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संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका | Important role of resource teacher

संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका | Important role of resource teacher
संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका | Important role of resource teacher

संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।

विद्यालय में संसाधन अध्यापक की नियुक्ति, सामान्य अध्यापक के सहयोग हेतु की जाती है ताकि समावेशिक परिवेश में बाधित बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता हो सके। एक संसाधन अध्यापक के उत्तरदायित्व निम्नलिखित हो सकते हैं-

  1. सामान्य अध्यापक को ‘समावेश’ के उद्देश्य की जानकारी देना।
  2. बाधित बच्चों की पहचान के लिए सामान्य कक्षा-कक्ष अध्यापक की सहायता करना।
  3. सामान्य अध्यापकों की पाठ्यक्रम निर्माण एवं शैक्षिक योजनाओं में सहायता करना।
  4. बाधित बच्चों के लिए सहायक उपकरणों की जानकारी सामान्य शिक्षक को देना।
  5. यह निश्चित करना कि बाधित बच्चे किसी भी प्रकार से सामान्य बच्चों से अलग न किए जाएँ।
  6. बाधित बच्चों की भलाई के लिए मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक, समाज सेवी, विशेषज्ञ आदि से सम्पर्क रखना।
  7. विशिष्ट बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने में आने वाली समस्याओं का निवारण करना।

श्रवण बाधित बच्चों की शिक्षा में संसाधन अध्यापक की भूमिका

श्रवण बाधित बच्चों के समावेशित परिवेश में शिक्षा प्रदान करने में संसाधन अध्यापक की विशेष भूमिका होती है। जैसे:-

  1. बच्चों के बोलने के ढंग में सुधार लाना।
  2. श्रवण बाधित बच्चों को अधिगम कौशलों का प्रशिक्षण देना।
  3. सहायक सेवाएँ, श्रवण बाधित बच्चों के लिए व्यवस्थित करना।
  4. श्रवण बाधिता की गम्भीरता की समय-समय पर जाँच करवाना।
  5. सांकेतिक भाषा का प्रयोग करना।
  6. श्रवण बाधित बालकों के सामायोजन को मापने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग करना।

दृष्टि बाधित बच्चों की शिक्षा में संसाधन अध्यापक की भूमिका

  1. स्पर्श तकनीकी से पढ़ाना।
  2. बच्चों को वैयक्तिक अनुदेशन देना।
  3. बालकों की बहुइन्द्रिय प्रयोग को प्रशिक्षित करना।
  4. बच्चों को श्रवण कौशल, दैनिक जीवन कौशलों का प्रशिक्षण देना।
  5. बच्चों को लेजर केन का प्रयोग सिखाना।
  6. बड़ी मुद्रित शिक्षा सामग्री का प्रयोग।

अधिगम बाधित बच्चों की शिक्षा में संसाधन अध्यापक की भूमिका

  1. बहुइन्द्रिय शिक्षण तकनीकों का प्रयोग।
  2. शैक्षिक खेलों में बच्चों की सहभागिता को बढ़ावा देना।
  3. बच्चों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना।
  4. स्व प्रश्न तकनीक का अधिगम असमर्थी बालकों के लिए विशेष रूप से पढ़ने में प्रयोग करना ।
  5. अध्यापक द्वारा अपने शिक्षण में सम्बन्धी सामग्री प्रयोग लानी चाहिए। जो कि छात्रों को प्रेरणा देने वाली हो तथा स्वाभाविक रूप से कठिन हो ।

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