शिक्षा का व्यवसायीकरण | माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण (Vocationalisation of Education)
किसी भी देश की तरक्की व खुशहाली उसकी शिक्षा पद्धति पर निर्भर करती है। यही कारण है कि दुनिया के प्रत्येक राष्ट्र का प्रथम प्रयास होता है कि उसके देश की शिक्षा श्रेष्ठ हो। इस विचारधारा में भारत कोई अपवाद नहीं है। भारत देश के लिए समुचित शिक्षा आज सभी की मुख्य इच्छा है। ऐसा नहीं है कि समुचित शिक्षा भारतीयों की केवल इच्छा मात्र है, अपितु इसे प्राप्त करने के लिए भरसक व हर संभव प्रयास किए गए हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् तो ये प्रयास अति तीव्रगामी हो गए थे। जैसे ही देश स्वतन्त्र हुआ था, भारतीय नेताओं तथा मनीषियों ने शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का भरपूर प्रयास किया। स्वतन्त्रता से पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के प्रयास अंग्रेजी सरकार द्वारा किए गए थे, परन्तु वे केवल स्वार्थ के वशीभूत थे। अंग्रेजी सरकार शिक्षा के माध्यम से केवल सस्ते लिपिक तैयार करने तक सोचती थी। महात्मा गाँधी की आधारभूत शिक्षा प्रणाली शिक्षा के व्यवसायीकरण की ओर लक्ष्य करती थीं। इसका मुख्य उद्देश्य उस शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना था जो शिल्प पर आधारित हो। इसलिए शिक्षा में बुनना, सिलाई-कढ़ाई तथा कृषि आदि को सम्मिलित किया गया। सम्पूर्ण शिक्षा शिल्प पर केन्द्रित होती थी। इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ जीवनयापन में सहायक होती थीं। परन्तु ऐसे विद्यालयों में वास्तविक अधिगम अपेक्षाकृत कम होता गया। इसका परिणाम यह निकला कि मूलभूत शिक्षा अथवा महत्व खोती गई। यही कारण था कि आज के तीव्रगति से बदलते युग में शिक्षा के व्यवसायीकरण को नए तरीकों से सोचा गया। इस नई सोच के अनुसार शिक्षा में व्यवसायीकरण माध्यमिक स्तर पर ही लागू किया जाना था। भारत में उन विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा हैं जो माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के बाद या बीच में ही पढ़ना छोड़ देते हैं। ऐसे में यदि माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक विषयों को पढ़ाया जाता है तो वे विद्यार्थी जो माध्यमिक स्तर पर या इसके बाद पढ़ना छोड़ देते हैं तो वे कम से कम अपनी आजीविका कमाने में तो समर्थ हो सकते हैं।
माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण को लेकर भारत सरकार ने कई आयोगों का गठन ही नहीं किया अपितु उनकी सलाहों पर कार्य भी किया। परन्तु फिर भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर ‘कोठारी कमीशन 1964-66 द्वारा दिए गए वक्तव्य से स्वयं ही प्राप्त हो जाता है। आयोग का कथन है कि, “बार-बार सलाह देने के पश्चात् भी दुर्भाग्य की बात यह है कि विद्यालय स्तर पर व्यवसायिक शिक्षा को एक घटिया किस्म की शिक्षा समझा जाता है और अभिभावक तथा विद्यार्थियों का सबसे आखिरी चुनाव होता है।’
व्यवसायीकरण का अर्थ –
व्यवसायीकरण का सामान्य शब्दों में अर्थ होता है किसी व्यवसायिक में प्रशिक्षण अर्थात् विद्यार्थी को कोई एक व्यवसाय सिखाना ताकि वह अपना जीवनयापन सुगमता से कर सके। विस्तार से यदि व्यवसायीकरण को देखें-समझें तो इसका अर्थ होता है – शिक्षा के साथ-साथ उन कोसों की भी व्यवस्था की जाए जो छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ किसी व्यवसाय में भी कुशल व्यक्ति बनाए। कोठारी कमीशन ने व्यवसायीकरण के व्यापक स्वरूप को लेकर जो विचारं प्रस्तुत किए हैं उनके अनुसार व्यवसायीकरण