्यक्षीकरण की दिशा प्रदान करते हैं। साक्षरता के बारे में. संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने संगठन यूनेस्को की एक रिपोर्ट में कहा है कि साक्षरता स्त्रियों व पुरुषों को सहायता पहुँचाती है जिससे वे अपना सम्पन्न व पूर्ण जीवन बदलते हुए वातावरण से समायोजन प्राप्त करके जी सकें। सही अर्थों में साक्षरता शिक्षा का पर्याय न होकर औपचारिक एवं नियोजित शिक्षा प्राप्त करने की प्रथम सीढ़ी है। यहाँ पर यह तथ्य स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जो व्यक्ति साक्षर नहीं हैं उससे हम यह अर्थ कदापि न लगा लें कि वह व्यक्ति असभ्य अथवा असंस्कृत होगा। वह प्रत्येक व्यक्ति जो समाज को स्वीकार होने वाले आचरण युक्त व्यवहार करता है वह व्यक्ति शिक्षित माना जाता है। साक्षरता से सीखने की क्षमता की वृद्धि होती है तथा क्षमता स्वयं में एक मानसिक प्रक्रिया है। दुनिया के तथा इस समाज के ज्ञान-विज्ञान को प्राप्त करने के लिए साक्षर होना जरुरी है। इस सम्बन्ध में जी. एच. वैण्टॉक ने शिक्षा के महत्त्व को इन शब्दों में स्वीकार किया है- “शिक्षा, सभी प्रकार के अनुभवों का कुल योग है, जिसे मनुष्य अपने जीवन काल में प्राप्त करता है और जिसके द्वारा वह जो कुछ है, उसका निर्माण करता है। “
शिक्षा व अनुदेशन (Education and Instruction)
शिक्षा तथा अनुदेशन एक विचार के दो क्रम हैं। शिक्षा एक व्यापक तथा विस्तृत अवधारणा है। जबकि शिक्षा की तुलना में अनुदेशन एक छोटी व संकुचित अवधारणा है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। मनुष्य प्रत्येक घटना, परिस्थिति, प्रत्येक अनुभव से कोई-न-कोई शिक्षा प्राप्त करता है, इस प्रकार यह प्रक्रिया मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। इसके विपरीत अनुदेशन की समय रेखा केवल कक्षा है। अनुदेशन केवल तभी होता है जब शिक्षक कक्षा में छात्रों को पढ़ा रहा होता है जब कक्षा की समय सीमा समाप्त हो जाती है तो अनुदेशन भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यदि हम देखें तो शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है तथा अनुदेशन शिक्षा का ही एक अंग है। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि शिक्षा के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में केन्द्र में बच्चा रहता है क्योंकि शिक्षा का प्रारम्भ, उद्भव उसी के लिए है बच्चे के कारण ही शिक्षा विस्तृत है शिक्षा ग्रहण करने वाला बालक है। परन्तु अनुदेशन में शिक्षक महत्त्वपूर्ण है वह केन्द्र में रहता है। शिक्षा को औपचारिक व अनौपचारिक किसी भी प्रकार से ग्रहण कर सकते हैं। यह शिक्षा ग्रहण करने वाले पर निर्भर है कि वह किस माध्यम से शिक्षा प्रभावी ढंग से लेता है। परन्तु अनुदेशन सदैव औपचारिक ही होता है। यह औपचारिकताओं के जाल में उलझा होता है तथा कुछ निर्धारित मापदण्डों पर ही उनका पालन किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक कृत्रिमता व सीमितता का अनुभव होता है। अनुदेशन किसी विषय को ग्रहण करने व ज्ञान प्रदान करने तक तो सीमित है। परन्तु शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व का विकास होता है।
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