हर्टाग समिति क्या है?
हर्टाग समिति (Hartog Committee)– द्वैध शासन व्यवस्था से भारतीय नेता संतुष्ट नहीं थे जिसके फलस्वरूप गाँधी जी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन (1919) ने जोर पकड़ा। इसी समय राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन की गूंज भी चारों ओर फैली हुई थी। सभी नेता इस बात पर एकमत थे कि शिक्षा पूर्णरूप से भारतीयों के हाथ में होनी चाहिए। शिक्षा भारत की संस्कृति पर आधारित होनी चाहिए। प्रारम्भ से ही बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जायें जो बच्चों में मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना जाग्रत करे। स्वदेशी भाषा साहित्य और इतिहास का ज्ञान कराया जाये। अर्थात् शिक्षा ऐसी हो जो पूर्णरूप से भारतीय हो और भारत तथा भारतीयों के विकास में सहायक हो। अतः ब्रिटिश सरकार ने भारत की स्थितियों को समझते हुए, ब्रिटिश शासन नीति को निश्चित करने के लिए 8 नवम्बर 1927 को ‘साइमन कमीशन’ की नियुक्ति की । इस कमीशन से भारत की शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव माँगे। साइमन कमीशन ने भारत में शिक्षा सम्बन्धी जटिलताओं को सुलझाने के लिए एक सहायक समिति का गठन किया। हर्टाग इस समिति के अध्यक्ष बने। इन्हीं के नाम पर इस समिति को ‘हर्टाग समिति’ कहा जाता है।
हर्टाग भारतीय शिक्षा से पहले से ही परिचित थे। वे ढाका विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके थे तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय 1917 के सदस्य भी रह चुके थे। हर्टाग ने भारतीय शिक्षा की नीति, प्रशासन तथा स्वरूप का विस्तृत अध्ययन किया और उसके बाद 11 सितम्बर 1929 को अपना प्रतिवेदन साइमन कमीशन को प्रस्तुत किया।
हर्टाग समिति के प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions related to Primary Education)
हर्टाग ने अपने अध्ययन में यह पाया कि जनसंख्या वृद्धि के सापेक्ष प्राथमिक स्तर पर साक्षरता प्रतिशत लगातार घटता जा रहा है। अपव्यय और अवरोधन की समस्या भी एक बड़ी समस्या थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जो बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी किया बिना स्कूल से हट जाते हैं, उसे अपव्यय कहते हैं और जो बच्चे एक ही कक्षा में 1 वर्ष से अधिक रहते हैं वो अवरोधन कहलाता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में प्राथमिक स्तर पर अपव्यय एवं अवरोधन के निम्नलिखित कारण बताये-
1. छात्रों को पढ़ने के लिये दूर जाना पड़ता है क्योंकि प्रत्येक गाँव में प्राथमिक स्कूल नहीं हैं। इसी कारण से बच्चे बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं।
2. अपव्यय एवं अवरोधन का मुख्य कारण निर्धनता भी है। भारत में गरीबी ज्यादा होने के कारण माता-पिता अपने बच्चों की दैनिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पाते। जिसके फलस्वरूप वह अपने साथ अपने बच्चों से भी मजदूरी में लगा लेते हैं, जिसके कारण वे बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते।
3. इसका एक कारण अशिक्षा भी है, भारतवासी शिक्षित न होने के कारण शिक्षा के महत्व को नहीं समझते।
4. अक्सर देखा गया है कि एक प्राथमिक विद्यालय में एक ही शिक्षक होने से शिक्षा में अवरोध होता है। दूरदराज के गाँवों में तो कई बार एक भी शिक्षक नहीं होता जिसके कारण शिक्षा बाधित होती है।
5. भारतीय शिक्षा की कमियों के चलते प्राथमिक विद्यालयों में अनुपयुक्त शिक्षकों की नियुक्ति होना।
6. प्राथमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों का न होना तथा शिक्षण सामग्री का अभाव होना।
7. प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम का अनुपयोगी होना, दैनिक जीवन में उसका लाभ न मिल पाने के कारण माता-पिता का बच्चों को स्कूलों से हटा लेना।
8. पिछड़े क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालय का न होना।
प्राथमिक स्तर पर अपव्यय एवं अवरोधन को रोकने के लिए समिति ने निम्न सुझाव दिये
1. जो प्राथमिक विद्यालय सुचारु रूप से नहीं चल रहे, उन्हें बंद किया जाये।
2. प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य करने में शीघ्रता न की जाये।
3. प्राथमिक शिक्षा की न्यूनतम अवधि 4 वर्ष की जाए।
4. पाठ्यक्रम में जीवनोपयोगी विषयों को स्थान दिया जाए।