का अर्थ है , “हम यह देखते हैं कि भविष्य की विद्यालयी शिक्षा का स्थान साधारण शिक्षा व तकनीक शिक्षा के लाभप्रद संयोग में है , जिसमें पूर्व तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के कुछ हिस्से शामिल हैं और परिणामस्वरूप सामान्य शिक्षा का तत्व आ जाता है। हम जिस प्रकार के समाज में रह रहे हैं उसमें इन दोनों प्रकार की शिक्षा को अलग-अलग करना अनुचित ही नहीं वरन् असम्भव होगा।” शिक्षा में व्यवसायीकरण का अर्थ उस शिक्षा से है जो विद्यार्थी को किसी वसाय में निपुण व समर्थ बनाती है। परन्तु माध्यमिक स्तर पर व्यवसायीकरण का अर्थ भिन्न-भिन्न लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से लिया है। कुछ लोग इसे किसी व्यवसाय विशेष में प्रशिक्षण देने से लेते हैं । इस दृष्टिकोण का उद्देश्य किसी विशेष पाठ्यक्रम के सुखान्त पर कोई काम शुरू करने के लिए किसी व्यापार कला, कौशल या किसी व्यवसाय आदि का सीखना है। परन्तु दूसरे समूह के लोग माध्यमिक शिक्षा में व्यवसायीकरण का अर्थ व्यवसायिक प्रशिक्षण से समझते हैं। परन्तु यह दृष्टिकोण अति संकीर्ण तथा संकुचित है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने ऐसा महसूस किया कि ऐसे विद्यालयों में शिक्षण कार्यक्रम एक निश्चित व्यवसायिक कार्यक्रम से जुड़े होंगे, क्योंकि ये विद्यालय मात्र व्यवसायिक विद्यालय मात्र नहीं है। भारतीय शिक्षा आयोग ने यह महसूस किया कि विद्यालय स्तर पर भविष्य में साधारण शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा में पूर्व व्यवसायिक तथा तकनीकी तत्व शामिल होंगे और व्यवसायिक शिक्षा साधारण शिक्षा का तत्व बनाए रखेगी। इन दोनों प्रकार की शिक्षाओं को पूर्ण रूप से अलग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पूर्ण अलगाव का सोचना भी अवांछनीय तथा असंभव है।
शिक्षा के व्यवसायीकरण की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Vocationalisation of Education)
प्रत्येक राष्ट्र का यही प्रयास होता है कि उसके राष्ट्र की शिक्षा का ढाँचा उन्नत तथा सक्षम हो ताकि यह सभी व्यक्तियों की आवश्यकताओं तथा माँगों को पूरा कर सके। इसलिए देश में एक विशेष प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए, क्योंकि यह विशेष शिक्षा अर्थात् व्यवसायीकरण शिक्षा कई प्रकार से देश की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है। जिन क्षेत्रों में व्यवसायीकरण की आवश्यकता है वे निम्नलिखित है-
(1) आर्थिक विकास के लिए- भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसे प्रकृति ने खुले दिल से अपने तीनों गुणों शक्ति, सुन्दरता तथा ताकत को भरपूर मात्रा में दिया है। परन्तु इतने अच्छे तथा सशक्त प्राकृतिक साधनों के बावजूद भी हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था उतनी सुदृढ़ नहीं है, जितना इसे होना चाहिए था। इस अवनति का एक मुख्य कारण प्रशिक्षित मानवीय शक्ति का होना है। यह भी सत्य है कि जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश दुनिया में दूसरे स्थान पर है और प्रकृति ने भी इसे दोनों हाथों से सींचा है। परन्तु हमारी आयोग्य शिक्षा प्रणाली वह कारण है, जिससे देश आर्थिक विकास की बुलन्दियों को छू नहीं पा रहा है।
अब समय आ गया है जब हमें हमारे छात्र-छात्राओं को व्यावसायिक तथा व्यावहारिक रूप से कुशल बनाना होगा ताकि वे औद्योगिक तथा तकनीकी उन्नति की योजनाओं में सार्थक योगदान देकर देश को आर्थिक रूप से सशक्त तथा खुशहाल बना सकें। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय शिक्षा आयोग ने शिक्षा के चार मुख्य लक्ष्यों में से ‘उत्पादन वृद्धि’ को लक्ष्य साधकर उसकी प्राप्ति के लिए माध्यमिक शिक्षा को व्यावसायिक रूप देने की सिफारिश की है।
