समावेशी शिक्षा तथा समुदाय पर प्रकाश डालिए।
बालक की शिक्षा में परिवार के पश्चात समुदाय भी एक विशिष्ट योगदान देता है। समुदाय शिक्षा प्रदान करने का अनौपचारिक व सक्रिय साधन है। समुदाय ने नई पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए कई साधनों का विकास किया है। लेकिन फिर भी इसे स्वयं शिक्षा देने का उत्तरदायित्व निभाना पड़ता है। इस प्रकार समुदाय प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनो ढंग से शिक्षा प्रदान करता है। समुदाय का अर्थ पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है। इनमें बिन्दु शामिल किये जाते हैं।
- समान भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति।
- एक स्थान पर इकठ्ठे रहने वाले व्यक्ति।
- एक सामाजिक संरचना के सहभागी व्यक्ति।
- समान संस्कृति रखने वाले व्यक्ति को समुदाय की संज्ञा की जा सकती है।
विद्यालय की समुदाय पर निर्भरता
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। विद्यालय की भांति बालक की दिनचर्या में परिवार एवं समाज में अपना समय व्यतीत करता है। बालक अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता, बड़ों का सम्मान, अनुकरण आदि समाज से ही सीखता है। समाज से ही बालकों में सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होता है। शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों को पूरा करने में समाज की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। समुदाय अपने विभिन्न संसाधनों द्वारा विद्यालयों में समावेशी शिक्षा प्रदान करने हेतु स्वस्थ वातावरण का निर्माण करता है। समावेशी शिक्षा के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए विद्यालय को समुदाय से निम्न आवश्यकता रहती है।
- शिक्षा के लिए सहायता करना।
- समुदाय की समावेशी शिक्षा के लिए सहायता देने की तत्परता ।
- विद्यालय के कार्यक्रमों की प्रतिपुष्टि देना ।
- समावेशी शिक्षा के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की व्यवस्था करना।
- समावेशी शिक्षा हेतु समाज सेवी संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम।
- असमर्थी बालकों की पहचान।
- असमर्थी बालकों की चिकित्सा हेतु चिकित्सा शिविर का आयोजन।
- असमर्थी बालकों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण व रोजगार की व्यवस्था ।
- समावेशी शिक्षा में चल रही शैक्षिक क्रियाओं में योगदान ।
- अनौपचारिक साधनों की व्यवस्था करना ।
इस प्रकार उपरोक्त क्रियाओं द्वारा समुदाय विद्यालय का सहयोग प्रदान कर सकता है।
समुदाय की विद्यालय पर निर्भरता
जिस प्रकार विद्यालय समुदाय पर निर्भर रहता है उसी प्रकार समुदाय भी विद्यालय पर निर्भर रहता है। विद्यालय की स्थापना समुदाय ने अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए की है। लेकिन यदि समुदाय ने विद्यालय का निर्माण किया है तो विद्यालय ने भी समुदाय के लिए कार्य किया है। दोनों में द्विपक्षीय सम्बन्ध है, ये दोनों एक दूसरे के निर्माण में सहायता देते हैं। विद्यालय में समुदाय का आदर्श जीवन प्रतिबिम्बित होता है और समुदाय विद्यार्थियों के लिए प्रयोगशाल है जहाँ वह विद्यालय में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशलों का प्रयोग करता है। जॉन डीवी ने विद्यालय व समुदाय के सम्बन्ध में स्पष्ट किया कि “अच्छे व बुद्धिमान माता-पिता जो अपने बालकों के लिए चाहते हैं, वही समुदाय भी सभी बालकों के लिए चाहता है”।
स्पष्ट है कि समुदाय भी विद्यालय पर निर्भर रहता है। समुदाय को विद्यालयों से निम्न अपेक्षा रहती है:
- बालक की शिक्षा तथा विभिन्न शैक्षिक योजनाएँ।
- बालक की शैक्षिक प्रगति
- विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या।
- शिक्षा प्रदान करने में माता-पिता का सहयोग व भूमिका
- समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण |
- समुदाय की आवश्यकताओं एवं मांगों की पूर्ति।
- समुदाय के भावी स्वरूप का निर्माण।
- समुदाय की व्यावसायिक व औद्योगिक प्रगति ।
इस प्रकार विद्यालय एवं समुदाय के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों अपनी-अपनी उन्नति एवं स्थायित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। विद्यालय एक सामाजिक संस्था है। समाज स्वयं को जीवित रखने के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करता है, जिनके द्वारा समाज के विचारों, मान्यताओं, आदर्शों, क्रिया-कलापों, मानदण्डों और परम्पराओं को आने वाली पीढ़ी तक ले जाता है। विद्यालय का समुदाय के जीवन एवं उसके प्रगति पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विद्यालय अपने विचारों एवं कार्यों द्वारा समुदाय का पथ प्रदर्शन करके उसे प्रगति की ओर ले जाता है इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे पर निर्भर हैं। विद्यालय व समुदाय की निर्भरता के सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने स्पष्ट किया कि “निःसन्देह विद्यालय समुदाय नहीं; . लेकिन एक बड़े-समुदाय में एक छोटा समुदाय है तथा इसकी सफलता एवं स्थायित्व इसके तथा बाहर के बड़े समुदाय में स्वस्थ प्रभावों की पारस्परिक अन्तःक्रिया पर निर्भर करता है। यह एक दो पक्षीय प्रक्रिया है जिसमें घर तथा सामुदायिक जीवन की कठिनाईयों तथा जीवन के वास्तविक अनुभवों को विद्यालय में लाया जाये, ताकि शिक्षा को उन पर आधारित करके उन्हें वास्तविक जीवन से जोड़ा जा सके। दूसरी ओर विद्यालय से प्राप्त ज्ञान, कौशलों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का प्रयोग घर सम्बन्धी समस्याओं का हल ढूँढने में किया जाय तथा इस प्रकार विद्यालय के स्तर में वृद्धि करने के लिए शिक्षकों, माता-पिता तथा बालकों को एक सुसम्बन्धित, संगठित, परस्पारिक सहायता करने वाले समूह के रूप में जोड़ा जाये। “
इस प्रकार समावेशी शिक्षा, शिक्षा प्रदान करने में समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ये दोनो ही एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं तथा शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होते है। हुमायूँ कबीर ने लिखा है “विद्यालय समुदाय के जीवन का प्रतिबिम्ब है और उसे ऐसा होना भी चाहिए। अतः भारत में सार्वजनिक विद्यालयों को भारतीय जीवन के ढाँचे के अधिक निकट लाया जाना चाहिए।”
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