5. योग्य तथा प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाये।
6. प्राथमिक शिक्षकों का वेतन बढ़ाया जाये तथा उन्हें उचित सुविधायें दी जायें।
7. अपव्यय तथा अवरोधन को रोकने के प्रयास किये जायें।
8. प्राथमिक विद्यालय निरीक्षकों की संख्या में वृद्धि की जाए।
हर्टाग समिति के माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions related to secondary education)
समिति ने माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था में कमियाँ पायीं। समिति ने रिपोर्ट में बताया कि माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का परीक्षा प्रधान होना और छात्रों का परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने का प्रतिशत अधिक होना। मुख्य रूप से समिति ने ये दो कारण बताये। समिति ने इन दोनों कमियों के कुछ निम्नलिखित कारण भी बताये-
1. माध्यमिक स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का निम्न कोटि का होना।
2. माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम का अनुपयुक्त होना।
3. हाईस्कूल से पहले की कक्षाओं में छात्रों को कक्षोन्नति देने में विनम्र होना।
4. शिक्षकों में शैक्षिक योग्यता और प्रशिक्षण की कमी होना।
5. उच्च शिक्षा प्राप्त करने में छात्रों की अरुचि होना।
माध्यमिक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए समिति द्वारा दिये गये सुझाव-
1. माध्यमिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में सुधार किया जाये तथा जीवनोपयोगी विषयों को स्थान दिया जायें।
2. माध्यमिक स्तर पर सार्वजनिक परीक्षा की व्यवस्था की जाए। उत्तीर्ण छात्रों को योग्यता तथा आवश्यकतानुसार उद्योगों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
3. पाठ्यक्रम में व्यावसायिक व तकनीकी विषयों को स्थान दिया जाये।
4. हाईस्कूल स्तर पर छात्रों के लिये वैकल्पिक पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जाये जिससे छात्र अपनी रुचि के अनुसार अपने विषयों का चयन कर सकें।
5. योग्य तथा प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की जाये।
6. अध्यापकों के वेतन बढ़ाये जायें, उनकी सेवा शर्तो में सुधार किये जाये।
उच्च शिक्षा सम्बन्धी हर्टाग समिति के सुझाव (Suggestions related to Higher Education) –
हर्टाग समिति ने बताया कि महाविद्यालयों की संख्या में तो वृद्धि हो रही हैं, लेकिन उनके गुणात्मक स्तर में गिरावट हो रही है। इसके साथ समिति ने यह भी बताया कि उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम सैद्धान्तिक है, जो कि शिक्षितों को नौकरी उपलब्ध कराने में पूर्ण रूप से सहायक नहीं है। अत: इसके कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। समिति ने उच्च शिक्षा की इन कमियों के निम्नलिखित कारण बताये-
1. उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों का रोजगारपरक न होकर केवल सैद्धांतिक होना है।
2. विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में ऑनर्स कोर्स का उचित रूप से संचालन न करना।
3. पुस्तकालयों की उचित व्यवस्था न होना।
4. विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बन्धित महाविद्यालयों के बीच उचित तारतम्य न होना।
5. इण्टर पास सभी छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु समान रूप से प्रवेश देना।
6. विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रों की संख्या उनकी क्षमता से अधिक होना।
समिति ने उच्च शिक्षा सम्बन्धी दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये-
1.शिक्षण एवं शोध संस्थानों के रूप में देश में कुछ विश्वविद्यालयों का विकास किया जायें।
2. ऑनर्स कोर्स को बढ़ावा दिया जाये, जिसका स्तर सामान्य कोर्स से ऊँचा हो।
3. उच्च शिक्षा को रोजगारपरक बनाया जाये तथा औद्योगिक व तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
4. सभी विश्वविद्यालयों में पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और शोधकार्यशालाओं की उचित व्यवस्था की जाये।
5. सभी छात्रों को प्रवेश न देकर केवल योग्य और सक्षम छात्रों को ही प्रवेश दिया जायें।
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भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
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