(2) बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए- भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में व्यावसायिक शिक्षा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में सक्षम है। अत: शिक्षा में व्यवसायीकरण से शिक्षित लोगों में बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है। निःसन्देह व्यवसायीकरण विद्यार्थियों को किसी एक व्यवसाय में निपुण बनाती है। महात्मा गाँधी के अनुसार, “शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध एक प्रकार का बीमा होना चाहिए।’
(3) विद्यार्थियों की योग्यताओं, रुचियों तथा गुणों को प्रशस्त करने के लिए-आयोग के अनुसार माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण करने से विद्यार्थी अपनी-अपनी विशेष पसन्द तथा रुचियों के अनुरूप प्रशिक्षण ले सकते हैं। यह उनके लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने के साथ उन छुपी हुई क्षमताओं को भी विकसित करेगा।
(4) आत्मसंतुष्टि-अपने आपको मानव केवल उस समय आत्मसंतुष्ट समझता है जब उसे अपनी पसन्द का व्यवसाय मिल जाए और शिक्षा में व्यवसायीकरण से विद्यार्थियों को पूरा नहीं तो कुछ हद तक उसकी रुचि उसकी रुचि के अनुरूप कोई-न-कोई व्यवसाय मिल ही जाता है।
(5) नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास-यदि मानव की मूलभूत आवश्यकताएँ रोटी-कपड़ा और मकान, पूरी हो जाती है तो नैतिकता व संस्कृति की बात सोचता है और शिक्षा के व्यवसायीकरण से विद्यार्थी अपनी पसन्द का रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें धन के साथ-साथ संतुष्टि भी दे सकता है और आर्थिक रूप से सबल होने पर नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास स्वतः प्राप्त हो सकता है।
(6) बौद्धिक विस्तार-शिक्षा में व्यवसायीकरण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को रोजगार उपलब्ध कराना है। एक बार रोजगार प्राप्त होने पर वे दूसरे क्षेत्रों में भी कार्य करने की सोच सकते हैं। ऐसा करने से तथा दूसरे क्षेत्रों में रुचि लेने से उनका बौद्धिक विस्तार स्वतः ही हो जाता है।
(7) शिक्षा प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्ण बनाना-शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाने के लिए व्यवसायीकरण अति आवश्यक है, क्योंकि व्यवसायीकरण शिक्षा की प्रक्रिया को दिशा देने में सक्षम है। यही कारण है कि शिक्षा व्यावहारिक रूप से विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हो सकती है।
(8) माध्यमिक शिक्षा को आत्मनिर्भर कोर्स बनाने के लिए-वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप अत्यधिक शैक्षिक होने के कारण इसका मुख्य कार्य विद्यार्थियों को महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिलाने मात्र तक सीमित होकर रह गया है। यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो हम पाएँगे कि इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली मे पढ़कर महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में जाने वाले छात्रों की संख्या 25% भी नहीं होती है। माध्यमिक शिक्षा के तुरन्त बाद वे रोजी-रोटी कमाने की सोचते हैं, इसलिए इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम को व्यावसायिक स्वरूप देकर इस दिशा में कुछ प्रशिक्षण जरूर दिया जाना चाहिए।
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