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प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे ? what were the causes of world war?

प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे ? what were the causes of world war?
प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे ? what were the causes of world war?

 प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे? स्पष्ट व्याख्या कीजिए।

प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे? प्रथम विश्व युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति, साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता, आयुधों की होड़, विकृत राष्ट्रवाद, समाचार पत्रों के सुखदार समाचार छापने तथा अन्त में बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में आस्ट्रिया के युवराज की हत्या, जिसमें सर्विया के सैनिक अफसर शामिल थे, का परिणाम था। प्रथम विश्वयुद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसने पूरे विश्व को झकझोर दिया एवं उसकी घटनाओं से विश्व प्रभावित हुआ।

यूरोपीय कूटनीतिक व्यवस्था- प्रथम विश्वयुद्ध के लिए यूरोपीय कूटनीतिक व्यवस्था काफी हद तक जिम्मेदार थी। 1871 ई. में जर्मनी के एकीकरण के बाद विस्मार्क ने घोषित किया कि जर्मनी तृप्त एवं संतुष्ट राष्ट्र है, यह क्षेत्रीय फैलाव नहीं चाहता है। फिर भी उसने एल्सास एवं लोरेन फ्रांस से लेकर फ्रांस को आहत कर दिया, जिससे उसे सदैव भय रहता था कि फ्रांस यूरोप के दूसरे राष्ट्रों से दोस्ती करके जर्मनी से बदला लेने की कोशिश करेगा। इस लिए विस्मार्क फ्रांस को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एकाकी रखने के लिए कूटनीतिक जाल बुनने लगा। उसने 1879 ई. में द्वैध संधि आस्ट्रिया के साथ की। यद्यपि यह संधि रक्षात्मक थी, फिर भी संधि की शर्तें गुप्त थीं, अतः यूरोप में शंका का वातावरण व्याप्त हो गया। 1882 ई. में द्वैध संधि इटली को शामिल कर इसे त्रिवर्गीय संधि बना दिया गया। फिर भी बिस्मार्क रूस की सदिच्छा नहीं खोना चाहता था एवं उसको फ्रांस से मिलने नहीं देना चाहता था। इसलिए उसने 1871, 1881 एवं 1887 ई. में रूस से संधि कर उसने अपने पक्ष में मिलाए रखा और फ्रांस को मित्रहीन बनाए रखा। परन्तु 1890 ई. में उसके चांसलर के पद से हटने पर जर्मन सम्राट विलियम स्वयं पर राष्ट्र नीति का संचालन करने लगा। उसमें योग्यता एवं दूरदर्शिता का अभाव था, फलतः फ्रांस ने 1894 ई. में रूस से मित्रता कर ली। 19वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड ने ‘श्रेष्ठ एकीकरण’ बनाए रखा। लेकिन, जब बिस्मार्क अपना कूटनीतिक जाल बुनने लगा एवं 1890 ई. में उसके पतन के बाद फ्रांस एवं रूस में 1894 ई. में मित्रता हो गई तो इंग्लैण्ड भी यूरोप में मित्र की तलाश करने लगा। सर्वप्रथम उसने जर्मनी से मित्रता करनी चाही, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली तो उसने 1907 में जापान से संधि की। फिर 1907 में ही इंग्लैण्ड, फ्रांस एवं रूस ने मिलकर एक समझौता किया जिसे त्रिराष्ट्रीय समझौता या त्रिवर्गीय मैत्री संघ कहा जाता है। इन दोनों गुटों की प्रतिद्वंद्विता बढ़ती रही एवं अन्त में दोनों गुट 1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ने में संलग्न हो गए।

साम्राज्यवाद- साम्राज्यवाद 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोप के लिए एक समस्या बन गया। वास्तव में जर्मनी एवं इटली के एकीकरण के पहले ही यूरोपीय राज्यों ने अपना साम्राज्य एशिया एवं अफ्रीका में स्थापित कर लिया था।

औद्योगिक रूप से यूरोप के विकसित देशों के पूंजीपति अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल एवं “उत्पादित सामग्री को बेचने के लिए उपनिवेशों की अनिवार्यता को महसूस करते थे। इसके अलावा अपने देश में अधिक मजदूरी देने से वे विदेशों में पूंजी लगाना चाहते थे, ताकि कम मजदूरी देने पर भी अधिक काम कराया जा सके एवं उत्पादन बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमाया जा सके। लेकिन इस पूंजी निवेश की सुरक्षा तभी हो सकती थी जब उस क्षेत्र पर किसी न किसी तरह का राजनीतिक प्रभुत्व उनकी . मातृभूमि का रहे। यह कार्य युद्ध कर संबद्ध देश को पराजित कर ही संभव था। लेकिन एक समय ऐसा भी आया अब सारे अफ्रीका एवं एशिया के अविकसित भू-भाग पर यूरोपीय देशों का आधिपत्य हो गया तथा जर्मनी एवं इटली बाद में साम्राज्यवादी युद्धों में शामिल होने के कारण अतृप्त रह गए। परिणामतः ये देश वैसे देशों से उपनिवेश छीनना चाहते थे, जिन्होंने पहले ही अपना साम्राज्य विस्तार कर लिया था, जबकि दूसरे वर्ग के देश ‘यथास्थिति में अपना आर्थिक हित समझते थे। ऐसी हालत में संघर्ष अवश्यंभावी हो गया।

