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मन्द बुद्धि बालकों के कारण एवं इनकी समस्याएँ | Causes and problems of Mentally retarded children

मन्द बुद्धि बालकों के कारण एवं इनकी समस्याएँ | Causes and problems of Mentally retarded children
मन्द बुद्धि बालकों के कारण एवं इनकी समस्याएँ | Causes and problems of Mentally retarded children

मन्द बुद्धि बालकों के मुख्य कारणों पर प्रकाश डालिए एवं इनकी समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

मन्द बुद्धि बालकों के कारण एवं इनकी समस्याएँ

मन्द बुद्धि कई प्रकार की अन्तःक्रियाओं के कारण उत्पन्न होती हैं। इसके लिए कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं होता। मन्द बुद्धि के निम्नलिखित मुख्य कारण माने जाते है।

  1. वंशानुक्रम
  2. शारीरिक कारण
  3. संवेगात्मक कारण
  4. समाजशास्त्रीय कारक

1. वंशानुक्रम- मानसिक पिछड़ेपन का उत्तरदायित्व वशानुक्रम पर डाला जाता रहा है। माता पिता के मानसिक पिछड़ेपन का मुख्य भाग उनकी संतान को मिल जाता है। इस प्रकार की बुद्धि हीनता पूर्वजों में भी होती है। तथा उसका हस्तनान्तरण उनकी संतान में हो सकता है। यह हस्तनान्तरण गुणसूत्रों (chromosomes) के माध्यम से होता है।

2. शारीरिक कारक- मस्तिष्क के किसी भी भाग में यदि कोई दोष आ जायें तो बालक मानसिक रूप से विकलांग या मन्द बुद्धि हो सकता है। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क कोशिकाओ को बुखार आदि के कारण आघात लगना भी शारिरीक कारको में ही शामिल है। कई और बीमारियाँ भी मन्द बुद्धि को जन्म देती हो। जैसे मैनिनजाइटिस, कोनजिनियल अधरंग जर्मन मोसल्स एपिलेप्सी एधरेक एपोप्लेक्सी इत्यादि। इन बिमारियों के अतिरिक्त गर्भावस्था के दौरान उप-सामान्य स्थिति बच्चे के जन्म के समय कोई दुर्घटना होना या मस्तिष्क पर किसि औजार के घाव लगना शैशावस्था मे सिर पर चोट लगना असंतुलित भोजन या कम भोजन के कारण भई बालक मन्द बुद्धि के हो सकते है।

3. संवेगात्मक कारक- मानसिक रूप से पिछड़े बालक सर्वगात्मक रूप से कुसमायोजित हो सकते हैं। कई बार ऐसे बालक बहुत उत्तेजक और आक्रामक होते है। इन बालको के संवेगात्मक असंतुलन का प्रभाव उनकी शैक्षणिक उपलब्धि पर अवश्य पड़ता है। ऐसा इसलिए होता है कि ये बालक अपने सवेगों पर नियंत्रण पाने के अयोग्य होते है या उन्हें किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता ऐसी परिस्थितियों में ये बच्चे अपना समायोजन करने में सक्षम नहीं होते।

5. समाजशास्त्रीय कारक- समाजशास्त्रीय कारक भी मानसिक पिछड़ेपन में अपना योगदान देते है। कुछ समाजशास्त्रियों का मत है कि मानसिक पिछड़ापन परिवार की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण होता है। उपरोक्त कारको के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी हैं। जैसे गर्भाकालीन अवस्था में गर्भाशय पर एक्स-रे का गर्भस्त शिशु के मानसिक विकास पर महत्वपूर्ण ढंग से प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार परिवार के वातावरण में नीरसता स्नेह का अभाव सुखद अनुभवोका अभाव असंगठित तथा दुःखी परिवार निर्धनता तथा असुविधाएँ इत्यादि भी मानसिक मन्दन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