विकृत राष्ट्रवाद- विकृत राष्ट्रवाद भी प्रथम विश्व युद्ध के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार था। राष्ट्रवाद का उदय फ्रांस की क्रांति का एक परिणाम था। यह जर्मनी एवं इटली के एकीकरण में रक्षात्मक रूप में खूब उभरा। लेकिन 19वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध में राष्ट्रवाद उग्र रूप धारण करने लगा एवं साम्राज्यवादी मनोवृत्ति ने उसे और विकृत कर दिया। जर्मनी के राष्ट्रवादी फ्रांस के विरुद्ध थे। एवं फ्रांस के राष्ट्रवादी जर्मनी का नामोनिशान मिटा देना चाहते थे। वे 1871 ई. की अपमानजनक संधि को नहीं भूले थे। इस बीच राष्ट्रीयता के उदय ने बाल्कन क्षेत्र में समस्याएँ और जटिल हो गई, क्योंकि बोस्निया एवं हर्जेगोविना आस्ट्रिया को दे दिया गया जिसमें सर्वजाति के लोग रहते थे एवं इस संबंध में सर्बिया के दावे को ठुकरा दिया गया। उधर सर्बिया के लोग स्लाव वंश के थे। अतः रूस अपने को उनके हितों का रक्षक समझता था, जबकि आस्ट्रिया किसी भी तरह बोस्निया एवं हर्जेगोविना को छोड़ना नहीं चाहता था। उसी तरह बुल्गर, चेक, पोल इत्यादि जातियाँ भी अपने स्वतन्त्र राष्ट्र की कामना करती थीं। राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा विकृत रूप यह था कि कुछ जातियाँ अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगी एवं अन्य जातियों पर अपने शासन स्थापित करना अपना अधिकार समझने लगीं। अतिशय राष्ट्रवाद प्रथम विश्व युद्ध के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार था, क्योंकि जर्मनी की उग्रवादी राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण यूरोप के दूसरे देश चिन्तित हो गए एवं उसे किसी भी तरह पराजित करने का अवसर ढूँढने लगे।

सैन्यवाद- प्रथम विश्वयुद्ध के लिए सैन्यवाद भी काफी जिम्मेदार था। वास्तव में फ्रांस की क्रांति के साथ सैन्यवाद का जन्म हुआ एवं इटली एवं जर्मनी के एकीकरण के समय तक सैन्यवाद का काफी विकास हुआ। धीरे-धीरे सेना के उच्चाधिकारी राजनीतिज्ञों पर हावी होने लगे एवं हम जानते हैं कि 1871 ई. में बिस्मार्क जैसे चांसलर को भी अपने सेनानायकों की इच्छाओं के सामने झुककर एल्सास एवं लौरेन को फ्रांस से लेना पड़ा। धीरे-धीरे ये सेना के पदाधिकारी उदंड होकर राजनीतिज्ञों पर हावी हो गए, किन्तु ये सेना के अधिकारी देश के अन्य मामलों में कम रुचि रखते थे। उनका ध्यान केवल युद्ध पर था। हम जानते हैं कि युद्ध की योजना शत्रु के विरुद्ध पहले ही बना ली जाती है। इस कूटनीतिक प्रतिद्वंद्विता के युग में ये सैनिक पदादिकारी युद्ध की तैयारी बहुत ही पहले कर लेते थे एवं यह सर्वविदित है कि जो पहले आक्रमण करता है, वह लाभ में रहता है।

फ्रांस के बदले की अन्तर्भावना- जर्मनी 1870 ई. में फ्रांस को पराजित कर संतुष्ट नहीं हुआ। वर्साय के राजप्रसाद में प्रशा के राजा को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया एवं फ्रांस से एल्सास एवं लोरेन ले लिया गया। स्वाभिमानी फ्रांसीसी इस राष्ट्रीय अपमान को कभी नहीं भूल पाए। जले पर नमक छिड़कने के लिए जर्मनी ने मोरक्को में भी फ्रांस का विरोध किया। इससे फ्रांस में जर्मनी के विरुद्ध विद्वेष की भावना बढ़ी। वहाँ के कई राजनीतिक नेताओं तथा चिंतकों ने उत्तेजनापूर्ण लेखों से लोगों को जर्मनी के विरुद्ध उत्तेजित करना शुरू किया, जिसके परिणाम स्वरूप फ्रांस ने आक्रामक कूटनीतिक जाल बुनना शुरू किया एवं इंग्लैण्ड एवं रूस से मित्रता की। फ्रांस किसी भी तरह जर्मनी से अपने राष्ट्रीय अपमान का बदला लेना चाहता था एवं प्रथम विश्व युद्ध में ही वह ऐसा मोका देख रहा था।

अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता- 1879 ई. में बिस्मार्क ने जिस कूटनीतिक जाल का बुनना शुरू किया, उसका एक स्वरूप संधि की शर्तों को गुप्त रखना था। ऐसी स्थिति में शंका एवं भय का वातावरण युरोप में व्याप्त हो गया। इसके अलावा यूरोपीय देश अपने छोटे से छोटे स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी संधि की शर्त को तोड़ने में नहीं हिचक रहे थे। रूस 1878 ई. के बर्लिन कांग्रेस के बाद जर्मनी से नफरत करता था, फिर भी वह उसके बाद जर्मनी से मित्रवत बने रहने का वादा करता रहा। उसी तरह जर्मनी एक तरफ आस्ट्रिया के हितों की रक्षा की बात करता था तो दूसरी तरफ रूस से मित्रता के लिए वह 1890 ई. तक कुछ भी करने को तैयार था। इंग्लैण्ड, फ्रांस से सैद्धान्तिक स्तर पर मित्रता की बात नहीं कर अपने साम्राज्यवादी हितों की रक्षा के लिए जर्मनी के विरुद्ध मित्र की तलाश कर रहा था। इटली जर्मनी एवं आस्ट्रिया के साथ रहते हुए अपने हितों को साधने के लिए दूसरे गुट से भी सम्पर्क बनाए हुए था जिसका इजहार युद्ध शुरू होने के तुरन्त बाद उसने त्रिवर्गीय मैत्री संघ में शामिल होकर किया। इस प्रकार यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध के समय अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता फैली हुई थी जिसमें संधि की शर्तों की अवहेलना एवं मित्रवत रहने पर भी शत्रुवत षड्यन्त्र आम बात हो गई थी। ऐसे समय में प्रथम विश्व युद्ध अवश्यंभावी हो गया।

बाल्कन क्षेत्र की जटिलता- बाल्कन क्षेत्र की जटिल समस्या ने त्रिवर्गीय संधि एवं त्रिवर्गीय मैत्री संघ के सदस्यों को आमने-सामने ला खड़ा किया वास्तव में एक तरफ यदि रूस धर्म एवं जाति के नाम पर अपने को स्लाव जाति का संरक्षक समझता था तो दूसरी तरफ आस्ट्रिया किसी भी तरह से सर्व आन्दोलन को दबाकर उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था। ये बातें उतनी उम्र नहीं होती यदि सर्बिया को रूस की सहायता का आश्वासन नहीं होता एवं रूस की पीठ पर फ्रांस एवं इंग्लैण्ड को समर्थन की बात नहीं होती। इसी तरह आस्ट्रिया भी बाल्कन क्षेत्र में अकेले युद्ध करने की हिम्मत नहीं करता, यदि उसे युद्ध समय जर्मनी एवं इटली का समर्थन मिलने की आशा नहीं रहती। इसी लिए कहा जाता है कि “प्रथम विश्व युद्ध दो घोड़ों (सर्बिया एवं आस्ट्रिया) का युद्ध था, घुड़सवार बाद में इस युद्ध में शामिल हुए।

तात्कालिक कारण- प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बोस्निया की राजधानी सेराजेवों में एक सर्व द्वारा आस्ट्रिया के युवराज एवं उसकी पत्नी की हत्या थी। आस्ट्रिया सरकार इसके लिए सर्बिया को दोषी मानती थी एवं उसने एक अल्टीमेटम भेजा जिसकी सभी शर्तों को सर्बिया के लिए मानना असंभव था। फिर भी आस्ट्रिया की कुछ माँगे सर्विया ने स्वीकार कर ली एवं बाकी मांगों पर उसने पुनर्विचार करने के लिए आवेदन किया, जिसे आस्ट्रिया ने अस्वीकार कर दिया। अपनी मांगों की पूर्ति न होने पर आस्ट्रिया ने 28 जुलाई 1914 को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 30 जुलाई 1914 को रूस ने अपनी सेना को प्रस्थान करने की अनुमति दी। 31 जुलाई को आस्ट्रिया एवं 1 अगस्त रको जर्मनी ने अपनी सेना का प्रस्थान कराया। इस तरह प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ।

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