मन्द बुद्धि बालको की समस्याएँ- सामान्य बालकों की तुलना में बालकों का समायोजन नहीं के बराबर होता है। इन बालको को समान्य बालकों की तुलना में मन्द बुद्धि बालकों का समायोजन नहीं के बराबर होता हबै। इन बालको को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। कुछ समस्याओ का वर्णन निम्न प्रकार से है।

(A) समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ- मन्द बुद्धि बालक स्वयं को सामान्य बालकों की अपेक्षा कुसमायोजित महसूस करते है। समाज स्कूल तथा समुदाय मे इनका समायोजन कठिन होता है। समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ निम्नलिखित हो सकती है।

1. परिवार में समायोजन- बच्चे के माता पिता को यह विश्वास दिलाना अति आवश्यक होता है कि उनका बच्चा मन्द बुद्धि बालक है। यदि ऐसा नही किया जाता तो माता पिता उस बच्चे से उच्च आकांक्षाएं रखते है। लेकिन कुछ समय मे बालक की असफलताओं से उन्हें निराशा होती है। इससे माता पिता और बालक के मध्य द्वन्द्व की स्थिति पैदा हो जाती है। परिवार के अन्य सदस्यों का व्यवहार भी उस बच्चे के साथ ठीक नहीं रहता ऐसी स्थिति मे बच्चा स्वयं को परिवार में कुसमायोजित महसूस करने लगता है।

2. स्कूल मे समायोजन- कई बार मन्द बुद्धि बालकों को स्कूलों में और कक्षाओं में अध्यापकों के असहानुभूति व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ऐसे बालक कक्षा में अध्यापकों की सामान्य विधियों से कुछ भी सीखने में असमर्थ होते है। जिसके परिणामस्वरुप उन्हें अध्यापको की डाँट सुननी पड़ती है। कई बार तो उन्हें दंड दिया जाता है स्कूल की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें कोई प्रोत्साहित नहीं करता। स्कूल से उन्हे घृणा होने लगती है।

3. समाज में समायोजन- समाज के अन्य वर्ग के लोग भी मन्द बुद्धि बालको को हीन भावना से देखने लगते है. तथा इनसे मेल जोल बढ़ाना पसंद नहीं करते। परिणामस्वरूप इन बालको मे भी हीन भावना पैदा होने लगती है। समाज के अन्य सदस्यों के समान वे स्वयं को समाज में समायोजित नहीं कर पाते इसी कारण से इनका सामाजिक विकास सामान्य रूप से नहीं हो पाता।

(B) संवेगात्मक समस्याएँ- घर, स्कूल, समाज आदि मे उजित वातावरण न मिलने के कारण कुसमायोजित बालक संवेगात्मक रूप से परिपक्व नही हो सकते। संवेगो को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण उन्हें नहीं मिल पाता। अतः संवेगात्मक रूप से वे अपरिपक्व रह जाते है। छोटी छोटी बातो पर लड़ने लगते हैं या रोने लगते है।

(C) शारीरिक और मानसिक विकास की समस्याएँ- इन बालको का शारीरिक और मानसिक विकाल सामान्य बालकों की तरह नहीं हो पाता तथा रुटीन के कई कार्य ये नहीं कर पाते जैसे ठिक से बैठना कम सुनना आँखों में दोष बोलने में दोष। इनमे बुद्धि कम होने के कारण कुछ सीख नहीं पाते। उनम अमूर्त चिन्तन की योग्यता नहीं होती। उनका ध्यान विस्तार भी कम होता है। एक विषय पर वे स्वयं को अधिक समय के लिए केन्द्रित नहीं कर पाते। वे केवल साधारण निर्देश ही समझ पाते है। उनकी रुचियाँ भी सीमित होती है।

मन्द बुद्धि बालकों की समस्याएँ

  • समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ,
  • संवेगात्मक समस्याएँ,
  • शारिरीक और मानसिक विकास की समस्याएँ
  • परिवार में समायोजन
  • स्कूल में समायोजन
  • समाज में समायोजन

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